संविधान बचाने का नैरेटिव, दलित हित का एजेंडा... स्पीकर चुनाव हारकर भी INDIA ब्लॉक ने क्या हासिल किया?

लोकसभा स्पीकर का चुनाव गंवाकर भी INDIA ब्लॉक ने अपने कई एजेंडे सेट किए हैं. सबसे पहले तो इंडिया ब्लॉक ने दलित हित और संविधान बचाने के नैरेटिव को एक बार फिर से सेट कर दिया है. इधर इस चुनाव के बहाने राहुल गांधी विपक्षी एकता की धुरी बनकर उभरे हैं. वहीं बीजेपी ने ये संदेश दिया है कि शासन चलाने में विपक्ष उससे रियायत की उम्मीद न करे. इसके अलावा नए स्पीकर के चयन से बीजेपी ने भविष्य की मुश्किल परिस्थितियों की भी तैयारी कर ली है.

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ओम बिरला को बधाई देते PM मोदी और राहुल गांधी. ओम बिरला को बधाई देते PM मोदी और राहुल गांधी.

पन्ना लाल

  • नई दिल्ली,
  • 26 जून 2024,
  • अपडेटेड 5:00 PM IST

18वीं लोकसभा के लिए ओम बिरला एक बार फिर से स्पीकर चुन लिए गए हैं. ओम बिरला को ध्वनिमत से स्पीकर चुना गया है. लोकसभा स्पीकर की इस रेस में विपक्ष की ओर से कांग्रेस सांसद के. सुरेश उम्मीदवार थे. ध्वनिमत के बाद प्रोटेम स्पीकर ने जब स्पीकर पद के लिए ओम बिरला के नाम की घोषणा की तो विपक्ष ने मत विभाजन की मांग नहीं की. इस तरह से संख्याबल के अनुरुप ही INDIA ब्लॉक स्पीकर पद की रेस हार गया. लेकिन इस हार के बावजूद विपक्ष ने ये संदेश दे दिया है कि 2024-29 की पारी 2014-24 जैसी नहीं होने वाली है. 

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लोकसभा स्पीकर का चुनाव हारने के बावजूद INDIA ब्लॉक देश में ये नैरेटिव स्थापित करने में सफल रहा कि आने वाले दिनों में सरकार एकतरफा फैसले नहीं ले सकेगी और उसे कदम-कदम पर विपक्ष की संविधान सम्मत चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. आइए समझते हैं कि लोकसभा स्पीकर चुनाव हारकर भी INDIA ब्लॉक ने क्या क्या हासिल किया. 

फिर से सेट किया दलित हित का एजेंडा

लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने दलितों के हित के मुद्दे को खूब भुनाया था. स्पीकर चुनाव के बहाने कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक ने एक बार फिर से इस नैरेटिव को हवा दी और ये संदेश देने की कोशिश की कि INDIA ब्लॉक दलितों की हितैषी है. बता दें कि INDA ब्लॉक ने लोकसभा स्पीकर के पद के लिए कांग्रेस के अनुभवी सांसद कोडिकुन्निल सुरेश को उतारा था. के. सुरेश दलित समुदाय से आते हैं. वे ‘चेरामार’ समुदाय से हैं, जो अनुसूचित जाति में आती है. 

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बता दें कि कांग्रेस चाहती थी कि के.सुरेश को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाए, लेकिन सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई और भर्तृहरि माहताब को प्रोटेम स्पीकर बना दिया. सत्ता पक्ष के इस फैसले के बाद इंडिया ब्लॉक ने स्पीकर पद के लिए सरकार को सपोर्ट देने से इनकार कर दिया. और स्पीकर पद के लिए के.सुरेश को आगे किया और ये मैसेज देने की कोशिश की कि जिस दलित उम्मीदवार को एनडीए ने प्रोटेम स्पीकर नहीं बनाया उसे इंडिया ने स्पीकर पद के लिए खड़ा किया. अपने कैंडिडेट की हार जानने के बावजूद उन्हें स्पीकर पद के लिए उतारकर कांग्रेस ने साफ संदेश दिया कि वो दलित हित की सबसे बड़ी पैरोकार है. 

