भारतीय राजनीति में धार्मिक नेताओं का रोल हमेशा से चर्चा में रहा है. एक ओर वे भक्तों को आकर्षित करते हैं, दूसरी ओर राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक का हथियार बन जाते हैं. बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इसी कड़ी का एक प्रमुख नाम हैं. 2022 में कोविड काल में अपनी कथाओं से उन्हें राष्ट्रीय पहचान मिली, और अब वे हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के लिए इस तरह काम कर रहे हैं जिस तरह बीजेपी और संघ भी नहीं करते हैं.
शायद इसलिए उन पर आरोप लगता है कि वो बीजेपी की रणनीति पर काम कर रहे हैं. 7 दिसंबर को पश्चिम बंगाल में उनकी प्रस्तावित कथा पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि क्या यह बिहार 2025 विधानसभा चुनावों से पहले की उनकी सक्रियता का दोहराव है? क्या BJP 'बिहार मॉडल' की तर्ज पर बंगाल का किला फतह करने की तैयारी में है?
धीरेंद्र शास्त्री की बंगाल यात्रा
धीरेंद्र शास्त्री, जिन्हें बागेश्वर बाबा या बाबा बागेश्वर भी कहा जाता है, मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम से ताल्लुक रखते हैं. उनकी कथाएं हनुमान चालीसा, राम कथा और हिंदू एकता पर केंद्रित होती हैं, जो लाखों लोगों को खींचती हैं. लेकिन 2023 से उनका राजनीतिक रंग गहरा होने लगा. PM मोदी ने फरवरी 2025 में उन्हें 'हिंदू एकता के प्रयासों' के लिए सराहा, जिसे विपक्ष ने सांप्रदायिकता का प्रमोशन बताया. शास्त्री खुद कहते हैं कि वे किसी पार्टी के नहीं, लेकिन 'सभी हिंदूवादी दलों' के समर्थक हैं.
X पर एक कांग्रेस समर्थक यूजर ने उन्हें 'BJP का वाइल्डकार्ड' बताते हुए लिखा कि चुनाव आते ही बाबा सक्रिय हो जाते हैं. शास्त्री का प्रभाव युवाओं और ग्रामीण हिंदुओं पर है, जो BJP के लिए सोने की खान है. मई 2025 में उन्होंने कन्वर्जन के खिलाफ पंजाब और बंगाल विजिट की घोषणा की थी. उसी क्रम में दिसंबर 2025 में कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड पर रामदेव और शास्त्री के साथ 'हिंदू यूनिटी' इवेंट प्लान है, जिसमें 5 लाख लोगों के जुटने की संभावना है. हालांकि इसी साल अक्तूबर में उनके बंगाल आने का कार्यक्रम ममता सरकार ने ऐन मौके पर कैंसल कर दिया था. अब देखना है कि 7 दिसंबर को प्रस्तावित उनके प्लान को ममता सरकार की मंजूर मिलती है नहीं.
क्या दीदी के रहते बंगाल में बाबा की एंट्री आसान है?
सवाल उठता है कि क्या दीदी के रहते बंगाल में बाबा की एंट्री आसान है? पश्चिम बंगाल की राजनीति में धर्म और सत्ता का टकराव हमेशा से ही संवेदनशील रहा है. ममता बनर्जी, जिन्हें प्यार से 'दीदी' कहा जाता है, अपनी 'मां-माटी-मानुष' की छवि से हिंदू-मुस्लिम एकता की पैरोकार बनी हुई हैं. वहीं, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जिन्हें 'बाबा बागेश्वर' के नाम से जाना जाता है, हिंदू एकता और सनातन धर्म के प्रचारक हैं. उनकी कथाएं लाखों भक्तों को खींचती हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से वे भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे से जुड़े माने जाते हैं.
सवाल यह है कि क्या दीदी के राज में बाबा की एंट्री बंगाल में इतनी आसान है? हालिया घटनाएं बताती हैं ऐसा असंभव है. कम से कम अभी तो दीदी उनको बंगाल में घुसने नहीं देंगी. इसके पहले अक्टूबर 2025 में कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में 10-12 तारीख तक शास्त्री की 'हनुमान कथा' का आयोजन प्रस्तावित था. लाखों भक्तों का अनुमान था, लेकिन ममता सरकार ने आखिरी पल में अनुमति रद्द कर दी. आधिकारिक कारण बताया गया कि 'भारी बारिश और जलभराव का खतरा'है. लेकिन शास्त्री ने इसे 'धर्म-विरोधी साजिश' करार दिया.
छत्तीसगढ़ के रायपुर में कथा के मंच से उन्होंने कहा, दीदी ने हमें इजाजत नहीं दी. जब तक दीदी हैं, तब तक बंगाल नहीं जाऊंगा. जब 'दादा' आएंगे, तब जरूर जाऊंगा. यह 'दादा' का इशारा शायद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व, खासकर अमित शाह की ओर था.
