कर्नाटक में सिद्धारमैया की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरा होने के साथ ही मुख्यमंत्री परिवर्तन का मुद्दा गर्मा गया है. उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के समर्थक विधायकों का दिल्ली आने का सिलसिला लगातार जारी है. ऐसे में कार्यकाल पूरा करने का दावा करने वाले सीएम सिद्धारमैया के सुर बदल गए हैं और सत्ता परिवर्तन का फैसला कांग्रेस हाईकमान के पाले में डाल दिया गया है.
डीके शिवकुमार के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ने के संकेत देने के बाद उनके समर्थक विधायकों ने उन्हें सीएम बनाने की मांग को लेकर दिल्ली में डेरा डाल दिया है. वे कांग्रेस नेतृत्व से मिलकर डीके शिवकुमार को सीएम बनाने की मांग रखेंगे. इस तरह से कर्नाटक कांग्रेस की लड़ाई दिल्ली दरबार तक पहुंच गई है.
कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार अपना ढाई साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी है, इसके चलते ही डीके शिवकुमार के समर्थक नेता और विधायक अब सत्ता परिवर्तन की मांग कर रहे हैं. वहीं, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का कहना है कि कांग्रेस आलाकमान जो भी फैसला करेगा, उसे हमें और शिवकुमार दोनों को स्वीकार करना होगा.
सिद्धारमैया बनाम डीके शिवकुमार
साल 2023 में कांग्रेस कर्नाटक की चुनावी जंग जीतकर सरकार बनाई थी, उस समय सीएम को लेकर डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया आमने-सामने आ गए थे. शिवकुमार खेमे के सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व ने सत्ता साझा करने का समझौता 18 मई 2023 को किया था.
सिद्धारमैया, शिवकुमार, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, केसी वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला और सांसद डीके सुरेश के बीच लंबी बातचीत हुई थी. इस दौरान यह तय हुआ था कि ढाई-ढाई साल दोनों लोग सीएम रहेंगे.
डीके शिवकुमार ने शुरुआती ढाई सालों की मांग की थी, लेकिन वरिष्ठ होने का हवाला देकर सिद्धारमैया ने इनकार कर दिया था. इसके बाद समझौता हुआ था कि पहले सिद्धारमैया ढाई साल सीएम रहेंगे और बचा हुआ ढाई साल का कार्यकाल शिवकुमार पूरा करेंगे. इसी फॉर्मूले के तहत 2023 में सिद्धारमैया सीएम बने और डीके शिवकुमार डिप्टी सीएम बने थे.
सिद्धारमैया का मुख्यमंत्री के तौर पर ढाई साल का कार्यकाल 20 नवंबर को पूरा हो गया, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्होंने नहीं छोड़ी. ऐसे में पावर शेयरिंग के ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले को आधार बनाकर डीके शिवकुमार के समर्थक पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाना शुरू कर दिए हैं. इसके लिए उनके करीबी विधायकों का दिल्ली आने का सिलसिला लगातार जारी है ताकि पार्टी हाईकमान पर दबाव बना सकें.
कांग्रेस हाईकमान की पसंद कौन होगा?
कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी मुख्यमंत्री पद को लेकर लंबे समय से अंतर्कलह से जूझ रही है. मौजूदा सीएम सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच शह-मात का खेल चल रहा है. सिद्धारमैया लगातार दावा कर रहे थे कि वह अपने पद पर बने रहेंगे और अगले साल बजट भी पेश करेंगे। इसके जवाब में डीके शिवकुमार ने उन्हें 'ऑल द बेस्ट' कहा था. इसके बाद डीके शिवकुमार के समर्थक विधायकों का दिल्ली आने का सिलसिला शुरू हो गया और अलग-अलग समय पर तीन ग्रुप में आए है.
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सोमवार को साफ शब्दों में कहा कि कांग्रेस हाईकमान जो भी फैसला लेगा, वह और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार दोनों को उसे स्वीकार करना होगा। सिद्धारमैया ने कहा, 'हाईकमान तय करेगा कि मुझे मुख्यमंत्री पद पर बने रहना है या नहीं. अगर पार्टी लीडरशिप कहेगी कि मुझे जारी रखना है तो मैं जारी रखूंगा. अंतिम फैसला हाईकमान का होगा. मुझे भी और शिवकुमार को भी उसे मानना पड़ेगा.'
