भारत के खिलाफ 10 दिन में 3 प्रस्ताव, रूस ने तीनों पर ही VETO लगा दिया, जब UNSC में भारत की लड़ाई लड़ा USSR

भारत और रूस की दोस्ती दशकों से वक्त की कसौटी पर खरी उतरी है. 1971 में भारत जब पूर्वी पाकिस्तान में जंग में उलझा था तो UNSC में भारत को दुनिया के ताकतवर मुल्कों के खिलाफ एक और जंग लड़नी पड़ी थी. इन देशों ने एक के बाद एक भारत के खिलाफ रेजूलेशन लाया, लेकिन हर रेजूलेशन को रूसी वीटो का सामना करना पड़ा.

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सोवियत नेता लियोनिद ब्रेज्नेव और इंदिरा गांधी (File Photo: ITG) सोवियत नेता लियोनिद ब्रेज्नेव और इंदिरा गांधी (File Photo: ITG)

पन्ना लाल

  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:32 PM IST

"रूस में सर्दियों में तापमान माइनस से कितना भी नीचे क्यों न चला जाए, भारत-रूस की दोस्ती का तापमान हमेशा 'प्लस' में रहा है, यह गर्मजोशी से भरा है." ये कथन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है. जब पीएम मोदी पिछले साल रूस गए थे तो उन्होंने हिंद-सोवियत दोस्ती के सुनहरे अतीत को याद किया था. भारत-रूस की दोस्ती का ये कारवां दशकों से चला आ रहा है. 

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आज शुरू हो रहे रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से दोस्ती और भरोसे की ये डोर और भी मजबूत होगी. हिन्द-सोवियत दोस्ती की ऐतिहासिक वजहें रही है. कोल्ड वार का दौर, दो गुटों में बंटी दुनिया, गुट निरपेक्षता की भारत की नीति और इंडो-पाक वार ने इस रिश्ते को परिभाषित किया. 

1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देश थे जिन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में पाक आर्मी के अत्याचार पर आंखें मूंद ली थी. ये युद्धविराम चाहते थे और सेनाओं की वापसी चाहते थे. भारत ने जब इस युद्ध में प्रवेश किया तो ये देश कथित शांति बहाली के नाम पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के खिलाफ एक के बाद एक प्रस्ताव ला रहे थे. 4 दिसंबर 1971 से 13 दिसंबर 1971 के बीच सुरक्षा परिषद में भारत के खिलाफ 3 प्रस्ताव लाए गए. लेकिन सोवियत रूस ने हर बार इन पर वीटो लगा दिया. 

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ये बेहद दिलचस्प है कि आज से ठीक 54 साल पहले UNSC में रूस ने भारत-पाकिस्तान जंग पर लाए गए अमेरिकी प्रस्ताव पर वीटो लगाकर भारत के साथ अपने दोस्ती की मुनादी कर दी थी. इस युद्ध का नतीजा 16 दिसंबर को पाकिस्तान का सरेंडर और बांग्लादेश के निर्माण के रूप में सामने आया था. आज 54 साल बाद रूस के राष्ट्रपति पुतिन भारत दौरे पर आ रहे हैं. 

अगर ये प्रस्ताव पास हो जाते तो आज दक्षिण एशिया का राजनीतिक नक्शा अलग हो सकता था. शायद पाकिस्तान के दो टुकड़े न होते. इन प्रस्तावों के पास हो जाने से भारत को सीजफायर करना पड़ता और शायद पूर्वी पाकिस्तान की आजादी को कुचलने की पाकिस्तान की साजिश कामयाब हो जाती. 

आइए समझते हैं कि कूटनीति की इस मुश्किल घड़ी में इंदिरा ने कैसे दुनिया की शक्तियों को साधा और किन परिस्थितियों में सोवियत रूस ने भारत के खिलाफ आए न प्रस्तावों पर वीटो लगा दिया.  

रूसी साम्यवाद के प्रति नेहरू का झुकाव

देश की आजादी के बाद भारत-रूस के बीच मित्रता का सहज भाव पनपा. नेहरू सोवियत रूस के साम्यवादी प्रयोग से प्रभावित थे. पंडितजी ने सोवियत मॉडल को एक ऐसे तरीके के रूप में देखा जो भारत जैसे विकासशील देश को तेजी से आधुनिक बनाने में मदद कर सकता था, खासकर पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से. 

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आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान अमेरिका की गोद में जा बैठा. वहीं भारत ने गुट निरपेक्षता की नीति अपनाई. इस दौरान सोवियत रूस ने भारत को एक स्वावलंबी राष्ट्र के रूप में उभरने में मदद की. यूएसएसआर ने भिलाई और बोकारो स्टील प्लांट स्थापित करने में मदद की. इससे भारत ने औद्योगीकरण की राह पकड़ी. यही नहीं 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई में रूस ने भारत की बिरादराना भाव से मदद की. इससे इस रिश्ते में भारत की ओर से दोस्ती और कृतज्ञता का भाव और मजबूत हो गया. 

