सरिस्का टाइगर रिजर्व पर क्यों छिड़ा विवाद? क्या है सरकार का प्लान और किस बात का हो रहा विरोध

सरिस्का टाइगर रिजर्व के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट एरिया की सीमा को फिर से तय करने का विरोध किया जा रहा है. वन्यजीव प्रेमी और पर्यावरणविद इस बदलाव को सरिस्का के लिए खतरा बता रहे हैं. वहीं सरकार का कहना है कि इससे वन क्षेत्र बढ़ेगा जो कि बाघों के लगातार बढ़ते कुनबे के लिए जरूरी है.

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सरिस्का टाइगर रिजर्व के सीमांकन पर विवाद सरिस्का टाइगर रिजर्व के सीमांकन पर विवाद

हिमांशु शर्मा

  • अलवर,
  • 30 जून 2025,
  • अपडेटेड 6:15 PM IST

राजस्थान का सरिस्का टाइगर रिजर्व एक बार फिर से पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है. इस बार सरिस्का के जंगल क्षेत्र को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लग रहे हैं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश की सोशल मीडिया पोस्ट के बाद यह मुद्दा राजनीतिक चर्चा का भी विषय बन चुका है. राज्य और केंद्र सरकार सरिस्का जंगल के क्षेत्र का दायरा बढ़ाने का दावा कर रही है, जबकि विपक्ष का आरोप है कि खनन माफिया और होटल कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरिस्का जंगल से छेड़छाड़ की जा रही है.

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सरिस्का का दायरा बढ़ेगा

अलवर स्थित सरिस्का टाइगर रिजर्व का एरिया अब 1873 वर्ग किलोमीटर का हो जाएगा. इसमें अलवर- जयपुर वन मंडल का जंगल भी शामिल किया जा रहा है. सरिस्का प्रशासन ने यह प्रस्ताव सरकार को भेजा है. जुलाई तक इस प्रस्ताव पर मुहर लगने की संभावना है. सरिस्का का जंगल वर्तमान में 1213 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला है. इसमें 886 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र जंगल का कोर एरिया है, जबकि अन्य क्षेत्र बफर जोन में शामिल है.

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टाइगर रिजर्व का यह सीमांकन साल 2005 से चला आ रहा है और हाल के वर्षों में सरिस्का के जंगलों में बाघों की संख्या बढ़ रही है. फिलहाल जंगल में 48 बाघ-बाघिन और उनके शावक हैं, इनमें करीब 26 शावक शामिल हैं. सरिस्का का कुल क्षेत्रफल 1166 वर्ग किलोमीटर है. 1997 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरिस्का का सीमांकन हुआ था. इसमें 866 वर्ग किलोमीटर कोर एरिया है और बाकी बफर एरिया जोड़कर कुल दायरा 1166 वर्ग किलोमीटर किया गया था.

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खदानों पर लग गया था ब्रेक

साल 2011 सेंट्रल एम्पावरमेंट कमेटी (CEC) ने बाघों के मूवमेंट के आधार पर क्षेत्रफल तय करने के निर्देश दिए थे. साल 1997 में गजट नोटिफिकेशन के दौरान 197 खाने बंद कर दी गई थीं. उसके बाद 2023 में सरकार ने कोर एरिया के एक किलोमीटर में व्यावसायिक गतिविधि बंद करने के आदेश दिए थे. इलाके में नई खदानों का लाइसेंस रिन्यू नहीं किया गया और इसलिए टहला इलाके की सभी मार्बल की खदान बंद पड़ी हैं. फिलहाल सिर्फ झिरी के एरिया में 15 से 20 खदान चल रही हैं. साथ ही कई होटलों पर भी तलवार लटक रही है, क्योंकि वे भी क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट यानी CTH एरिया में बने हुए हैं.

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सरिस्का टाइगर रिजर्व के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट एरिया की सीमा को फिर से तय करने का ही विरोध किया जा रहा है. वन्यजीव प्रेमी और पर्यावरणविद इस बदलाव को सरिस्का के लिए खतरा बता रहे हैं. इसे लेकर नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं. उनका कहना है कि सरकार सीटीएच एरिया को कम कर रही है, जहां लगातार टाइगर्स का मूवमेंट देखा जाता है और उसकी जगह आम किसानों की जमीन को लेकर क्षेत्रफल को बढ़ाने की कोशिश कर रही है. इस पूरी योजना में सरकार कुछ लोगों को फायदा पहुंचाना चाहती है और इसमें कहीं न कहीं बहुत बड़े स्तर का खेल चल रहा है.

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वन क्षेत्र बढ़ाने का दावा

वहीं, राजस्थान सरकार के वन और पर्यावरण मंत्री संजय शर्मा का कहना है कि सीटीएच का मतलब टाइगर का संरक्षण, जंगल का संरक्षण और उसे सुरक्षित रखना है. उन्होंने इसका विरोध करने वालों पर कहा कि हमारा वन क्षेत्र बढ़ा है और हमारी कोशिश है कि इसे ज्यादा बढ़ाया जाए. मंत्री ने कहा कि जिस तरह से टाइगर का कुनबा बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे वन क्षेत्र भी बढ़ना चाहिए और बफर एरिया भी बढ़ना चाहिए.

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मंत्री संजय शर्मा ने बताया कि 26 जून को राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की बैठक हुई, जिसमें केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने अनुमोदित किया है कि सरिस्का के वन क्षेत्र को बढ़ाया जाए. उन्होंने कहा कि विरोध करने वालों के सामने जब इसके नतीजे आएंगे तब जाकर लोगों को विश्वास होगा.

साल 2023 मामला कोर्ट में जाने के बाद कोर एरिया का एक किलोमीटर और बफर एरिया के 10 किलोमीटर में व्यावसायिक गतिविधि पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब टहला क्षेत्र में टाइगर मूवमेंट को नहीं मानते हुए बफर एरिया को बढ़ाने और टहला एरिया को सरिस्का के दायरे से हटाने की तैयारी हो रही है.

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विपक्ष ने उठाए सवाल

पूर्व पर्यावरण मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने रविवार को इस मामले पर एक पोस्ट में कहा, 'बाघों के लिए जरूरी आवास तबाह हो जाएगा. बफर एरिया में उस नुकसान की भरपाई करना कागज पर एक समाधान है जो सरकार की अंतरात्मा को शांत कर सकता है लेकिन यह विनाशकारी होगा, खासकर बाघों की आबादी के लिए जो शुरू से ही अलग-थलग हैं.'

उन्होंने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अलवर से हैं, राजस्थान के पर्यावरण मंत्री भी अलवर से हैं. निश्चित रूप से यह डबल इंजन खदान मालिकों को फायदा पहुंचाने के लिए इस तरह के कॉरिडोर का समर्थन नहीं कर सकता. आखिर में सुप्रीम कोर्ट को आगे आना होगा, क्योंकि उसके अपने निर्देशों का उल्लंघन किया जा रहा है.

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