सिद्धारमैया ने अपने साथ-साथ डीके शिवकुमार के भविष्य का फैसला कांग्रेस हाईकमान के पाले में डाल दिया है. कांग्रेस लीडरशिप को अब तय करना है कि कर्नाटक में सत्ता की बागडोर सिद्धारमैया के हाथों में ही रहे या फिर डीके शिवकुमार को सौंप दी जाए? इसके चलते ही शिवकुमार के समर्थकों ने कांग्रेस हाईकमान पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है.
सिद्धारमैया का सियासी दांव आएगा काम?
शिवकुमार समर्थक विधायकों के दिल्ली में डेरा ज़माने के बीच शनिवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बेंगलुरु में मल्लिकार्जुन खड़गे के निवास पर एक घंटे से अधिक समय तक बंद कमरे में बैठक की थी. रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि इस बैठक में सिद्धारमैया ने मंत्रिमंडल में फेरबदल का प्रस्ताव जोर-शोर से रखा था.
सीएम सिद्धारमैया चाहते हैं कि पहले कैबिनेट में फेरबदल हो जाए. अगर हाईकमान कैबिनेट फेरबदल को मंजूरी दे देता है, तो इसका मतलब होगा कि सिद्धारमैया पूरा पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे. इससे शिवकुमार के सीएम बनने की संभावना कम हो जाएगी. वहीं, शिवकुमार का खेमा पहले सत्ता के नेतृत्व का परिवर्तन चाहता है, फिर उसके बाद कैबिनेट फेरबदल। इस तरह से दोनों अपने-अपने दांव चल रहे हैं.
हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात के बाद सिद्धारमैया के सुर बदले हैं और उन्होंने पार्टी हाईकमान पर छोड़ दिया है। शिवकुमार पहले से ही कांग्रेस नेतृत्व के भरोसे बैठे हैं. इस तरह कांग्रेस हाईकमान को देखना है कि कर्नाटक की सत्ता किसके हाथों में रहे. सिद्धारमैया ओबीसी चेहरा हैं तो डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं.
सिद्धारमैया कांग्रेस की बदली सियासत और ओबीसी की पॉलिटिक्स पर फ़ोकस देखते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पांच साल तक बने रहने का दावा कर रहे हैं. सीएम सिद्धारमैया इस बात को जानते हैं कि ओबीसी वोट की मजबूरी के चलते कांग्रेस का उन्हें हटाना आसान नहीं है. कर्नाटक के ओबीसी समुदाय पर उनकी पकड़ है और लोकप्रियता में भी पार्टी के तमाम नेताओं से आगे हैं. वहीं, शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय के बड़े नेता हैं और पुराने मैसूर क्षेत्र में कांग्रेस की जीत में उनकी भूमिका अहम रही.
सिद्धारमैया क्या शिवकुमार को सौंपेंगे कुर्सी?
सिद्धारमैया कर्नाटक में सबसे ज्यादा लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड अपने नाम करना चाहते हैं, लेकिन इस राह में डीके शिवकुमार सियासी अड़चन बन रहे हैं। सीएम के तौर पर सिद्धारमैया जनवरी 2026 तक बने रहते हैं तो कर्नाटक के सबसे लंबे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड देवराज अर्स का तोड़ देंगे. इसीलिए पांच साल सीएम रहने की बात सिद्धारमैया कर रहे हैं तो डीके शिवकुमार मौके की नज़ाकत को समझते हुए अपना दांव चल रहे हैं.
डीके शिवकुमार धैर्य के साथ अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. वह पार्टी और गांधी परिवार के खिलाफ कोई स्टैंड नहीं लेना चाहते हैं, जिसके लिए बहुत ही सावधानी के साथ हाईकमान की बात मानने की बात कह रहे हैं. अब जब सिद्धारमैया के सीएम रहते हुए ढाई साल का कार्यकाल पूरा हो गया है तो डीके के समर्थक उनके लिए सियासी लॉबिंग शुरू कर दिए हैं.
कर्नाटक में कांग्रेस के पास 135 विधायकों का बहुमत है और सरकार पूरी तरह सुरक्षित है, लेकिन यह आंतरिक कलह पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा रही है. कांग्रेस इसी तरह की कलह के चलते छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में अपना हश्र देख चुकी है. ऐसे में कर्नाटक की सियासत में गहराया सस्पेंस कांग्रेस को बेक़रार कर रहा है तो डीके शिवकुमार की भी टेंशन बन गया है.
कुबूल अहमद