संविधान की रक्षा करने का नरैटिव 

स्पीकर चुनाव के जरिये इंडिया ब्लॉक ने एक और मैसेज देने की कोशिश की है. ये मैसेज है संवैधानिक प्रथाओं की रक्षा करने का. जब स्पीकर चुनाव की आत आती है तो प्रथा ये रही है कि स्पीकर सत्ता पक्ष का होगा और डिप्टी स्पीकर विपक्ष की ओर से कोई सांसद बनेगा. इस बार सरकार इसके लिए राजी नहीं थी. 2019 में अपने खराब प्रदर्शन की वजह से मन मसोस कर रह जाने वाला 2024 का ताकतवर विपक्ष इस बार इस 'अपमान' के लिए कतई तैयार नहीं था. बता दें कि 2019 में सरकार ने डिप्टी स्पीकर के पद पर किसी की नियुक्ति ही नहीं की थी. 

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इसलिए जब सत्ता पक्ष विपक्ष को डिप्टी स्पीकर का पद देने के लिए राजी नहीं हुआ तो इंडिया ब्लॉक ने कहा कि सरकार सालों से चली आ रही थी प्रथा को भी नहीं मानती है इसलिए वे स्पीकर पद के लिए चुनाव लड़ेंगे ताकि संवैधानिक मूल्यों की रक्षा हो सके. इस चुनाव में भले ही जीत मिले या हार. इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार के सुरेश ने कहा कि उन्हें नतीजों का नहीं पता लेकिन वे चुनाव लड़ेंगे. 

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने ट्वीट कर कहा, "प्रधानमंत्री सर्वसम्मति की बात करते हैं, फिर भी हमें अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने पर मजबूर करते हैं. परंपरागत रूप से, अध्यक्ष सत्ताधारी पार्टी से और उपाध्यक्ष विपक्ष से होता है, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया.सहयोग और सर्वसम्मति के प्रति प्रधानमंत्री की अरुचि 17वीं लोकसभा में उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति और अब स्वतंत्रता के बाद पहली बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने से स्पष्ट है."

INDIA ब्लॉक ने दिखाया विपक्ष के तेवर का ट्रेलर

लोकसभा स्पीकर का चुनाव हारकर भी INDIA ब्लॉक ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार एक ताकतवर विपक्ष के रूप में वो सत्ता पक्ष के साथ मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करने वाला है. INDIA ब्लॉक के सबसे बड़े घटक के रूप में कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि मुद्दों पर वो सरकार की आलोचना और टकराव से पीछे नहीं हटने वाली है. 

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राहुल गांधी और अखिलेश ने स्पीकर ओम बिरला को बधाई देते हुए अपना रुख भी स्पष्ट कर दिया और कहा कि उन्हें उम्मीद है कि स्पीकर विपक्ष को भी उचित मौका देंगे. राहुल ने कहा कि सरकार के पास पॉलिटिकल पावर ज्यादा है लेकिन विपक्ष भी भारत का प्रतिनिधित्व करता है. हमें भरोसा है कि आप हमारी आवाज हमें उठाने देंगे. अखिलेश ने तो यहां तक कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सांसदों का निष्कासन जैसी नौबत नहीं आएगी. 
 
राहुल बने विपक्षी एकता की धुरी

नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी के सामने स्पीकर का चुनाव अपने नेतृत्व कौशल को साबित करने का मौका था. इसे राहुल ने कर के भी दिखाया. स्पीकर चुनाव के लिए कांग्रेस को विपक्ष को गोलबंद करने की चुनौती थी. यूं तो विपक्षी खेमे में शामिल सभी दल इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार को समर्थन देने को राजी थे. लेकिन राहुल को पहली चुनौती मिली इंडिया ब्लॉक के अहम घटक दल टीएमसी से. खबर आई कि टीएमसी  इंडिया ब्लॉक के लोकसभा स्पीकर पद के कैंडिडेट से नाराज है क्योंकि के.सुरेश का नाम तय करने से पहले टीएमसी से सलाह नहीं ली गई थी. पार्टी ने इसे एकतरफा फैसला बताया था.