मास्को में पीएम मोदी ने कहा था- रूस शब्द सुनते ही हर भारतीय के मन में सबसे पहले जो भाव आता है वो है भारत के सुख-दुख का साथी और भरोसेमंद साझीदार. 

ढाका से दिल्ली तक डिप्लोमैटिक एंडगेम

25 मार्च 1971 की रात को पाकिस्तानी फौजों ने ढाका में नरसंहार शुरू. उन्होंने ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया और पूर्वी पाकिस्तान में हिंसा और मारकाट का बदस्तूर सिलसिला शुरू कर दिया. 

हजारों लोग मारे गए, विश्वविद्यालयों पर हमला हुआ, बुद्धिजीवियों को चुन-चुनकर मारा गया. लाखों-करोड़ों बंगाली जान बचाकर भारत भाग आए. दस महीने में करीब एक करोड़ शरणार्थी भारत पहुंचे. भारत पर आर्थिक और सामाजिक बोझ बहुत बढ़ गया. इंदिरा गांधी ने दुनिया भर में घूम-घूमकर बताया कि ये समस्या पाकिस्तान की है, उसे वहीं सुलझाए, लेकिन कोई देश दबाव नहीं डाल रहा था. 

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इसी बीच भारत ने गुप्त रूप से मुक्ति बाहिनी को ट्रेनिंग, हथियार और ठिकाना दिया. 

इस बीच इंदिरा गांधी ने कूटनीति की तेज और बोल्ड चालें चली. अगस्त में सोवियत रूस के विदेश मंत्री एंड्रेई ग्रोम्यको (Andrei Gromyko) दिल्ली पहुंचे थे. उनके साथ इंदिरा गांधी ने मैत्री संधि ( Indo-Soviet Treaty of Peace, Friendship and Cooperation) कर ली. हालात को समझते हुए इंदिरा सितंबर में स्वयं मास्को पहुंची और सोवियत नेता लियोनिद ब्रेज़्नेव से लंबी मुलाकात की. ये समझौता एक तरह से भारत के लिए सुरक्षा की गारंटी थी. 

इसके बाद अक्तूबर में दो USSR के दो हाई-लेवल डेलीगेशन भारत आए. इन डेलीगेशन को डिप्टी फॉरेन मिनिस्टर निकोलाई फिरयुबिन और सोवियत एयर फोर्स के चीफ मार्शल पावेल कोउताकोव लीड कर रहे थे. इन यात्राओं ने हिन्द-सोवियत के बीच लड़ाई के मैदान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आपसी तालमेल और सपोर्ट का रास्ता खोला. जहां दिसंबर 1971 में लड़ाई का डिप्लोमैटिक एंडगेम खेला गया.

लड़ाई में भारत की एंट्री

तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में पाकिस्तान की सेनाओं का निर्दोश बंगालियों पर कहर जारी था. 3 दिसंबर को इसमें निर्णायक  मोड आया. इस दिन पाकिस्तान ने भारत के 11 एयरबेस पर बमबारी की. इंदिरा और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में भारत की तैयारी पूरी . भारतीय सेना तीन तरफ से पूर्वी पाकिस्तान में घुस गई. इसी के साथ पाक आर्मी इतिहास की सबसे बड़ी हार के लिए तैयार हो रही थी.

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UNSC बना कूटनीति का बैटलग्राउंड

UN चार्टर के आर्टिकल 99 के तहत संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के पास UNSC को ऐसे किसी भी मुद्दे पर अलर्ट करने का अधिकार है जिससे इंटरनेशनल शांति और सिक्योरिटी को खतरा हो सकता है. उस समय यू थांट संयुक्त राष्ट्र के महासचिव थे.

हालांकि उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में मानवीय संकट के बारे में UNSC को विस्तृत रिपोर्ट दी थी. लेकिन वे इस संकट को ईमानदारी से हल करने में रुचि नहीं दिखा रहे थे. उनका दूसरा पांच साल का टर्म दिसंबर 1971 में खत्म होना था. द वॉयर की रिपोर्ट कहती है कि वे अल्सर से पीड़ित थे और हॉस्पिटल में थे. 

4 दिसंबर को UNSC में पहला प्रस्ताव

3 दिसंबर 1971 को भारत पाकिस्तान के उकसावे के बाद सक्रिय रूप से युद्ध में कूट चुका था. द वॉयर ने 2013 से 15 तक संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत रहे अशोक मुखर्जी के हवाले से लिखा है कि 3 दिसंबर को ही थांट ने UN सिक्योरिटी काउंसिल में प्रस्ताव रखा कि UN को भारत और पाकिस्तान में ऑब्ज़र्वर तैनात करने चाहिए. उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग की. US ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था. 

4 दिसंबर 1971 को अर्जेंटीना, बेल्जियम, बुरुंडी, इटली, जापान, निकारागुआ, सोमालिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका द्वारा UNSC में प्रस्ताव लाया था. इस प्रस्ताव में सीजफायर, एक दूसरे के क्षेत्र से सेनाओं की वापसी, यूएन ऑब्जर्वर की नियुक्ति की मांग की गई थी. इस प्रस्ताव को UNSC में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में UN में अमेरिका के दूत जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने पेश किया था. ये वही बुश थे जो बाद में अमेरिका के 41वें राष्ट्रपति बने. 

