क्या कन्हैया कुमार ने हाईजैक किया तेजस्वी यादव का एजेंडा? बिहार में कांग्रेस की पदयात्रा का कैसा होगा असर

दिलचस्प बात यह है कि पिछले पांच साल में अलग-अलग राजनीतिक दलों की ओर बेरोजगारी के मुद्दे को जिंदा रखने की जोरदार कोशिश की गई है. बिहार सरकार के हालिया बजट में युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया और सरकार ने बिहार के युवाओं को 12 लाख सरकारी नौकरियां देने का वादा किया है.

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क्या तेजस्वी के लिए चुनौती बनेंगे कन्हैया? क्या तेजस्वी के लिए चुनौती बनेंगे कन्हैया?

रोहित कुमार सिंह

  • पटना,
  • 08 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 7:41 PM IST

बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस राज्य में बड़े पैमाने पर पलायन और बेरोजगारी के मुद्दे को उठाकर युवा वोट बैंक तक पहुंचने की कोशिश में जुटी है. कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार की 'पलायन रोको, नौकरी दो' पदयात्रा भी इसी कोशिश का हिस्सा है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस की ओर से उठाया जा रहा मुद्दा आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा के चुनावी एजेंडे से मेल खाता है, जिसे वह 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद से जोर-शोर से उठा रहे हैं.

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अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या कन्हैया कुमार की पदयात्रा तेजस्वी यादव के लिए परेशानी का सबब बनेगी, क्योंकि दोनों नेता जो भले ही एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं, लेकिन महागठबंधन का हिस्सा हैं, समाज के युवा वर्ग तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.

तेजस्वी यादव की चिंता और भी बढ़ सकती हैं, क्योंकि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी भी सोमवार को बेगूसराय में कन्हैया कुमार की पदयात्रा में शामिल हुए, जिससे यह साफ संकेत मिलते हैं कि कांग्रेस इस बार चुनावी वापसी के लिए युवा वोटबैंक को टारगेट कर रही है. क्या राहुल-कन्हैया की जोड़ी तेजस्वी यादव से बिहार में सबसे महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दे को छीनना चाहती है, यह सवाल बहस का विषय बना हुआ है.

तेजस्वी ने किया था 10 लाख नौकरियों का वादा

बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया था और सरकार बनने पर 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा किया था. जिसके बाद बीजेपी ने भी बिहार में 20 लाख सरकारी नौकरी और स्वरोजगार के अवसर मुहैया कराने का वादा कर इसका जवाब दिया था.

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ये भी पढ़ें: राहुल गांधी के पास कोई प्लान-बी भी है क्या, अगर लालू यादव ने कांग्रेस को झटका दे दिया तो?

दिलचस्प बात यह है कि पिछले पांच साल में अलग-अलग राजनीतिक दलों की ओर बेरोजगारी के मुद्दे को जिंदा रखने की जोरदार कोशिश की गई है. बिहार सरकार के हालिया बजट में युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया और सरकार ने बिहार के युवाओं के लिए 12 लाख सरकारी नौकरियां देने और 34 लाख से ज्यादा स्वरोजगार के मौके बनाने का वादा किया.

बिहार में तेजस्वी बनाम कन्हैया

बिहार के राजनीतिक हलकों में यह सभी को पता है कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में कन्हैया कुमार की एंट्री के समर्थन में नहीं थे, जैसा कि 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी देखने को मिला था, जब कन्हैया कुमार ने सीपीआई के टिकट पर बेगूसराय सीट से चुनाव लड़ा था.

कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव की राजनीतिक शैली एक दूसरे से बिल्कुल अलग है क्योंकि कन्हैया कुमार जो जवाहरलाल नेहरू छात्र संघ (JNSU) के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं, एक शानदार वक्ता हैं. जाहिर तौर पर लालू प्रसाद ने 2019 में बिहार की सियासत में कन्हैया की एंट्री को तेजस्वी यादव के लिए राजनीतिक खतरे के रूप में देखा.

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लोकसभा चुनाव हारे थे कन्हैया

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बेगूसराय सीट की वजह से ही सीपीआई ने महागठबंधन में आरजेडी के साथ गठबंधन नहीं किया था क्योंकि पार्टी इस सीट से कन्हैया कुमार को उतारने पर अड़ी थी जिसका लालू ने विरोध किया था. इस चुनाव में कन्हैया कुमार को बीजेपी के गिरिराज सिंह से हार मिली थी. इसके बाद कन्हैया कांग्रेस में शामिल हो गए.

साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कन्हैया कुमार के बेगूसराय सीट से कांग्रेस के टिकट पर लड़ने की प्रबल संभावना थी, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया और महागठबंधन में होने के बावजूद यह सीट सीपीआई के खाते में चली गई. तब कन्हैया के समर्थकों ने आरोप लगाया था कि लालू और तेजस्वी की वजह से कन्हैया को बेगूसराय से टिकट नहीं दिया गया.

कन्हैया ने हाईजैक किया तेजस्वी का एजेंडा?

कन्हैया कुमार की पदयात्रा 16 मार्च को चंपारण से शुरू हुई और 11 अप्रैल को पटना में समाप्त होगी. कांग्रेस ने पलायन-बेरोजगारी के मुद्दे पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार के आवास का 'घेराव' करने की योजना बनाई है, लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या पदयात्रा के जरिए कन्हैया कुमार ने तेजस्वी यादव के रोजगार और पलायन के एजेंडे को हाईजैक करने की कोशिश की है.

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