राहुल को जैसे ही विपक्षी एकता में फूट की खबर मिली वे तुरंत सक्रिय हो गए. राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर मंगलवार को बनर्जी से फोन पर बात की थी. राहुल गांधी ने 20 मिनट तक ममता से बात की और उनके सामने अपनी बात रखी. राहुल के फोन कॉल से दूरियां मिटी. टीएमसी ने रात को ही डेरेक ओ ब्रायन और कल्याण बनर्जी को मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर भेजा था. इसके बाद टीएमसी ने इंडिया ब्लॉक के कैंडिडेट को समर्थन की घोषणा कर दी थी. इस तरह से राहुल गांधी विपक्षी एकता की धुरी बने और ममता बनर्जी ने राहुल/कांग्रेस के फैसले को स्वीकार भी किया. लोकसभा स्पीकर चुनाव के बहाने विपक्षी एकता की परख भी हो गई. इसमें इंडिया ब्लॉक काफी हद तक सफल रहा. हालांकि जगन मोहन विपक्ष में रहकर भी अभी इंडिया के खेमे में नहीं आए हैं और ये इस मोर्चे पर राहुल की चुनौती बरकरार है. 

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BJP को इस चुनाव से क्या मिला?

INDIA ब्लॉक के बाद अगर NDA/BJP की चर्चा करें तो स्पीकर पद पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को जीताकर मोदी-शाह और नड्डा की तिकड़ी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सरकार की सीटें भले ही कम हो गई है लेकिन तेवर और छवि के समझौता नहीं किया जाएगा. 

विपक्ष को किसी किस्म की रियायत नहीं

स्पीकर पद पर ओम बिरला का विराजमान होना BJP की ओर से ये संदेश है कि सरकार चलाने में पार्टी कोई रियायत नहीं देने वाली है. ये इस बात से साबित हो गया कि बहुमत वाली इस सरकार ने डिप्टी स्पीकर का पद भी विपक्ष के खाते में नहीं दिया. इसका साफ संदेश है कि संसदीय व्यवस्था के सारे उपक्रम सरकार अपने ही हाथ में रखना चाहती है और विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार से किसी दरियादिली की उम्मीद न करे. स्पीकर/डिप्टी स्पीकर मोदी सरकार ने 2014 और 2019 में भी ऐसा ही किया था. 2014 में मोदी सरकार ने डिप्टी स्पीकर का पद AIADMK के थंबीदुरई को दिया था तो 2019 में प्रचंड बहुमत वाली मोदी सरकार ने डिप्टी स्पीकर के पद पर किसी की नियुक्ति ही नहीं की थी. 

विपरित परिस्थितियों की तैयारी

अपना स्पीकर बनवाकर भाजपा ने यह भी सुनिश्चित किया कि किसी भी विपरित परिस्थितियों में अपने पक्ष का निर्णय करवाया जा सके और सरकार की छवि की हानि को बचाया जा सके. 17वीं लोकसभा में बतौर स्पीकर ओम बिरला पर कई बार पक्षपात के आरोप लगे. इसमें विपक्ष के सांसदों के थोक में निलंबन का मुद्दा अहम था. इसके अलावा बिलों को पास करने में जल्दबाजी का मसला भी उठता रहा. इन आरोपों के बावजूद पीएम मोदी-अमित शाह ने स्पीकर जैसे बेहद अहम पद की बागडोर अपने विश्वस्त सिपहसालार को सौंपी. 

