गेहूं रोकने की धमकी, पोखरण के समय सैंक्शन और अब हैवी टैरिफ की धौंस... इतिहास गवाह है अमेरिकी प्रेशर के आगे नहीं झुका है भारत!

अमेरिका राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन की धमकी से बिना डरे भारत के तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने कहा, "बंद कर दीजिए गेहूं देना." उन्होंने अमेरिका से गेहूं लेने से ही इनकार कर दिया था. इसके बाद दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली हुई और फिर भारत ने अपने नागरिकों का पेट भरने के लिए हरित क्रांति की शुरुआत की और आत्मनिर्भरता की कहानी लिखी.

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 1965 की लड़ाई में अमेरिका ने भारत का गेहूं रोकने की धमकी दी थी. (Photo: ITG) 1965 की लड़ाई में अमेरिका ने भारत का गेहूं रोकने की धमकी दी थी. (Photo: ITG)

पन्ना लाल

  • नई दिल्ली,
  • 01 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 11:41 AM IST

अमेरिकी दादागीरी का जवाब भारत ने हमेशा सामने से दिया है. न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का ये सरदार दुनिया को हमेशा अपने चश्मे से देखता है. इसने विश्व के मामलात को कभी न्याय और निष्पक्षता के तराजू पर नहीं तोला. 1947 में आजाद हुआ भारत जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में गुट निरपेक्ष नीति पर चला तो अमेरिका तिलमिला कर रह गया. ये नए-नए स्वतंत्र हुए भारत की आजाद और दबाव मुक्त विदेश नीति की पहली मुनादी थी. 

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तब से लेकर आज तक भारत ने अपनी फॉरेन पॉलिसी में स्वायत्तता और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी है. एक वैश्विक महाशक्ति होने के नाते अमेरिका बार-बार भारत पर अपनी नीतियों को लागू करने के लिए आर्थिक, कूटनीतिक या सैन्य दबाव बनाने की कोशिश करता रहा है. फिर भी भारत ने कई महत्वपूर्ण मौकों पर इन दबावों के आगे न झुकते हुए अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता को बनाए रखा और यूएस पॉलिसी मेकर्स को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अपनी विदेश नीति और आर्थिक नीति विदेशी ऑडियंस को खुश करने के लिए नहीं बनाता है. 

अब जरा सोचिए, भारत पाकिस्तान के साथ युद्ध के बीच में है. इंडिया अपनी जनता को रोटी देने के लिए अमेरिकी गेहूं पर निर्भर है. इसी दौरान अमेरिका से धमकी आती है कि युद्ध बंद कीजिए नहीं तो गेहूं रोक दिया जाएगा. भारत से जवाब आता है रोक दीजिए. फर्क नहीं पड़ता है. 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका ने एक बार फिर भारत पर आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगा दिया. इस बार भी भारत डिगा नहीं. आइए इतिहास बदल देने वाले इन घटनाओं को समझें. 

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1956 का युद्ध और हमारी रोटी पर अमेरिका की नजर

1962 के भारत चीन जंग के बाद भारत का अन्न भंडार चिंताजनक था. जब लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने तब भारत खाद्य सुरक्षा को लेकर जागरूक नहीं हुआ था. देश में रोटी के लाले थे. खाने का संकट था. 1965 में मॉनसून कमजोर रहा. देश में अकाल की नौबत आ गई. इसी दौरान मौके का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान ने भारत हमला कर दिया. 

5 अगस्त 1965 को 30 हजार पाकिस्तानी सैनिक एलओसी पार करके कश्मीर में घुस आए. भीषण जंग हुई. भारत की सेना लाहौर तक पहुंच गई थी.  

यह वो दौर था जब अमेरिका पीएल-480 स्कीम के तहत हमें गेहूं की सप्लाई करता था. 

एक अमेरिकी रिपोर्ट में भारत के खाद्य संकट की चर्चा है. इसमें लिखा है, "भारत के नेताओं को पीएल 480 कटऑफ का डर है. अगर ये शिपमेंट रोक दिए गए, तो भारत को गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा. भारत आत्मनिर्भर होने के लिए पर्याप्त खाद्यान्न नहीं उगाता, उसकी हालिया फसल बहुत खराब रही है."

इस लड़ाई के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने शास्त्रीजी को धमकी दी- अगर युद्ध नहीं रुका तो अमेरिका का गेहूं भेजना बंद कर दिया जाएगा. बता दें कि ये वो दौर था जब भारत में कृषि क्रांति नहीं हुई थी. द्वितीय विश्व युद्ध से उबरे दुनिया भर के मुल्कों में खाने की किल्लत थी. भारत के सामने 48 करोड़ लोगों का पेट भरने की चुनौती दी.

