...तो मालेगांव ब्लास्ट का गुनहगार कौन? साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के बरी होने के बाद जांच पर उठे सवाल

साल 2008 में धमाका हुआ. 11 आरोपियों के खिलाफ जांच हुई और 2025 में सब बरी कर दिए गए. 17 साल पहले एक धमाका हुआ, 6 लोग मारे गए, 101 जख्मी हुए. 17 साल बाद फैसला आया तो पता चला कि मालेगांव में धमाका करने के सभी आरोपी बेगुनाह हैं.

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मालेगांव बम धमाका मामले में सभी आरोपी बरी (Photo: File) मालेगांव बम धमाका मामले में सभी आरोपी बरी (Photo: File)

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 7:28 PM IST

साल 2008 के मालेगांव बम धमाके के 17 साल बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया कि जांच एजेंसियों ने जिन लोगों के खिलाफ आरोप लगाए थे, वो सातों आरोपी निर्दोष हैं. क्योंकि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत और गवाह मौजूद नहीं हैं. अदालत ने कहा कि सिर्फ नैरेटिव के आधार पर किसी को दोषी करार नहीं दिया जा सकता. जस्टिस लाहोटी ने फैसले में लिखा कि अभियोजन पक्ष ठोस सबूत और विश्वसनीय गवाह पेश नहीं कर सका. 

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अदालत ने माना कि आरडीएक्स और बम से लेकर बाइक के मालिकाना हक तक, घटनास्थल के सबूतों और फॉरेंसिक एनालिसिस से लेकर आरोपियों की फोन टैपिंग तक...अभिनव भारत के फंड का आतंक में इस्तेमाल से लेकर धमाके की साजिश तक एक भी आरोप एटीएस और एनआईए साबित नहीं कर सका. 

इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दी जाएगी, सरकार देगी या नहीं, यह कहना मुश्किल है, लेकिन जिनके घर के लोग मारे गए हैं वो जरूर चुनौती दे सकते हैं. इस फैसले के साथ ही राजनीति में जबरदस्त जुबानी जंग शुरू हो गई है. बीजेपी के निशाने पर कांग्रेस है, आरोप लगाया जा रहा है कि कांग्रेस ने राजनीतिक फायदे की मंशा से हिंदू और भगवा आतंकवाद जैसे शब्द गढ़ने के लिए निर्दोष लोगों को फंसाया था. 

बीजेपी के नेता जोरशोर से कहते नजर आ रहे हैं कि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता है. ऐसा ही केंद्रीय गृह मंत्री ने कल ही संसद में कहा था. उसे आज हर भाजपाई नेता दोहरा रहा है लेकिन पॉलिटिकल नैरेटिव, वोट बैंक के फायदे और अदालत के फैसले से आगे अहम सवाल जांच एजेंसियों की नाकामी को लेकर उठे हैं. क्या जांच एजेंसियां नाकाम हैं या सियासत कामयाब? 

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धमाका हुआ था, दोषी कोई नहीं...

साल 2008 में धमाका हुआ. 11 आरोपियों के खिलाफ जांच हुई और 2025 में सब बरी कर दिए गए. 17 साल पहले एक धमाका हुआ. 6 लोग मारे गए. 101 जख्मी हुए. 11 आरोपियों पर चार्जशीट हुई. 17 साल बाद फैसला आया तो पता चला कि मालेगांव में धमाका करने के सभी आरोपी बेगुनाह हैं.

अदालत में जब फैसला सुनाया जाने लगा तो चार्जशीट में लगाए गए आरोप एक-एक करके ढेर होते गए. आरोप था कि कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स लाया लेकिन इसके सबूत नहीं मिले. कर्नल पुरोहित ने बम बनाया...इसके भी सबूत नहीं, वो बाइक साध्वी प्रज्ञा की थी...इसके सूबत नहीं हैं. घटना स्थल पर बाइक किसने खड़ी की...इसके सबूत नहीं हैं, घटनास्थल पर पत्थरबाजी हुई थी मगर किसने की सबूत नहीं है. 