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ऐसा इसलिए कि अगर भविष्य में सरकार चलाने के दौरान कोई नाजुक स्थिति आती है तो उसे स्पीकर के माध्यम से संभाला जा सके. बीजेपी के पास अपने दम पर बहुमत न होने की वजह से स्पीकर का रोल तो और भी अहम हो जाता है. इसके अलावा यूसीसी (जिसकी चर्चा के दौरान खूब हुई) जैसे कई विवादित बिलों को पास कराने में भी स्पीकर की भूमिका खासी अहम रहने वाली है. 

बुधवार को ही जब राहुल गांधी, अखिलेश यादव, ओवैसी, सुंदीप बंद्योपाध्याय जैसे विपक्ष के नेताओं ने स्पीकर से उनसे निष्पक्ष भूमिका निभाने की अपील की और उनके बहाने सरकार को घेरने की अपील की तो सत्र खत्म होते होते स्पीकर ओम बिरला ने मास्टर स्ट्रोक चला और आपातकाल की निंदा करते हुए सरकार के नैरेटिव को जोरदार पुश दे दिया. बता दें कि विपक्ष बार बार संविधान के खतरे में होने का मुद्दा उठा रहा था लेकिन ओम बिरला ने यह कह कर कि आपातकाल के दौरान संविधान को कुचला गया विपक्ष के वार को प्रभावशाली तरीके से कुंद कर दिया. 

कड़े फैसले लेने वाली छवि बनाए रखेगी मोदी सरकार

स्पीकर पद पर NDA के कैंडिडेट की जीत से बीजेपी यह भी संदेश देने में कामयाब हुई कि सरकार कड़े और अपने मर्जी के फैसले लेने का सिलसिला जारी रखेगी. बीजेपी यह जताना चाहती है कि पार्टी के पास भले ही अपने दम पर 272 का आंकड़ा नहीं हो लेकिन सरकार चलाने का रिवाज पुराना ही रहेगा. पार्टी जिस फैसले को चाहेगी उसे लागू कराने में गुरेज नहीं करेगी. 

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इसकी झलक तब भी देखने को मिली जब मोदी 3.0 ने कैबिनेट के सभी भारी-भरकम विभाग जैसे गृह, वित्त, विदेश, रेल अपने पास रखे. दरअसल BJP कहीं से ये संदेश नहीं देना चाहती है कि सीटों में कमी का असर सरकार की कार्यप्रणाली पर पड़ रहा है. 

साथी दलों को मैसेज- अनावश्यक दबाव नहीं सहेंगे

बीजेपी ने अपने पसंद का स्पीकर बनवाकर NDA के सहयोगी दलों को भी मैसेज दिया है. ये मैसेज है कि सरकार के गठन से लेकर सरकार चलाने तक में किसी का भी अनावश्यक दबाव नहीं सहा जाएगा. बता दें कि जब मोदी 3.0  सरकार के गठन की बात आई तो मीडिया में ये भी चर्चा चली कि चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी अपना स्पीकर बनवा सकती है. इस रेस में टीडीपी के कुछ नेताओं के नाम भी सामने आए, लेकिन बीजेपी इन घोषित-अघोषित दबावों के आगे तनिक भी नहीं झुकी और अपने पसंद का ही स्पीकर को लोकसभा चलाने की जिम्मेदारी दी. 

NDA के अलावा छोटी समर्थक पार्टियों की हुई पहचान

स्पीकर चुनाव के बहाने बीजेपी ने अपने भविष्य के सहयोगियों की पहचान कर ली है. रिपोर्ट के मुताबिक स्पीकर चुनाव के लिए NDA कैंडिडेट का नाम सामने आने पर जगन मोहन की पार्टी YSR कांग्रेस ने ओम बिरला को सपोर्ट करने की घोषणा कर दी थी. आंध्र प्रदेश से टीडीपी तो पहले ही बीजेपी के साथ है. इसके अलावा अकाली दल की एक मात्र सांसद हरसिमरत कौर ने भी संकेत दिए थे कि वह भी ओम बिरला की उम्मीदवार का समर्थन कर सकती हैं. हालांकि संसद में ऐसी नौबत नहीं आई लेकिन बीजेपी ने एनडीए से इतर अपने सहयोगियों की पहचान कर ली.  

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