वोटर लिस्ट में नाम, चंदे पर लगाम और मनी-मसल पावर पर काम... चुनाव सुधार पर लोकसभा में बड़ी डिबेट

वोटर लिस्ट, SIR, चुनावी फंडिंग, EVM की विश्वसनीयता और राजनीतिक दलों को मिलने वाला गुमनाम चंदा ये चुनाव सुधार के अहम मुद्दे हैं. चुनाव सुधार चुनावी प्रक्रिया की दक्षता, पारदर्शिता और निष्पक्षता को बेहतर बनाने के उद्देश्य से किए गए संवैधानिक प्रयास हैं. आज लोकसभा में इन मुद्दों पर लंबी चर्चा होगी.

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98 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाताओं के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. (Photo: ITG) 98 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाताओं के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. (Photo: ITG)

पन्ना लाल

  • नई दिल्ली,
  • 09 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:18 AM IST

कहा जाता है कि लोकतंत्र इस विश्वास पर आधारित है कि साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएं होती हैं. चुनाव लोकतंत्र का मुख्य हिस्सा है. वोट देने का अधिकार हालांकि पहली नजर में सिर्फ एक कानूनी अधिकार है, लेकिन इसके कई पहलू हैं जो इसे चुनाव प्रणाली का एक अभिन्न अंग बनाते हैं. 

देश की एजेंसियों का यह कर्तव्य है कि वे लोगों के इस विश्वास की रक्षा करे कि `साधारण लोगों में असाधारण संभावनाएं होती हैं`. क्योंकि ये विश्वास ही लोकतंत्र के फलने-फूलने और टिकाऊ होने की बुनियाद है. 

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भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. 98 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाता, 1.5 करोड़ मतदानकर्मी, 10 लाख पोलिंग बूथ, 2024 में 64.6 करोड़ लोगों ने वोट डाला. इतने भारी-भरकम आंकड़े देश के लोकतंत्र के विशाल दायरे की कहानी कहते हैं. इतना बड़ा चुनावी ढांचा सिर्फ वोटिंग का आयोजन नहीं करता है, बल्कि लगातार सुधारों और प्रयोगों के माध्यम से भारत की लोकतांत्रिक बुनियाद को मजबूत करता आया है. 

इसी सिलसिले में आज लोकसभा में देश में चुनाव सुधार पर बहस हो रही है. हाल में SIR, वोटर लिस्ट जैसे विवादों की वजह से लोकसभा में हो रही इस डिबेट का विशेष महत्व है.

चुनाव सुधार क्या है?

स्वतंत्रता के तुरंत बाद भारत ने लंदन या वॉशिंगटन नहीं, बल्कि अपने सामाजिक यथार्थ को देखते हुए एक अनोखा चुनाव तंत्र बनाया. चुनाव आयोग की स्थापना के बाद आयोग ने समय-समय पर चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए. चुनाव सुधारों का मूल उद्देश्य लोकतंत्र में जनता के विश्वास को मजबूत करना, पारदर्शिता बढ़ाना और आपराधिक और धन बल के प्रभाव को कम करना है.

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अगर चुनाव सुधार को सरल शब्दों में कहें तो इसका मतलब है किसी देश में चुनावी प्रक्रिया की दक्षता, पारदर्शिता और निष्पक्षता को बेहतर बनाने के उद्देश्य से किए गए संवैधानिक प्रयास.

चुनाव सुधारों की जरूरत क्यों पड़ी?

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतांत्रिक शासन की आत्मा हैं. लेकिन ये तो आदर्श वाक्य है. सालों तक भारत का चुनाव धन बल और जन बल से प्रभावित रहा हैं. राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता की कमी के कारण धन बल का अनुचित प्रभाव बढ़ता है, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है. राजनीतिक दलों के भीतर वंशवाद और आंतरिक लोकतंत्र का अभाव भी एक बड़ी समस्या है, जिसे दूर करने की आवश्यकता है. आधुनिक समय में, सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों और घृणा फैलाने वाले भाषणों का बढ़ता प्रसार चुनावी माहौल को विषाक्त करता है, जिसके लिए प्रभावी कानूनी नियंत्रण आवश्यक हैं.

भारत का दूसरा आम चुनाव 24 फरवरी 1957 से 9 जून 1957 तक चला. आजादी के बाद यह पहला चुनाव था जब लोगों ने जाना कि बूथ कैप्चरिंग या बूथ लूट क्या होती है. इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर भी चुनाव जीते या हराए जा सकते हैं.

इसी चुनाव में पहली बार मतदान के लिए इनोवेटिव स्याही का इस्तेमाल किया गया. 1957 में बिहार के बेगूसराय के रचियाही में विधानसभा चुनाव के दौरान पहली बार वोट कैप्चरिंग की वारदात हुई.

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चुनाव आयोग तब से ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने के लिए चुनावी सुधार में जुटा है. इन सुधारों का मकसद कानूनी ढांचे को मजबूत करना, संस्थागत तंत्र में सुधार करना और चुनावी प्रणाली में जनता का विश्वास बहाल करना है.

इसके अलावा कई मुद्दे हैं जो चुनाव सुधारों की प्रक्रिया को सतत और अपरिहार्य बनाते हैं. जैसे-

राजनीति का अपराधीकरण

यह भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. चुनाव में ऐसे व्यक्तियों की भागीदारी बढ़ रही है जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं. यह न केवल देश के भावी कानून निर्माताओं की गुणवत्ता को कम करता है. बल्कि उन्हें ब्लैकमेलिंग और भ्रष्टाचार के प्रति असंवेदनशील भी बनाता है. चुनाव आयोग के प्रयासों के बावजूद, राजनीतिक दल `जीतने की क्षमता` को आपराधिक पृष्ठभूमि पर तरजीह देते हैं. निश्चित रूप से इससे जनता में अपने प्रतिनिधियों को लेकर निराशा पैदा होती है.

