लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी को सत्ता की हैट्रिक लगाने से कांग्रेस की अगुवाई वाला इंडिया ब्लॉक भले ही रोक न पाया हो, लेकिन बीजेपी को बहुमत का आंकड़ा छूने नहीं दिया था। नरेंद्र मोदी को सहयोगी दलों के सहारे सरकार बनानी पड़ी. 2024 के बाद हरियाणा और दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक के घटक दल अपनी ढपली और अपना राग अलाप रहे थे, लेकिन अब एक साल बाद फिर एक्टिव नजर आने लगे हैं.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुरुवार को इंडिया ब्लॉक के नेताओं को अपने आवास पर डिनर पर बुलाया था, जिसमें 24 पार्टियों के 50 से ज़्यादा नेता पहुंचे थे. इसमें कांग्रेस पर निशाना साधने वाली ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने शिरकत की तो सपा, आरजेडी, शिवसेना, डीएमके, एनसीपी और सीपीआई के नेता भी मौजूद थे.
बिहार और पश्चिम बंगाल से पहले उपराष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनाव से पहले राहुल गांधी ने आखिरकार इंडिया ब्लॉक में फिर से एक बार जान फूंकने की पहल की है, जो पिछले साल के लोकसभा चुनाव के बाद से पूरी तरह ठप पड़ा हुआ था. बिहार में चुनाव आयोग की एसआई (SIR) प्रक्रिया ने विपक्षी दलों को एकजुट होने पर मजबूर कर दिया है. राहुल गांधी ने गुरुवार को डिनर डिप्लोमेसी के जरिए विपक्ष को एक मंच पर लाने का काम किया है.
राहुल गांधी ने इंडिया ब्लॉक को किया एकजुट
राहुल गांधी की डिनर पार्टी ने विपक्षी एकता की नई तस्वीर पेश की. इंडिया ब्लॉक के तमाम बड़े नेता अपने सियासी मतभेदों को दरकिनार कर एक साथ बैठे. इस दौरान बॉडी लैंग्वेज बता रही थी कि गठबंधन अब वाकई एकजुट होने की कोशिश कर रहा है। इस तरह से राहुल की डिनर पार्टी का राजनीतिक संदेश था कि बिहार, बंगाल और उपराष्ट्रपति की चुनावी लड़ाई से पहले दिलों की दूरियां पिघल चुकी हैं.
संसद के मानसून सत्र शुरू होने से पहले कांग्रेस ने विपक्षी दलों के नेताओं की ऑनलाइन बैठक बुलाई थी, जो उसने 2024 लोकसभा चुनावों के बाद हुए पिछले सत्रों में नहीं की थी. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सदन में सुचारू समन्वय सुनिश्चित करने के लिए इंडिया ब्लॉक सहयोगियों के साथ कई बैठकें की. अब इंडिया ब्लॉक के नेताओं को राहुल गांधी ने अपने आवास पर रात्रिभोज पर एकजुट कर बड़ा संदेश दिया है.
कांग्रेस और उसके सहयोगी दल एक बार फिर एकमत हैं. डीएमके से लेकर सीपीआईएम तक और टीएमसी तक सब एक सुर में राहुल गांधी के 'वोट चोरी' वाले एजेंडे पर अपनी सहमति जतायी। एसआरआई को मतदाताओं के अधिकारों पर हमला करार दिया है. विपक्ष का मानना है कि एसआरआई की प्रक्रिया अभी बिहार में शुरू हुई है, फिर तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सहित अन्य सभी हिस्सों में होगी। यही वजह है कि विपक्ष इंडिया ब्लॉक को फिर से सक्रिय करने का प्लान बनाया है.
राहुल गांधी के आवास पर विपक्षी नेताओं की बैठक में फिर से एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ सियासी लड़ाई लड़ने का प्लान बना। ऐसे में सबने मिलकर तय किया है कि एसआईआर का मुद्दा उठाते रहेंगे. उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार देंगे. नाम पर इंडिया गठबंधन के बड़े नेताओं के बीच चर्चा होगी. मोदी सरकार अगर कोई नाम लेकर विपक्ष के संपर्क करती है तो उस पर चर्चा होगी, लेकिन विपक्ष की रणनीति है कि संयुक्त उम्मीदवार उतारा जाए.
राहुल गांधी की ओर से उठाए गए चुनावी धांधली मामले को एसआईआर के साथ जोड़कर सियासी धार देने की कवायद करने की स्ट्रेटेजी बनाई है. राहुल गांधी बिहार के दोनों मुद्दों को आरजेडी और माले के साथ मिलकर पूरी ताकत से उठाएंगे. इस संबंध में 17 से राहुल गांधी बिहार दौरे पर रहेंगे और एक बड़ी जनसभा को संबोधित करेंगे.
जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफा देने के बाद इस संवैधानिक पद के लिए चुनाव का ऐलान हो गया है. उपराष्ट्रपति पद के लिए 9 सितंबर को चुनाव है. उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी का पलड़ा भले ही भारी हो, लेकिन कांग्रेस साझा उम्मीदवार को मैदान में उतारकर विपक्षी एकता का संदेश देने के साथ एनडीए के सहयोगी दलों को असमंजस में डालने की रणनीति बना रही है. इसके लिए राहुल गांधी आवास पर जुटे विपक्षी नेताओं के बीच संयुक्त उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर मंथन किया गया.
2022 में हुए उपराष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस ने मार्गरेट अल्वा को प्रत्याशी बनाया था, जिस पर कई विपक्षी दल सहमत नहीं थे. इसके चलते ही टीएमसी ने उपराष्ट्रपति चुनाव से खुद को दूर कर लिया था, लेकिन इस बार के सियासी हालात अलग हैं. कांग्रेस पहले से ज्यादा ताकतवर लोकसभा में है.
राहुल गांधी विपक्ष को साथ लेकर चलने की लगातार कवायद कर रहे हैं, जिसके चलते ही ममता बनर्जी की पार्टी का मन बदला है. राहुल की पार्टी में शिरकत की है और सपा का तेवर भी नरम पड़ा है. ऐसे में अगर विपक्ष एकजुट होकर उपराष्ट्रपति चुनाव लड़ता है तो भले ही एनडीए के प्रत्याशी को हरा न सके, लेकिन मुकाबला काफी रोचक होगा.
लोकसभा चुनाव के बाद से इंडिया ब्लॉक के तालमेल संसद के अंदर तक रहते हैं, लेकिन बाहर आते ही वही पुराने गिले-शिकवे जिंदा हो जाते हैं. टीएमसी बंगाल में कांग्रेस और वामपंथियों को अपना दुश्मन मानती है. आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को चुनौती देती है। डीएमके और लेफ्ट अपने-अपने राज्यों की प्राथमिकताओं में व्यस्त हैं। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि क्या वो सिर्फ फ्लोर कोआर्डिनेशन की पार्टी बनकर रह जाएगी या फिर सबको साथ लेकर चलने का प्लान है.
बिहार में अगले तीन महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि 2026 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. बिहार, बंगाल और तमिलनाडु चुनाव से पहले राहुल गांधी ने विपक्ष को एक मंच पर लाकर बीजेपी को चुनौती देने का ताना-बाना बुन रहे हैं.
बंगाल में कांग्रेस ने आरजेडी और लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है तो बंगाल में गठबंधन की तस्वीर साफ नहीं है. टीएमसी के साथ कांग्रेस और लेफ्ट कैसे संतुलन बनाकर चलेगी, ये देखना होगा, लेकिन ममता बनर्जी की पार्टी के नेताओं ने राहुल की दावत में शिरकत कर बड़ा संदेश दिया है.
राहुल गांधी की डिनर पार्टी में लगभग 24 पार्टियां मौजूद रहीं. अखिलेश यादव से लेकर फारुख अब्दुल्ला और शरद पवार जैसे प्रमुख विपक्षी दल के नेता शामिल हुए. इसके अलावा टीएमसी ने भी शिरकत की थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विपक्ष ने राहुल गांधी को नेता के तौर पर स्वीकार कर लिया है, क्योंकि पिछले साल ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव जैसे कई नेताओं ने खुले मंच से राहुल गांधी को नेता मानने से इनकार किया.
ममता तो साफ बोल चुकी हैं कि किसी और को इंडिया गठबंधन का चेहरा बनाया जाए। शरद पवार की पार्टी से लेकर कम्युनिस्ट पार्टियां तक कांग्रेस पर हमलावर रही हैं। अब जब टीएमसी खुद राहुल गांधी के डिनर में शरीक रही तो शरद पवार भी पहुंचे थे. आम आदमी पार्टी भले ही राहुल की दावत में शामिल नहीं हुई, लेकिन एसआरआई के मुद्दे पर साथ खड़ी है तो सवाल है कि क्या सारे मतभेद दूर हो गए? क्या राहुल गांधी अब इंडिया ब्लॉक को लीड करने की स्थिति में आ गए हैं?
कुबूल अहमद