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जॉनसन की धमकी से बिना डरे भारत के तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने कहा, "बंद कर दीजिए गेहूं देना. इतना ही नहीं, उन्होंने अमेरिका से गेहूं लेने से भी साफ इनकार कर दिया था. 

शास्त्री जी ने राष्ट्रीय एकता और आत्मनिर्भरता का आह्वान किया. एक प्रसिद्ध किस्सा है जिसके अनुसार शास्त्री जी ने अपनी पत्नी से कहा था कि वह एक दिन खाना न बनाए, क्योंकि वह यह देखना चाहते थे कि बिना भोजन के कैसे रहा जा सकता है, जिससे देश की स्थिति को समझा जा सके. 

शास्त्री जी ने "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया और देश को खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने के लिए प्रेरित किया. अक्टूबर 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली हुई. इस रैली में शास्त्री ने पहली बार-जय जवान जय किसान का नारा दिया. लाल बहादुर शास्त्री ने लोगों से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने को कहा, यही नहीं उन्होंने खुद भी व्रत रखना शुरू कर दिया था. 

यह दिखाता है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखी और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा के लिए कदम उठाए. 

1998 का परमाणु परीक्षण

1998 में भारत ने जब पोखरण में परमाणु हथियारों का परीक्षण किया तो अमेरिका ने फिर से अपनी चौधराहट दिखानी शुरू कर दी. 11 और 13 मई, 1998 को भारत ने पोखरण टेस्ट रेंज में पांच परमाणु परीक्षण किए, जिन्हें पोखरण-II (ऑपरेशन शक्ति) कहा गया. ये परीक्षण भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए थे. 

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द्वितीय विश्व युद्ध में जापान पर दो दो परमाणु बम गिरा चुका अमेरिका भारत के परमाणु शक्ति बनने से नाराज था. उसने भारत पर प्रतिबंध लगा दिए. ये प्रतिबंध ग्लेन संशोधन के तहत लगाए गए जो 1994 के आर्म्स एक्सपोर्ट कंट्रोल एक्ट का हिस्सा था.  इनमें सैन्य बिक्री और हथियारों की बिक्री के लिए लाइसेंस रद्द करना. अमेरिकी निर्यात-आयात बैंक (EXIM) और ओवरसीज प्राइवेट इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन (OPIC) द्वारा नए ऋण और क्रेडिट गारंटी को रोकना. और जैसे विश्व बैंक से भारत को मिलने वाले गैर-मानवीय ऋणों का विरोध करना शामिल था. 

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने इन प्रतिबंधों के सामने झुकने से इनकार किया. भारत ने स्पष्ट किया कि परमाणु परीक्षण उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक थे. खासकर तब जब भारत के पड़ोसी चीन और पाकिस्तान जैसे देश हों. 

कुछ दिनों के बाद भारत ने अमेरिका के साथ कूटनीतिक बातचीत शुरू की. तब भारत के विदेश मंत्री जसवंत सिंह थे और अमेरिका की ओर से बातचीत का नेतृत्व अमेरिकी उप विदेश मंत्री स्ट्रोब टैलबोट कर रहे थे. इस दौरान भारत ने अपनी परमाणु नीति को स्पष्ट किया और विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध (credible minimum deterrence) की नीति को अपनाया. 

अमेरिका ने 1999 तक अधिकांश प्रतिबंधों को हटा लिया, क्योंकि अमेरिका को लगने लगा था कि भारत को अलग-थलग करने की नीति प्रभावी नहीं थी. 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा ने दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने में अहम रोल अदा किया. 

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1974 में भी लगाया था प्रतिबंध

इससे पहले 1974 में भी इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने 1974 में पहला परमाणु परीक्षण किया था तब भी अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाए थे.  पोखरण-I परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर परमाणु ईंधन की आपूर्ति, तकनीकी सहयोग, और आर्थिक सहायता पर प्रतिबंध लगाए। ये प्रतिबंध भारत को परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के दायरे में लाने और उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के उद्देश्य से थे. हालांकि भारत ने इन दबावों के सामने झुकने से इनकार किया और स्वदेशी तकनीकी विकास, वैकल्पिक साझेदारियों, और अपनी परमाणु नीति में दृढ़ता के साथ अमेरिका को जवाब दिया. 

अब 25% का टैरिफ का दबाव 

अब जनवरी से लेकर जुलाई तक लंबी वार्ता के बाद अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया है. ये टैरिफ 7 अगस्त से प्रभावी होंगे. इस बार भी भारत अमेरिका की ट्रेड डील की मनमानी शर्तें नहीं मान रहा है. भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने कहा है कि भारत अमेरिका पर जवाबी टैरिफ नहीं लगाएगा, लेकिन भारत के व्यापारियों के हितों की रक्षा के लिए सभी कदम उठाएगा. 

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