यह भी पढ़ें: सबूतों का अभाव, कबूलनामे पर उठे सवाल... मालेगांव केस के आरोपियों को बरी करते हुए कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ लेकिन किसने किया सबूत नहीं है. धमाके के बाद पुलिस की बंदूक छीनी गई लेकिन किसने छीनी? सबूत नहीं साजिश के साथ विस्फोट को अंजाम दिया गया, ये भी साबित नहीं हो सका और आरोप था कि अभिनव भारत के फंड का आतंक में इस्तेमाल हुआ लेकिन सबूत नहीं मिले. 

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जब अदालत को सबूत नहीं मिले तो वो सारे के सारे आरोपी बरी हो गए, जिन्हें जांच एजेंसियों ने बरसों तक आरोपी बनाकर रखा, महीनों तक जेल में रखा, हफ्तों तक टॉर्चर किया था. उनमें से कोई अदालत में रो रहा था, कोई इंसाफ के लिए शुक्रिया अदा कर रहा था.

  • आरोपी नंबर 1- प्रज्ञा सिंह ठाकुर- बरी 
  • आरोपी नंबर 4- मेजर (रि.)रमेश उपाध्याय- बरी 
  • आरोपी नंबर 5- समीर कुलकर्णी- बरी 
  • आरोपी नंबर 6- अजय रहिरकर- बरी 
  • आरोपी नंबर 9- ले.क.(रि.) प्रसाद पुरोहित- बरी 
  • आरोपी नंबर 10- सुधाकर धर द्विवेदी- बरी 
  • आरोपी नंबर 11- सुधाकर चतुर्वेदी- बरी 

कोर्ट ने कहा कि मालेगांव बम धमाके में जांच एजेंसी ने नैरेटिव तो गढ़े लेकिन अभियोजन ने कोई ऐसा सबूत नहीं पेश किया, जिससे आरोपियों को दोषी ठहराया जा सके. 

यह भी पढ़ें: सेना में तैनात साथी बन गए ब्रिगेडियर, अब कर्नल पुरोहित का क्या होगा? मालेगांव केस में बरी होने पर कही ये बात

अदालत के इस फैसले पर सियासत सुलग गई. बीजेपी इसे हिंदुओं के खिलाफ कांग्रेस की साजिश का हथकंडा बता रही थी. बीजेपी विरोधी इसे जांच एजेंसियों की नाकामी बता रहे थे और अपनों को खो चुके पीड़ित ऊपरी अदालत में चुनौती की बात कह रहे थे. लेकिन बड़ी बहस भगवा आतंकवाद का शिगूफा गढ़ने वाली सियासत में छिड़ गई. 

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बीजेपी अब कांग्रेस के नेताओं पर हिंदू, हिंदुत्व और भगवा के खिलाफ साजिश करने के आरोप लगा रही है लेकिन विपक्षी दल कभी जांच पर, कभी सियासी शह पर तो कभी सत्ता की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं. 

2 फैसले...100 सवाल

मुंबई ट्रेन ब्लास्ट में सभी आरोपी बरी, मालेगांव ब्लास्ट में सभी बरी. नैरेटिव की राजनीति एक तरफ लेकिन 2006 के मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट में मारे गए 189 लोग और 2008 के मालेगांव ब्लास्ट में मारे गए 6 लोगों का मुजरिम कौन था...इसे जांच एजेंसियां साबित नहीं कर सकीं. यूं कहें कि किसी अदृश्य शक्ति ने जांच एजेंसियों को गुनाह साबित नहीं करने दिया. 

अदालत के इस फैसले पर सियासत चाहे जितनी कुलांचे भरे लेकिन जम्हूरियत के निजाम में इंसाफ को लेकर अवाम का यकीन कमजोर होता है. जो न तो मुल्क के लिए मुफीद है, न अमन और तरक्की के लिए. 

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