अखिलेश यादव क्या यूपी में खोज रहे हैं लालू वाला रोल? कांग्रेस को लेकर गठबंधन पर एकतरफा ऐलान के मायने क्या

अखिलेश यादव ने एकतरफा ऐलान कर दिया है कि 2027 के यूपी चुनाव में भी कांग्रेस से गठबंधन जारी रहेगा. क्या अखिलेश यादव यूपी में लालू यादव वाला रोल खोज रहे हैं?

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अखिलेश यादव, राहुल गांधी और लालू यादव अखिलेश यादव, राहुल गांधी और लालू यादव

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 22 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 2:14 PM IST

समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में साथ आए थे. यूपी के दो लड़कों (अखिलेश यादव और राहुल गांधी) की ये जोड़ी इस बार हिट साबित हुई और गठबंधन ने 80 में से 43 सीटें जीत लीं. आम चुनाव नतीजों से उत्साहित दोनों दल गठबंधन जारी रखने की मंशा तो जाहिर कर रहे थे लेकिन दिल्ली और हरियाणा चुनाव में कांग्रेस के स्टैंड से भविष्य को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया था. अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खुद यह ऐलान कर दिया है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन यूपी चुनाव 2027 में भी जारी रहेगा.

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उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि सपा, इंडिया ब्लॉक के साथ ही यूपी चुनाव में जाएगी. कांग्रेस से गठबंधन को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इस एकतरफा ऐलान के अब सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या अखिलेश यूपी में लालू यादव वाला रोल खोज रहे हैं? इसकी बात करने से पहले लालू यादव के रोल की चर्चा भी जरूरी हो जाती है. दरअसल, लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा), दोनों ही जनता परिवार से निकली हैं.

बिहार में लालू यादव की पार्टी का बेस वोट मुस्लिम और यादव हैं और यूपी में इस वोटबैंक पर सपा की पकड़ मजबूत मानी जाती है. आरजेडी का 1999 से ही कांग्रेस से गठबंधन है. इस गठबंधन में लालू यादव और आरजेडी का रोल बड़े भाई का है. सीट शेयरिंग से लेकर तमाम फैसले लालू यादव ही लेते हैं. पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में यह देखने को भी मिला, जब लालू यादव ने कांग्रेस को एक-एक सीट के लिए पानी पिला दिया था. कांग्रेस के पूरा जोर लगाने के बाद भी आरजेडी पूर्णिया और बेगूसराय सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई और ग्रैंड ओल्ड पार्टी को ये फैसला मानना पड़ा था.

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अखिलेश यादव भी यूपी में लालू यादव वाला रोल ही चाहते हैं. लोकसभा चुनाव से लेकर यूपी उपचुनाव तक, अखिलेश के तेवर वैसे ही दिखे भी. लोकसभा चुनाव के समय अखिलेश ने कांग्रेस की डिमांड दरकिनार कर 17 सीटें देने का ऐलान किया और अंत में कांग्रेस को उतनी ही सीटों पर लड़ने की सहमति देनी पड़ी. अखिलेश ने तो सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत के दौरान कांग्रेस से अपने दावे वाली सीटों से संभावित उम्मीदवार के नाम देने तक के लिए कह दिया था. विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस भी बराबर सीटों पर लड़ने की दावेदारी कर रही थी लेकिन ऐसा नहीं हो सका. तमाम रस्साकशी के बाद अखिलेश ने कांग्रेस की चारू केन के लिए एक सीट दी, वह भी साइकिल के सिंबल पर. कांग्रेस के संगठन की जैसी तस्वीर बिहार में है, कमोबेश वैसा ही हाल यूपी में भी है.  

अखिलेश के ऐलान के मायने क्या?

राजनीति में फैसले रातोंरात नहीं होते, खासकर गठबंधन के. गुणा-गणित, मोल-तोल, नफा-नुकसान के आकलन और लंबी कवायद के बाद ही राजनीतिक पार्टियां गठबंधन को लेकर फैसला लेती हैं. अखिलेश यादव की राजनीति का सेंटर पॉइंट यूपी है और वह खुद भी यह कई बार कह चुके हैं. 2019 के आम चुनाव में जब सपा और बसपा साथ आए थे, तब भी अखिलेश ने मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की बात कही थी. अब अखिलेश ने कांग्रेस के साथ गठबंधन का एकतरफा ऐलान कर दिया है तो इसके क्या मायने हैं?

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अखिलेश ने इस एक दांव से कांग्रेस को उलझा दिया है. अगर ऐसी परिस्थितियां बनती हैं कि कांग्रेस से गठबंधन नहीं हो पाए तो सपा के पास इसके लिए ग्रैंड ओल्ड पार्टी को ही जिम्मेदार ठहराने का आधार होगा. अखिलेश और उनकी पार्टी यह कहने की स्थिति में होगी कि हमने तो दो साल पहले ही ये ऐलान कर दिया था कि हम गठबंधन में चुनाव लड़ेंगे.

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कांग्रेस को साथ लेकर चुनाव लड़ने के ऐलान के पीछे अखिलेश के दो मकसद हैं- एंटी वोट का बिखराव रोकना और चुनावी फाइट को सीधे मुकाबले का रूप देना. हरियाणा से लेकर दिल्ली तक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने जिस तरह गठबंधन से परहेज किया और एंटी बीजेपी वोटों का बिखराव हुआ, उसे लेकर अखिलेश अभी से ही अलर्ट मोड में हैं. 

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