प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत देश के आठ राज्यों में गरीबों के पक्के मकान का सपना अधर में लटका हुआ है. बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों में लाखों लाभार्थी सरकारी किस्तों और अलॉटमेंट के इंतजार में सर्दी की रातें खुले आसमान या कच्चे घरों में बिताने को मजबूर हैं.
बिहार के वैशाली में तीसरी किस्त न मिलने से घरों की छतें अधूरी हैं, जबकि भोपाल में सात साल से बिल्डिंग खड़ी होने के बावजूद गरीबों को चाबियां नहीं मिली हैं.
तकनीकी खराबियों और फंड की कमी की वजह से लाभार्थियों को कर्ज लेकर तिरपाल के सहारे रहना पड़ रहा है.
बिहार में लटकी छत और बढ़ता कर्ज
बिहार के वैशाली जिले के हरपुर गोपाल गांव में रहने वाले देवेंद्र महतो, आशा देवी और उर्मिला देवी की कहानी बेहद दर्दनाक है. इन लोगों ने 2020 से पहले आवास के लिए आवेदन किया था, लेकिन 2025 में जाकर उन्हें पहली और दूसरी किस्त मिली. उर्मिला देवी को 80 हजार रुपये तो मिले, जिससे उन्होंने दीवारें खड़ी कर लीं, लेकिन तीसरी किस्त अटकने से छत नहीं डल पाई. अब परिवार कर्ज लेकर सीमेंट की चादरों के नीचे रहने को मजबूर है. आवास सहायक का दावा है कि फंड में पैसा नहीं है.
भोपाल में तैयार हैं फ्लैट्स, फिर भी झुग्गी में बसे गरीब
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मुख्यमंत्री कार्यालय से कुछ ही दूरी पर गरीबों के सपनों का आशियाना तो खड़ा है, लेकिन सात साल बीतने के बाद भी गृहप्रवेश नहीं हो सका है. चोखेलाल और नासिर खान जैसे लाभार्थी ईडब्ल्यूएस कैटेगरी के तहत फ्लैट मिलने का इंतजार कर रहे हैं. इन लोगों ने बैंक से लोन लिया है, जिसकी किश्तें वे आज भी भर रहे हैं, लेकिन रहने के लिए आज भी झुग्गियों में रहने को मजबूर हैं. सरकारी अंधेरेगर्दी ने इनके पक्के घर के सपने पर ग्रहण लगा दिया है.
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राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इंतजार की लंबी कतार
राजस्थान के दौसा जिले में नवल किशोर मीणा और संतोष मीणा पिछले सात साल से अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं. कड़ाके की ठंड में यह परिवार खेतों के बीच तिरपाल और बांस-बल्लियों के सहारे जिंदगी गुजार रहा है. जिला कलेक्टर का कहना है कि तकनीकी कारणों से मकान नहीं मिल पाए हैं.
वहीं, छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में अनु जैसी महिलाएं फॉर्म भरकर सालों से बैठी हैं, उन्हें पीएम मोदी के वादे पर भरोसा तो है, लेकिन सिस्टम की सुस्ती से उनके पक्के घर की उम्मीद अब दम तोड़ रही है.
पंजाब में अधिकारियों की गलती का भारी खामियाजा
पंजाब के फरीदकोट में प्रशासन की एक गलत सलाह ने गरीबों को सड़क पर ला दिया है. नगर पालिका ने 284 परिवारों से कहा कि अगर योजना का लाभ चाहिए तो पुराने मकान तोड़ने होंगे. लोगों ने पैसे की उम्मीद में अपने आशियाने उजाड़ दिए, लेकिन अब अधिकारी वेरिफिकेशन में गलती की दलील देकर राशि देने से इनकार कर रहे हैं. आज ये परिवार धर्मशालाओं में रहने को मजबूर हैं और अपने हक के लिए नगर पालिका के बाहर धरना दे रहे हैं. सात करोड़ से अधिक की राशि अब भी अधर में है.
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हरियाणा और महाराष्ट्र में अटकी दूसरी किस्त
हरियाणा के करनाल में श्यामलाल जैसे लाभार्थियों ने पहली किस्त मिलने के बाद उधार लेकर मकान का काम शुरू करवाया, लेकिन दूसरी किस्त साल भर से नहीं आई. अब वे आधे-अधूरे घर को छोड़कर दूसरों के मकानों में किराए पर रह रहे हैं. महाराष्ट्र के पुणे में भी देवराम कडाले को दो साल पहले अर्जी देने के बाद सिर्फ 85 हजार रुपये मिले हैं, जबकि डेढ़ लाख का वादा था. देश के कई हिस्सों में लाभार्थी अफसरों के चक्कर काटकर थक चुके हैं, पर उनकी सुनवाई नहीं हो रही है.
सिस्टम के पेच में फंसा गरीबों का आशियाना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संकल्प है कि जब तक हर गरीब को पक्का घर नहीं मिल जाता, वे रुकने वाले नहीं हैं. उन्होंने पिछले 11 साल में 4 करोड़ घर बनाने और अगले 3 करोड़ नए घर बनाने का टारगेट रखा है. हालांकि, आजतक की पड़ताल बताती है कि सरकारी बाबू और फंड की कमी इस नेक योजना के रास्ते में रोड़ा बन रहे हैं. जब तक ग्राउंड लेवल पर किस्तों का भुगतान समय पर नहीं होगा और भ्रष्टाचार कम नहीं होगा, तब तक गरीबों की किस्मत नहीं बदलेगी.
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आजतक ब्यूरो