प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में जारी राष्ट्रगीत वंदे मातरम पर चर्चा के दौरान कहा कि वंदे मातरम के गीत ने देश की आजादी को ऊर्जा दी. उन्होंने कहा कि वंदेमातरम् में हजारों वर्ष की सांस्कृतिक ऊर्जा भी थी, इसमें आजादी का जज्बा भी था और आजाद भारत का विजन भी था.
लोकसभा में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर आयोजित चर्चा में पीएम मोदी ने वंदे मातरम के कहा कि जब वंदे मातरम् के 50 वर्ष पूरे हुए थे, तब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था. जब इसके 100 वर्ष पूरे हुए, तब देश आपातकाल के अंधेरे में था. आज जब इसके 150 वर्ष हो रहे हैं, तो भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और तेजी से आगे बढ़ रहा है.
वंदे मातरम के इतिहास की चर्चा करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि वंदे मातरम के साथ विश्वासघात क्यों हुआ? इसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों हुआ? वो कौन सी ताकत थी जिसकी इच्छा खुद पूज्य बापू की भावनाओं पर भी भारी पड़ गई. जिसने वंदे मातरम जैसी पवित्र भावना को विवादों में घसीट दिया.
पीएम ने कहा कि हमें उन परिस्थितियों को भी हम अपने नई पीढ़ी को बताएं, जिसकी वजह से वंदे मातरम् की वजह से विश्वासघात किया गया.
लोकसभा में पीएम नरेंद्र मोदी ने आगे कहा कि वंदे मातरम् के प्रति मुस्लिम लीग की विरोध की राजनीति तेज हो रही थी. जिन्ना ने लखनऊ से 15 अक्तूबर 1937 को वंदे मातरम् के विरुद्ध नारा दिया. कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा, बजाय कि नेहरू जी मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों का तगड़ा जवाब देते, करारा जवाब देते, मुस्लिम लीग के बयानों की निंदा करते और वंदे मारतम् के प्रति खुद की भी और कांग्रेस की निष्ठा को प्रकट करते... लेकिन यहां उल्टा हुआ, वो ऐसा क्यों कर रहे हैं , न तो जाना न तो पूछा, बजाय इसके उन्होंने वंदे मातरम् की ही पड़ताल शुरू कर दी.
पीएम मोदी ने कहा कि जिन्ना के विरोध के 5 दिन बाद ही 20 अक्तूबर 1937 को नेहरूजी ने सुभाष बाबू को चिट्ठी लिखी, चिट्ठी में जिन्ना की भावना से नेहरू जी ने अपनी सहमति बताते हुए कहा, "वंदे मातरम की आनंद मठ वाली पृष्ठ भूमि मुसलमानों को इरिटेट कर सकती है.' नेहरू जी कहते हैं, "मैंने वंदे मातरम गीत का बैकग्राउंड पढ़ा है, मुझे लगता है कि ये जो बैकग्रांउड है इससे मुस्लिम भड़केंगे." इसके बाद कांग्रेस की तरफ से बयान आया कि 26 अक्तूबर से कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक कलकत्ता में होगी जिसमें वंदे मातरम् के उपयोग की समीक्षा की जाएगी."
पीएम ने कहा कि पूरा देश हतप्रभ था. पूरे देश में इस प्रस्ताव के विरोध प्रभात फेरी निकाली गई. लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि 26 अक्तूबर को देश ने इस पर समझौता कर लिया. पीएम मोदी ने कहा कि इस फैसले के पीछे ये चोला पहना गया कि ये सामाजिक सदभाव के लिए किया गया. लेकिन कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटना टेक दिया.
इंडिया टुडे पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार इतिहासकार सब्यसाची भट्टाचार्य की किताब Vande Mataram: The Biography of a Song में इस विवाद का विस्तृत विवरण सामने आता है.
मैं अपने पिता के एकेश्वरवादी आदर्शों में पला-बढ़ा हूं
इंडिया टुडे की इस रिपोर्ट के अनुसार इस गीत के 'कांट-छांट' में टैगोर की सहमति भी ली गई थी. सुभाष चंद्र बोस ने इस गीत पर टैगौर की राय जानने के लिए उन्हें पत्र लिखा था और जवाहरलाल नेहरू ने भी उनसे परामर्श किया था. बोस पूरे गीत को मूल रूप में बनाए रखने के पक्ष में थे, लेकिन उन्होंने टैगोर के तर्क को पूरे ध्यान से सुना.
गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने इस बदलाव का समर्थन करते हुए नेहरूजी को लिखा था, "इसके पहले भाग में कोमलता और भक्ति की भावना है, और मातृभूमि के सुंदर और कल्याणकारी पहलुओं को उकेरा गया है. यह मेरे लिए विशेष तौर पर इतना आकर्षक कि मुझे इसे कविता के बाकी हिस्सों और उस पुस्तक के उन अंशों से अलग करने में कोई कठिनाई नहीं हुई जिसका ये एक हिस्सा है, और जिसकी सभी भावनाओं के साथ मैं पूरी तरह सहमत नहीं हो सकता क्योंकि मैं अपने पिता के एकेश्वरवादी आदर्शों में पला-बढ़ा हूं.”
...मुस्लिम भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली हो
टैगोर ने आगे कहते हैं, “मेरा स्पष्ट मत है कि बंकिम चंद्र की 'वंदे मातरम्' कविता को उसके संदर्भ के साथ पढ़ने पर ऐसी व्याख्या की जा सकती है जो मुस्लिम भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली हो. लेकिन एक राष्ट्रीय गीत, भले ही वह उसी से लिया गया हो, जो स्वतःस्फूर्त रूप से मूल कविता के केवल पहले दो छंदों तक सीमित हो गया है, हमें हर बार उसकी पूरी रचना की याद दिलाने की जरूरत नहीं है, और न ही वह कहानी दोहराने की जरूरत है जिससे वो संयोगवश जुड़ा था. इसने एक अलग व्यक्तित्व और अपना एक प्रेरक महत्व प्राप्त कर लिया है जिसमें मुझे किसी भी संप्रदाय या समुदाय को ठेस पहुंचाने वाली कोई बात नजर नहीं आती.”
वंदे मातरम कैसे बना राष्ट्रगीत
वंदे मातरम की रचना बंगाल के महान कवि बंकिम चंद्र चटर्जी ने की थी. ये गीत 7 नवंबर, 1875 को साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित हई थी. बाद में इस गीत को बंकिम चंद्र चटर्जी के मशहूर उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया. आनंदमठ 1882 में प्रकाशित हुआ.
1905 में बंगाल विभाजन के दौरान तो इस गीत को और लोकप्रियता मिली. यह गीत पूरे बंगाल का गीत बन गया. 1906 में भारत में मुस्लिम लीग की स्थापना होती है और देश की राजनीति में सांप्रदायिकता का प्रवेश होता है. मुस्लिम आंदोलनकारी वंदे मातरम पर भी सवाल उठने लगे.
1923 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में भी इसका विरोध देखने को मिला जब कांग्रेस की अध्यक्षता कर रहे मोहम्मद अली जौहर ने वंदे मातरम गाने से इनकार कर दिया और गायन शुरू होते ही अध्यक्ष की कुर्सी से उठकर चले गए. धीरे-धीरे यह मुद्दा तूल पकड़ता गया.
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