एग्जिट पोल सही हुए तो तेजस्वी यादव का बिहार की राजनीति में क्या भविष्य होगा?

करीब करीब सभी एग्जिट पोल में आरजेडी की हार दिखाई दे रही है. जाहिर है कि इस बार की हार तेजस्वी यादव की हार मानी जाएगी. क्योंकि वे सीएम चेहरा ही नहीं थे बल्कि महागठबंधन का घोषणा पत्र भी उनके नाम से ही था.

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आरजेडी की हार से तेजस्वी के भविष्य पर लग सकता है ग्रहण आरजेडी की हार से तेजस्वी के भविष्य पर लग सकता है ग्रहण

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:00 PM IST

बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजे 14 नवंबर को यानि कि कल आने वाले हैं, लेकिन एग्जिट पोल्स ज्यादातर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए को स्पष्ट बहुमत की भविष्यवाणी कर रहे हैं. हालांकि तेजस्वी यादव, जो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के युवा चेहरे और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं, ने इन पोल्स को खारिज करते हुए दावा किया है कि महागठबंधन सत्ता में जरूर आएगा.

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 लेकिन कल्पना करिए कि यदि एग्जिट पोल की भविष्यवाणी सही होती है तो क्या होगा? बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव का भविष्य क्या होगा? यह सवाल न केवल तेजस्वी की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं पर, बल्कि बिहार के युवाओं, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की आकांक्षाओं पर भी केंद्रित है. लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी ने 2015 में पहली बार उपमुख्यमंत्री के रूप में सत्ता का स्वाद चखा, लेकिन 2017 में महागठबंधन टूटने के बाद विपक्ष में चले गए. 2022 में फिर सत्ता में आने का मौका मिला, लेकिन नीतीश के पाला बदलने से दोबारा बाहर हो गए. 2020 के चुनावों में आरजेडी सबसे बड़ा दल बना, लेकिन सरकार नहीं बना सका. यदि 2025 में भी यही होता है, तो तेजस्वी को लंबे समय तक विपक्ष की भूमिका निभानी पड़ेगी.जाहिर है कि उन्हें भविष्य में कई कठिन चुनौतियों का सामना करना होगा. हालांकि तेजस्वी के पास संघर्श के लिए बहुत बड़ी उम्र पड़ी हुई है. पर जिस तरह बिहार की राजनीति बदल रही है उसमें उनके लिए सर्वाइव करना बहुत मुश्किल होने वाला है.

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आरजेडी की हार तेजस्वी के खिलाफ विद्रोह का मौका देगा

बिहार की राजनीति में यादव परिवार का दबदबा लालू प्रसाद यादव की विरासत पर टिका है, लेकिन 2025 विधानसभा चुनावों के ठीक पहले तेजस्वी यादव के खिलाफ परिवारिक विद्रोह ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को संकट में डाल दिया है. बड़े भाई तेज प्रताप यादव का बगावती रुख न केवल पारिवारिक कलह को उजागर कर रहा है, बल्कि पार्टी के विभाजन का खतरा मंडरा रहा है.

राबड़ी देवी ने हालांकि दोनों बेटों को शुभकामनाएं दीं, लेकिन लालू का तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से निकालना संकट को और गहरा बना चुका है. यदि यह विद्रोह बढ़ा, तो आरजेडी का मुस्लिम-यादव वोट बैंक भी बिखर सकता है. यदि इस लड़ाई में मीसा भारती भी शामिल हुईं, तो राष्ट्रीय स्तर पर नुकसान होगा. बहुत दिनों से देखा जा रहा है कि मीसा भारती को पार्टी में महत्व कम मिल रहा है. जबकि वो लालू यादव की सबसे बडी बेटी हैं और पार्टी के लिए बहुत पहले से काम कर रही है. लालू को किडनी देने वाली रोहिणी आचार्य भी पिछले दिनों अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की थी. तेजस्वी की इस बार की परिवार में विद्रोह को और भड़काएगा.

राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं खुलकर सामने आएंगी. तेजस्वी के अधिनायकवादी रवैये का विरोध होना शुरू होगा. तेजप्रताप , मीसा भारती और रोहिणी आचार्य मिलकर तेजस्वी के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं. पार्टी भी टूट सकती है. यह काम अपने फायदे के लिए एनडीए भी कर सकती है. एनडीए भरसक कोशिश करेगी कि आरजेडी टूट जाए. नीतीश कुमार को नियंत्रित करने के लिए आरजेडी के एक घड़े का इस्तेमाल बीजेपी कर सकती है.

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जाहिर है कि तेजस्वी के खिलाफ परिवारिक विद्रोह आरजेडी के लिए अस्तित्व का संकट है. लालू को मध्यस्थता करनी होगी, वरना 2030 तक पार्टी खत्म हो सकती है.

महागठबंधन में कद घटेगा

अगर आरजेडी कल के परिणाम में पिछड़ती नजर आती है तो इसका असर महागठबंधन पर भी पड़ना तय है. कांग्रेस की बढ़ती महत्वाकांक्षा के बीच तेजस्वी का कद घटना आरजेडी को मुश्किल में डालेगा ही. छोटी पार्टियों को भी दूसरे गठबंधन में मौका तलाशने को प्रेरित करेगा. महागठबंधन का पुनर्गठन मुश्किल होगा.अभी इस बार के चुनावों के पहले ही तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाना बहुत मुश्किल से संभव हो सका था. क्योंकि स्पष्ट रूप से महागठबंधन में तेजस्वी के नाम सहमति की कमी दिख रही थी. सीट शेयरिंग पर विवाद ने भी यह उजागर किया. दरभंगा जिले की एक सीट पर तेजस्वी ने खुद आरजेडी के उम्मीदवार के खिलाफ प्रचार किया, जो गठबंधन की एकता पर सवाल उठाता है.

वाम दलों ने तेजस्वी के 'युवा चेहरा' को स्वीकारा, लेकिन वे लालू परिवार की छाया से नाराज रहे. अक्टूबर में एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी की फोटो गायब होने से बीजेपी ने 'असहमति' का मुद्दा उठाया था. कांग्रेस, जो बिहार में 61 सीटों पर लड़ी, अपनी महत्वाकांक्षा को दबा नहीं पाई है. शुरूआत में राहुल गांधी और कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्ला वरू ने कई बार ऐसे तेवर दिखाए जैसे लगा था कांग्रेस बिहार में अकेले चुनाव लड़ सकती है.

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 अक्टूबर में सीट बंटवारे के बीच कांग्रेस नेताओं ने तेजस्वी को 'सीएम' घोषित करने में देर करना आरजेडी को अच्छा नहीं लगा था.मल्लिकार्जुन खड़गे और जयराम रमेश ने दावा किया कि महागठबंधन 'गारंटी' लागू करेगा, लेकिन यह आरजेडी के 'नौकरी देंगे' एजेंडे पर कब्जा करने जैसा लगा. हालांकि एग्जिट पोल्स में कांग्रेस का प्रदर्शन भी कमजोर (केवल 5-7 सीटें) दिख रहा है .  फिर भी कांग्रेस आरजेडी के कमजोर होने से महागठबंधन को टूटने से बचाना मुश्किल होगा.

महागठबंधन की छोटी पार्टियां जैसे विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और अन्य सीटें कम मिलने से नाराज है. कई बार ऐसी अफवाहें फैली हैं कि मुकेश सहनी कभी भी पाला बदल सकते हैं. 

प्रशांत किशोर और बड़ी चुनौती बन जाएंगे

बिहार 2025 विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल्स ने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (जेएसपी) को भी निराश ही किया है.एक्सिस माई इंडिया ने मात्र 0-2 सीटें ही प्रशांत किशोर को मिलती दिखाईं हैं. लेकिन यह डेब्यू निराशाजनक लगने के बावजूद किशोर के लिए एक मजबूत नींव रखता है. कुछ पोल जेएसपी का वोट शेयर 10-15% रहने का अनुमान लगा रहे हैं. जो बिहार की राजनीति में तीसरे ध्रुव के उदय का संकेत देता है.