देश में चुनाव सुधार पर काम करने वाली संस्था ADR ने अपने रिपोर्ट में कहा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में 543 जीतने वाले उम्मीदवारों में से 251 (46%) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं. यह पिछले चुनावों की तुलना में एक बड़ी बढ़ोतरी है. 2019 में 233 सांसद (43%), 2014 में 185 सांसद (34%), और 2009 में 162 सांसदों (30%) ने अपना आपराधिक रिकॉर्ड बताया था.

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गंभीर आपराधिक आरोपों वाले विजेता उम्मीदवारों की संख्या में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है. 2024 में, 170 सांसदों (31%) ने गंभीर आरोप घोषित किए हैं, जिनमें बलात्कार, हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामले शामिल हैं.

मतदाता सूची की गलतियां

मतदाता सूची को सटीक, समावेशी और त्रुटिहीन बनाना एक स्वस्थ लोकतंत्र की नींव है. सूची में गलतियां, जैसे कि दोहराव/डुप्लीकेशन, मृत मतदाताओं का नाम शामिल होना, या योग्य मतदाताओं का नाम कटना, चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को प्रभावित करता है. नेता विपक्ष राहुल गांधी ने कर्नाटक, हरियाणा, महाराष्ट्र के कुछ चुनिंदा मुद्दों को उठाकर चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगाया है. हालांकि चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज किया है.

चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान (SIR) बिहार में काफी विवादित रहा है. ये प्रक्रिया अभी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, झारखंड में भी चल रही है. गैर बीजेपी शासित राज्यों में इस कोशिश का विरोध हो रहा है. विपक्षी दलों का आरोप है SIR के जरिये मतदाताओं को प्रताड़ित किया जा रहा है, जबकि चुनाव आयोग ने कहा है कि ये वोटर लिस्ट से बोगस और फर्जी वोटरों को हटाने की एक प्रक्रिया है.

राजनीतिक दलों की फंडिंग 

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भारत में राजनीतिक दलों की फंडिंग व्यवस्था बेहद अपारदर्शी और अस्वस्थ है. ज्यादातर चंदा या तो पूरी तरह गुमनाम रहता है या बहुत कम जानकारी सार्वजनिक होती है, जिससे यह समझना मुश्किल हो जाता है कि कौन किस दल को पैसा दे रहा है और बदले में क्या उम्मीद कर रहा है.

इलेक्टोरल बॉण्ड इसका सबसे बड़ा उदाहरण था, जिसमें दानदाता का नाम छिपा रहता था. नकद में 20 हजार रुपये तक का दान आज भी बिना नाम बताए लिया जा सकता है, जिससे काला धन आसानी से चुनावी खर्च में बदल जाता है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2024 को इलेक्टोरल बॉण्ड को असंवैधानिक घोषित कर पूरी तरह रद्द कर दिया. देश में चुनावी फंडिंग को लेकर विस्तृत चर्चा जरूरी है.

EVM की विश्वसनीयता

भारत में EVM की विश्वसनीयता और VVPAT का मुद्दा चुनाव सुधारों का अहम सवाल है. क्योंकि यही वह कड़ी है जहां मतदाता का विश्वास सीधे लोकतंत्र से जुड़ता है. 2004 के लोकसभा चुनाव में पहली बार EVM का पूरा इस्तेमाल हुआ.

दुनिया के ज्यादातर विकसित लोकतंत्र या तो पेपर बैलेट इस्तेमाल करते हैं या फिर जो देश EVM इस्तेमाल करते हैं वे 100% VVPAT वेरिफिकेशन करते हैं. जबकि भारत में केवल 5 ईवीएम प्रति विधानसभा क्षेत्र की VVPAT स्लिप्स गिनी जाती हैं, यानी 0.5% से भी कम.

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भारत में VVPAT सुधारों पर 2024 के बाद कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है. सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2024 में ADR की PIL खारिज कर दी, जिसमें 100% VVPAT स्लिप्स की वेरिफिकेशन की मांग की गई थी. कोर्ट ने मौजूदा व्यवस्था, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 5 रैंडम पोलिंग स्टेशनों पर VVPAT स्लिप्स की गिनती, को पर्याप्त माना है.

वन नेशन, वन इलेक्शन

केंद्र की एनडीए सरकार ने `वन नेशन, वन इलेक्शन` को अपने चुनावी सुधारों का अहम एजेंडा माना है और इस पर गंभीरता से काम कर रही है. इसके लिए गहन बहस और कानूनी/संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है. इसका उद्देश्य सरकारी खर्च को कम करना और बार-बार होने वाले चुनावों से विकास कार्यों में आने वाली बाधाओं को दूर करना है.

प्रवासी मतदान और ऑनलाइन सुविधा

भारत में करोड़ों लोग प्रवास पर रहते हैं. ऐसे लोग चुनाव के समय वोट नहीं डाल पाते हैं. ऐसे मतदाताओं को चुनाव में शामिल करने के लिए रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) या इंटरनेट-आधारित सुरक्षित मतदान प्रणाली शुरू करने पर विचार चल रहा है. हमारे देश का लोकतंत्र लगातार विकसित होने वाली प्रक्रिया है. लोकसभा में चुनाव सुधारों पर होने वाली बहस देश के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है. चुनाव सुधार केवल कानूनी या प्रक्रियात्मक बदलाव नहीं हैं, बल्कि ये भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने का आधार हैं.
 

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