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अमेरिका, चीन और UNSC के 9 चुने हुए सदस्यों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, फ्रांस और ब्रिटेन वोटिंग से गायब रहे. जबकि भारत के साथ दोस्ती निभाते हुए सोवियत रूस ने याकोव मलिक ने इस ड्राफ्ट पर वीटो लगा दिया. रूस ने कहा कि अमेरिका का ड्राफ्ट रेजूलेशन पूर्वी पाकिस्तान में राजनीतिक समाधान की समस्या का हल प्रस्तुत नहीं करता है. पोलैंड ने रेजूलेशन के खिलाफ वोट दिया. 

अगर ये प्रस्ताव पास हो जाता तो संभव है कि भारत को उस दिन युद्धविराम करना पड़ता और युद्ध के नतीजे कुछ दूसरे होते. 

ये बड़ा संयोग है कि ये घटना आज से ठीक 54 साल पहले आज के दिन ही हुई थी. 

5 दिसंबर को UNSC में दूसरा प्रस्ताव 

पूर्वी पाकिस्तान में जंग रफ्तार पकड़ रही थी. भारत को बढ़त हासिल थी. भारत, रूस समेत दुनिया के देश इस समस्या का राजनीतिक समाधान चाहते थे. लेकिन सुरक्षा परिषद में जोर आजमाइश जारी थी. 5 दिसंबर 1971 को इस ग्रुप ने एक और प्रस्ताव लाया. इसमें भी युद्धविराम की मांग की थी गई, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में जारी हिंसा का राजनीतिक समाधान प्रस्तुत नहीं किया गया था. 

सोवियत रूस ने इस प्रस्ताव पर भी वीटो लगा दिया गया. USSR ने एक बार फिर कहा कि ये प्रस्ताव राजनीतिक समाधान प्रस्तुत नहीं करता है.

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13 दिसंबर 1971 को UNSC में अमेरिका ने लाया तीसरा प्रस्ताव

जंग को शुरू हुए 10 दिन गुजर चुके थे. पूर्वी पाकिस्तान में भारत की आर्मी तेजी से आगे बढ़ रही थी. इस बीच संयुक्त राष्ट्र का मंच कूटनीति का अखाड़ा बना हुआ था. भारत के विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह और पाकिस्तान के डिप्टी पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो UN में डेरा डाले हुए थे.

6 से 12 दिसंबर 1971 के बीच संयुक्त राष्ट्र महासभा में युद्ध को रोकने की आखिरी कोशिशें हुईं, क्योंकि सुरक्षा परिषद में सोवियत वीटो के कारण कोई प्रस्ताव पास नहीं हो पा रहा था. 7 दिसंबर को महासभा का आपात सत्र बुलाया गया, इसी दिन महासभा ने भारी बहुमत से एक प्रस्ताव 
पारित कर दिया, जिसमें तत्काल युद्धविराम और दोनों देशों की सेनाओं को अपनी-अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पीछे वापस जाने की मांग की गई थी.

भारत सहित 11 देशों ने इसके खिलाफ वोट किया. सोवियत खेमे के देशों ने परहेज किया. इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह ने कहा कि जब तक पूर्वी पाकिस्तान में राजनीतिक समाधान नहीं होगा और शरणार्थी वापस नहीं लौटेंगे युद्धविराम बेमानी है. भारत ने 6 दिसंबर 1971 को ही बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी थी.

12 दिसंबर को अमेरिका ने एक और प्रस्ताव पेश करने के लिए UNSC की मीटिंग बुलाने को कहा. 13 दिसंबर को US का पेश किया गया प्रस्ताव,  USSR ने इस प्रस्ताव पर फिर से वीटो कर दिया, क्योंकि एक बार फिर से इस प्रस्ताव में पूर्वी पाकिस्तान का राजनीतिक समाधान नहीं दिया गया था.  

तमतमाते हुए भुट्टो बाहर निकले

15 दिसंबर को दोपहर में जब UNSC पोलैंड के लाए गए एक ड्राफ़्ट प्रस्ताव पर विचार करने के लिए अपनी मीटिंग के लिए दोबारा बैठी तो पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री/विदेश मंत्री भुट्टो मीटिंग से तमतमाते हुए बाहर चले गए. उन्होंने UNSC पर 'हमले को कानूनी मान्यता' देने और 'ढाका पर कब्ज़ा करने' के लिए समय देने का आरोप लगाया. 

चीन ने पोलैंड के प्रस्ताव का विरोध किया. सोवियत संघ ने एक और प्रस्ताव पेश किया और ड्राफ़्ट की जांच के लिए 16 दिसंबर तक की मोहलत मांगी. इस पर सहमति बन गई.

जब 16 दिसंबर को काउंसिल दोबारा बैठी तो भारत के विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने काउंसिल को बताया कि ढाका में पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर कर दिया है. इसी के साथ लड़ाई रुक गई है. 
 

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