असद अहमद के एनकाउंटर की पूरी कहानी: दिन भर, 13 अप्रैल

उमेश पाल हत्याकांड मामलें में आज अतीक अहमद के बेटे असद का एंकाउंटर हुआ, क्या है इसकी पूरी कहानी? कर्नाटक में भाजपा गुजरात मॉडल क्यों नहीं ला सकी? चुनाव से पहले फिर से बागी हुए सचिन पायलट पर पार्टी कार्यवाई करना तो चाहती है लेकिन इसमें समस्या क्या है? और धर्म बदलकर मुसलमान और ईसाई बनने वाले दलितों को रिज़र्वेशन का लाभ क्यों नहीं मिलता, इस मसले पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है, इसमें सरकार का पक्ष क्या है और क्या आर्ग्युमेंट्स? सुनिए 'दिन भर' में

Advertisement
db db

रोहित त्रिपाठी

  • ,
  • 13 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 7:57 PM IST

असद अहमद के एंकाउंटर की पूरी कहानी

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में चौबीस फरवरी को एक हत्या हुई थी. हत्या हुई थी उमेश पाल की, जो माफिया डॉन और पूर्व विधायक अतीक अहमद के खिलाफ एक मर्डर केस में गवाह था. इस हत्या के बाद अतीक अहमद के खिलाफ़ कार्रवाई का सिलसिला शुरू हो गया.  

ये सब हुआ उमेश पाल के मर्डर की सीसीटीवी फुटेज के सामने आने के बाद. कहा गया कि फुटेज में उमेश पाल पर जो लोग गोली चला रहे थे, उसमें बाक़ी शूटर्स के साथ अतीक अहमद का बेटा असद भी शामिल था. और घटना के बाद से फरार था. 

Advertisement

इस घटना के बाद पहले से जेल में बंद अतीक अहमद को पेशी के लिए प्रयागराज लाया गया. आज भी उसकी प्रयागराज की अदालत में पेशी थी. सारा फोकस जब अतीक अहमद पर था, उसी वक़्त झांसी से एक ख़बर आई. अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और शूटर मोहम्मद ग़ुलाम को यूपी एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार दिया.  

दोनों उमेश की हत्या के बाद से ही फरार थे. यूपी पुलिस ने इन दोनों पर पाँच लाख का इनाम भी रखा था.

 

पुलिस का कहना है कि उमेश पाल हत्याकांड में शामिल पाँच में से दो शूटर्स मारे जा चुके हैं. आज अतीक अहमद और अशरफ की कोर्ट में पेशी भी हुई है.  

उत्तर प्रदेश में इस एनकाउंटर पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आई हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी एसटीएफ को बधाई दी तो दूसरी ओर अखिलेश यादव ने इस एनकाउंटर पर सवाल उठाए हैं. झांसी में हुए इस इनकाउंटर पर के बारे में सुनिए 'दिन भर' में

Advertisement

 

कर्नाटक में भाजपा का गुजरात मॉडल

भारतीय जनता पार्टी अपने शासन वाले प्रदेशों में बीते कुछ साल में अकसर एक पैटर्न फॉलो करती है. जब चुनाव आते हैं तो अपनी ही सरकार के ख़िलाफ एंटी इंकमबैंसी को काउंटर करने के लिए वो बड़े स्तर पर अपने सिटिंग विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को मैदान में उतारती है. हाल का गुजरात चुनाव इस स्ट्रेटजी का सबसे सफल उदाहरण माना जाता है.  

कर्नाटक में अगले ही महीने चुनाव हैं. बीजेपी की कल रात दूसरी लिस्ट भी आ गई. कुछ विधायकों के टिकट ज़रूर कटे लेकिन अपनी वो स्ट्रेटजी जिसके लिए बीजेपी जानी जाती है,उसे पार्टी पूरी तरह फॉलो करती नहीं दिखी. जानकार समझते हैं कि संभवत: कर्नाटक में लोकल फैक्टर्स ज़्यादा हावी हैं. इसे येदियुरप्पा की सफलता की तरह भी देखा जा रहा है, जो टिकट बंटवारे की बैठक बीच मे छोड़ कर बैंगलोर लौट गए थे.  

ख़ास बात ये भी है कि लिंगायत कम्युनिटी पर चुनावी तौर पर ज़्यादा डिपेंडेंट रही बीजेपी ने इस बार नया दांव चला है. बीजेपी ने 189 उम्मीदवारों की पहली सूची में 41 टिकट वोक्कालिगा समाज को दिए हैं.   

बीजेपी की दोनों लिस्ट्स देखने के बाद बीते चुनावों से किस तरह अलग रणनीति नजर आती है, इस बार- क्या बदला है, सुनिए 'दिन भर' में

Advertisement

 

पायलट पर होगी कार्रवाई?

राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई कांग्रेस आलाकमान के लिए फांस बन गई है.   

लाख मना किए जाने के बावजूद बीते मंगलवार को सचिन पायलट अपनी ही कांग्रेस सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे. अब गहलोत समर्थक इसे अनुशासनहीनता बताते हुए पायलट पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं और ये चर्चा दिल्ली तक आ पहुंची है. आज पार्टी अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे ने इस मामले पर बैठक की. 

सवाल यही है कि चुनावी साल में क्या कांग्रेस सचिन पायलट पर कार्रवाई का जोखिम ले सकती है? ऐसे में खड़गे इस बैठक में किस निष्कर्ष की तलाश में रहे होंगे? सुनिए 'दिन भर' में

 

 

दलित मुस्लमानों और ईसाइयों को आरक्षण?

भारत में scheduled caste यानी अनुसूचित जाति में शामिल लोगों को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण मिलता है. लेकिन धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम या ईसाई बन चुके हिंदू दलितों को इसका लाभ नहीं मिलता है. 19 साल पहले एक एनजीओ - सेंटर फॉर पब्लिक इन्ट्रेस्ट लिटिगेशन ने सुप्रीम कोर्ट में इसके ख़िलाफ़ एक याचिका दायर की थी. तब से ये मामला कोर्ट में है. जस्टिस एसके कौल, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानउल्लाह और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने कल इस मुद्दे पर सुनवाई की. इस दौरान जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट का भी ज़िक्र हुआ. अक्टूबर 2004 में भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा के नेतृत्व में एक आयोग बनाया था, जिसे देश में भाषा और धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों से संबंधित अलग अलग मुद्दों के जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इस आयोग की रिपोर्ट आई भी, लेकिन मोदी सरकार ने इसके कन्क्लूजंस को खारिज कर एक और रिटायर्ड चीफ जस्टिस के.जी. बालकृष्णन की अगुआई में दूसरा पैनल बना दिया. सरकार के वकील ने कल सुप्रीम कोर्ट में नए पैनल की रिपोर्ट का इंतज़ार करने की बात कही. कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताते हुए कहा कि जब जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट आ चुकी है तो फिर सरकार नया आयोग क्यों बना रही है. सुनिए 'दिन भर' में

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement