2027 से पहले का सेमीफाइनल, जमीन तैयार करने का मौका... जानें- हर पार्टी के लिए क्यों जरूरी है लुधियाना उपचुनाव

ये उपचुनाव इसलिए हो रहा है क्योंकि आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक गुरप्रीत सिंह गोगी के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई थी और नियमों के अनुसार, कोई भी विधानसभा या संसद सीट 6 महीने से ज्यादा खाली नहीं रह सकती. ये चुनाव इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि इसे पंजाब की चार बड़ी पार्टियों के लिए सियासी इम्तिहान माना जा रहा है. आइए समझते हैं कि कैसे ये चुनाव हर दल के लिए खास बन गया है...

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लुधियाना वेस्ट का उपचुनाव चारों बड़ी पार्टियों के लिए अहम है लुधियाना वेस्ट का उपचुनाव चारों बड़ी पार्टियों के लिए अहम है

अमन भारद्वाज

  • चंडीगढ़,
  • 25 मई 2025,
  • अपडेटेड 5:08 PM IST

लुधियाना वेस्ट विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए शेड्यूल जारी हो गया है. रविवार सुबह चुनाव आयोग ने देश के 5 राज्यों में होने वाले उपचुनावों की घोषणा की, जिसके तहत लुधियाना वेस्ट सीट पर 19 जून को मतदान और 23 जून को मतगणना होगी. इसी के साथ कल से नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

ये उपचुनाव इसलिए हो रहा है क्योंकि आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक गुरप्रीत सिंह गोगी के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई थी और नियमों के अनुसार, कोई भी विधानसभा या संसद सीट 6 महीने से ज्यादा खाली नहीं रह सकती. ये चुनाव इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि इसे पंजाब की चार बड़ी पार्टियों के लिए सियासी इम्तिहान माना जा रहा है. आइए समझते हैं कि कैसे ये चुनाव हर दल के लिए खास बन गया है...

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AAP ने सांसद को मैदान में उतारा 

आम आदमी पार्टी ने सबसे पहले 26 फरवरी को अपने उम्मीदवार संजीव अरोड़ा का नाम घोषित किया. अरोड़ा राज्यसभा के सांसद हैं और लुधियाना से ही ताल्लुक रखते हैं. उनके मैदान में उतरने को दिल्ली में AAP की हार से उबरने की रणनीति माना जा रहा है. संजीव अरोड़ा के नाम को लेकर पहले अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे नेताओं के नामों की अटकलें भी लगाई जा रही थीं, लेकिन पार्टी ने इन अटकलों को खारिज कर दिया. विपक्ष का मानना ​​है कि पार्टी के अनुरोध पर संजीव अरोड़ा को राज्यसभा सीट खाली करने पर राज्य सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी, हालांकि इस बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है.

बता दें कि संजीव अरोड़ा व्यवसायी हैं और पंजाब के औद्योगिक शहर लुधियाना से आते हैं. उनकी उम्मीदवारी के बाद भगवंत मान सरकार ने किसानों के धरनों को हटवाने और एकमुश्त समझौता (OTS) योजना जैसे व्यापार-हितैषी फैसले लिए, जिससे यह साफ हुआ कि यह कदम सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि नीति से जुड़ा भी है. सरकार के तीन साल पूरे होने के बाद यह पहला उपचुनाव है और इसे 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले जनता की भावनाओं के बैरोमीटर के रूप में देखा जा रहा है.

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कांग्रेस पूरी ताकत से ठोकेगी ताल

AAP के बाद कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता और पूर्व खाद्य आपूर्ति मंत्री भारत भूषण आशु को मैदान में उतारा है. आशु को पहले लोकसभा चुनाव में टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें पंजाब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजा वड़िंग ने हटाकर खुद चुनाव लड़ा, जिससे आशु नाराज नजर आए और उन्होंने सार्वजनिक रूप से बयान भी दिए. अब विधानसभा उपचुनाव उनके लिए प्रतिष्ठा और वापसी की लड़ाई बन गया है. कांग्रेस इस सीट को जीतकर AAP की सरकार के तीन साल के कामकाज पर सवाल उठाना चाहती है और खुद को 2027 की राजनीति में मजबूत दिखाना चाहती है.

शिरोमणि अकाली दल के लिए जमीन तैयार करने का मौका

अकाली दल ने इस सीट से परोपकार सिंह घुम्मण को उम्मीदवार बनाया है. खास बात ये है कि पार्टी ने इससे पहले नवंबर 2024 में हुए चार उपचुनावों का बहिष्कार किया था. उस समय अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को ‘तनखैया’ घोषित कर दिया था, जिससे वे चुनाव प्रचार या लड़ने के अयोग्य हो गए थे. अब जबकि 2027 के चुनाव नजदीक हैं, अकाली दल इस उपचुनाव को अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने और पार्टी की जमीन दोबारा तैयार करने का मौका मान रहा है.

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भाजपा: उम्मीदवार का इंतजार, लेकिन शहर में पकड़ मजबूत

भाजपा ने अभी तक अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, लेकिन लुधियाना को पार्टी का शहरी गढ़ माना जाता है. खास बात यह है कि लुधियाना से ही आने वाले रवनीत सिंह बिट्टू फिलहाल मोदी कैबिनेट में पंजाब से एकमात्र केंद्रीय मंत्री हैं. भाजपा इस सीट पर ऐसा उम्मीदवार उतारना चाहती है जो 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को संगठनात्मक और चुनावी तौर पर मजबूती दे सके. पार्टी के भीतर नामों को लेकर चर्चा जरूर है, लेकिन रणनीति को लेकर पूरी सतर्कता बरती जा रही है.

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