यह पहली बार नहीं जब TMC ने ऐसे आयोजनों पर रोक लगाई हो. ममता की सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि वे हिंदू धार्मिक कार्यक्रमों को कठोरता से देखती है, जबकि मुस्लिम आयोजनों जैसे विश्व इज्तेमा को आसानी से अनुमति देती हैं. X पर एक यूजर ने लिखा, ममता ने धीरेंद्र शास्त्री को रोका, लेकिन इज्तेमा में 80-90 लाख लोग आएंगे. क्या बंगाल को अलग राज्य घोषित कर दिया?
यह सवाल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को उजागर करता है. TMC का तर्क है कि अनुमति मौसम या कानूनी आधार पर रद्द की जाती है, न कि धर्म के आधार पर. लेकिन विपक्ष इसे 'हिंदू-विरोधी' बताता है. भाजपा ने इसे 'हिंदू भावनाओं का अपमान' कहा, और सुवेंदु अधिकारी जैसे नेता इसे 2026 चुनावी हथियार बना रहे हैं.
क्या धीरेंद्र शास्त्री के आयोजन में आगे आएगी भाजपा?
बिहार 2025 चुनावों से पहले उनकी सक्रियता ने हिंदू वोटों को एकजुट किया था. बंगाल में भी 70% हिंदू आबादी है, लेकिन TMC की मजबूत पकड़ (2021 में 213 सीटें) के कारण भाजपा को धार्मिक कार्ड खेलना तय जैसा ही है. शास्त्री की कथाएं न सिर्फ भक्तों को जोड़ती हैं, बल्कि 'घुसपैठ' और 'कन्वर्जन' जैसे मुद्दों पर बोलकर राजनीतिक माहौल गर्माती हैं.
ममता जानती हैं कि ऐसे आयोजन TMC के मुस्लिम वोट बैंक (लगभग 30%) को नाराज कर सकते हैं. साथ ही, वे 'सेक्युलर' इमेज बनाए रखना चाहती हैं. X पर एक यूजर ने अपनी पोस्ट में लिखा कि ममता दीदी ने बाबा का पर्चा निकाल लिया, लेकिन बाबा ने दीदी का पर्चा निकाल दिया. 2026 में TMC का सफाया!
बाबा की एंट्री पूरी तरह असंभव नहीं है. दिसंबर 2025 में कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड पर रामदेव और शास्त्री के साथ 'हिंदू यूनिटी' इवेंट की योजना है, जो 5 लाख लोगों का लक्ष्य रखता है. अगर भाजपा दबाव बनाएगी, तो कोर्ट या केंद्र के हस्तक्षेप से अनुमति मिल सकती है. लेकिन ममता की सतर्कता साफ है. वे SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) जैसे चुनावी विवादों में उलझी हैं, जहां वे ECI पर 'भाजपा साजिश' का आरोप लगा रही हैं.
बिहार मॉडल: 2025 चुनाव से पहले शास्त्री की भूमिका
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (अक्टूबर-नवंबर) से कुछ महीने पहले शास्त्री की सक्रियता चरम पर थी. मार्च 2025 में होली के बीच उन्होंने पटना और अन्य जिलों में कार्यक्रम किए. RJD नेताओं ने उनकी पटना विजिट का विरोध किया, कहा कि यह सांप्रदायिक तनाव फैलाएगा. जुलाई में पटना स्पीच ने विवाद खड़ा किया, जहां उन्होंने 'भगवा-ए-हिंद' का सपना देखा और बिहार को 'हिंदू राष्ट्र का पहला राज्य' बताया.
X पर कांग्रेस समर्थक एक यूजर ने लिखा, कि BJP ने शास्त्री को कम्युनल टेंशन के लिए भेजा है. इस 'मॉडल' का असर साफ दिखा. NDA (BJP-JD(U)) ने 243 सीटों में से 202 जीतीं, जबकि महागठबंधन (RJD-Congress) 35 से कम पर सिमट गया. शास्त्री ने 13 नवंबर को वोटर्स को आशीर्वाद दिया, 'राष्ट्रवादी जीत' की कामना की. विश्लेषकों का कहना है कि उनकी कथाओं ने हिंदू वोट (खासकर EBC और OBC) को एकजुट किया, जो नीतीश-मोदी गठबंधन के लिए फायदेमंद रहा. लेकिन आलोचना भी हुई. कांग्रेस ने कहा कि यह 'हेट स्पीच' है.
बिहार में शास्त्री की रणनीति तीन तरीके की थी. 1) हिंदू एकता का प्रचार, 2) कन्वर्जन और 'घुसपैठ' के खिलाफ बोलना, 3) स्थानीय BJP नेताओं के साथ मंच साझा करना. जाहिर है कि इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ा जो बाद में BJP के लिए वोटों का ध्रुवीकरण साबित हुआ. चुनाव परिणामों से साफ है कि यह मॉडल कामयाब रहा. NDA की जीत में हिंदू वोटों का 60% हिस्सा था.
संयम श्रीवास्तव