 किशोर, जो पोल स्ट्रैटेजिस्ट से राजनेता बने, ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 'बदलाव' का नारा दिया. यदि नतीजे 14 नवंबर को इसी तरह आए, तो यह हार नहीं, बल्कि उभरने का मौका बनेगा. बिहार की युवा आबादी (60% 35 वर्ष से कम) किशोर की प्रगतिशील छवि से प्रभावित है, जो उन्हें 2030 तक उन्हें और मजबूत बना सकती है. किशोर ने तीन वर्षों में 10,000 से अधिक पंचायतों का दौरा किया, जो पारंपरिक दल अब नहीं कर रहे हैं. बेरोजगारी (14.5%), प्रवासन और शिक्षा जैसे मुद्दों पर उनका फोकस जनता के बीच चर्चा में रहे हैं.

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किशोर को मजबूत होने का सबसे बड़ा मौका विपक्ष की कमजोरी में छिपा है. एमजीबी में आरजेडी की आंतरिक कलह और कांग्रेस की महत्वाकांक्षा ने गठबंधन को कमजोर किया, जबकि एनडीए पर नीतीश की उम्र (74 वर्ष) और स्वास्थ्य का सवाल है. इस बीच जेएसपी का 12- 15% वोट शेयर इसके भविष्य में कुछ अच्छा करने का संकेत जैसा होगा.

इतना ही नहीं युवा अपील जैसे नौकरी, शिक्षा और 'बिहार फर्स्ट' का एजेंडा से किशोर 2029 लोकसभा में राष्ट्रीय भूमिका तलाश सकते हैं.आरजेडी की हार के बाद महागठबंधन कमजोर होता है तो जेएसपी बहुत तेजी से राज्य में उसकी जगह लेने की कोशिश करेगी. अगर ऐसा संभव होता है तो तेजस्वी यादव को इतिहास बनते देर नहीं लगेगी.

तेजस्वी की सबसे बड़ी मुश्किल

तेजस्वी, जो युवा ऊर्जा और नौकरी के वादों से बिहार के बदलाव के प्रतीक बने, अब भी पिता लालू प्रसाद यादव के 'एंटी-लालू कॉम्प्लेक्स' की गिरफ्त में फंसे हुए हैं. यह सेंटीमेंट भ्रष्टाचार, जंगल राज और परिवारवाद की छवि के चलते तेजस्वी की हर कोशिश को धुंधला कर देता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में गोपालगंज रैली में कहा कि तेजस्वी लालू के पापों को छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, आरजेडी के पोस्टर्स में लालू की तस्वीर को कोने में ठूंस दिया गया.

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 यह हमला न केवल चुनावी रणनीति है, बल्कि तेजस्वी की सबसे बड़ी चुनौती को उजागर करता है. लालू प्रसाद यादव तेजस्वी के लिए दोहरी विरासत छोड़े हैं. एक ओर सामाजिक न्याय की लहर, जो यादव-मुस्लिम वोट बैंक के रूप में तेजस्वी को मजबूत करती है. दूसरी ओर अपराध, भ्रष्टाचार और आर्थिक ठहराव का 'जंगल राज' तेजस्वी को हर वर्ग का नेता बनने से रोक देता है. चारा घोटाले, रेलवे घोटाले और परिवारिक कनेक्शनों ने एंटी-लालू वेव पैदा की, जो आज भी बिहार के शहरी, ऊपरी जाति और मध्यम वर्ग में जीवित है.

बीजेपी ने 'लालू का राज लौटेगा' का नैरेटिव चलाया, जो तेजस्वी के 'नौकरी देंगे' वादे को फीका कर गया. पोस्टर्स में लालू की तस्वीर को छोटा करना तेजस्वी की रणनीति थी, लेकिन इससे भी काम नहीं बना.

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