दिल्ली की वो सीटें, जिनके समीकरण बता रहे हैं केजरीवाल की कांग्रेस से नाराजगी की वजह?

दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. लेकिन चुनाव से पहले ही आम आदमी पार्टी एक तरह से कांग्रेस पर हमलावर होती नजर आ रही है. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि इंडिया ब्लॉक में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी AAP क्यों उस पर हमलावर नजर आ रही है.

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अरविंद केजरीवाल अरविंद केजरीवाल

कुमार कुणाल

  • नई दिल्ली,
  • 27 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 7:44 AM IST

दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नए साल में हो जाएगा. इसमें कोई शक नहीं है कि ये चुनाव रोचक रहने वाला है लेकिन जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है, आम आदमी पार्टी वैसे-वैसे बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस पर हमलावर हो गई है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि कांग्रेस के नेता AAP को सार्वजनिक मंचों से भला-बुरा कह रहे हैं और अरविंद केजरीवाल को देशद्रोही तक बता रहे हैं. 

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कांग्रेस के यूथ विंग ने आम आदमी पार्टी सरकार की योजनाओं को भ्रामक और धोखा देने वाला बताकर एफआईआर तक दर्ज कराने की बात कह दी है, इसलिए भी आप ने कांग्रेस को चेतावनी दे दी है. ये सारी बातें अपनी जगह लेकिन मुख्य मुद्दा कांग्रेस की वो लिस्ट लगती है जिसमें पार्टी ने आम आदमी पार्टी नेताओं के बड़े नेताओं को ही घेरने की पूरी रणनीति बना ली है. अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के खिलाफ चुनाव लड़ रहे संदीप दीक्षित और फरहाद सूरी पर तो आप ने बीजेपी से फंड लेकर चुनाव लड़ने का आरोप तक मढ़ दिया. तो समझिए इन कुछ सीटों के बन रहे समीकरण से आम आदमी पार्टी का गुस्सा क्यों कांग्रेस पर जमकर फूटा है.

नई दिल्ली सीट (AAP के पूर्व सीएम केजरीवाल बनाम कांग्रेस के संदीप दीक्षित)

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कभी शीला दीक्षित की परंपरागत सीट रही नई दिल्ली विधानसभा को अरविंद केजरीवाल ने 2013 में शीला की सियासत को खत्म करने वाली सीट बना दिया. शीला दीक्षित को दिल्ली में भ्रष्टाचार का चेहरा बनाया और केजरीवाल खुद इस सीट से मैदान में जा खड़े हुए. 15 साल सीएम रहीं शीला दीक्षित, केजरीवाल के हाथों चारों खाने चित हो गईं और कांग्रेस का दबदबा दिल्ली से खत्म हो गया. उसके बाद कांग्रेस ने किरण वालिया को 2015 तो रोमेश सब्बरवाल को 2020 में केजरीवाल के खिलाफ लड़ाया और दोनों आम आदमी पार्टी के दिग्गज के सामने बौने साबित हुए. लेकिन, कांग्रेस ने इस बार पहली ही लिस्ट में शीला दीक्षित के बेटे और पूर्वी दिल्ली से पूर्व सांसद संदीप को मैदान में उतारकर अरविंद केजरीवाल को मैसेज दिया कि ये चुनाव उनके लिए कांग्रेस के लिए आसान करने के बजाए मुश्किल करने की मंशा रखती है.

संदीप दीक्षित और दीक्षित परिवार नई दिल्ली सीट को बेहद अच्छी तरीके से पहचानते हैं. वहां के वोटरों के साथ उनका अपनापन का रिश्ता है और इसलिए संदीप दीक्षित केजरीवाल के लिए बड़ी परेशानी बन सकते हैं, खासतौर पर तब जबकि बीजेपी ने भी पश्चिमी दिल्ली के पूर्व सांसद परवेश वर्मा पर दांव खेलने का मन इस सीट से बना लिया है. इसलिए मजबूत त्रिकोणीय मुकाबले में खेल किसी ओर भी जा सकता है और इसलिए केजरीवाल खुद अपनी सीट को लेकर आश्वस्त हों ऐसा फिलहाल नहीं दिखता. 

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जंगपुरा सीट (AAP के पूर्व डिप्टी सीएम सिसोदिया बनाम कांग्रेस उम्मीदवार फरहाद सूरी)

मनीष सिसोदिया के लिए अपनी पुरानी सीट पटपड़गंज से मुश्किल खड़ी हो रही थी, तो उन्होंने यमुना पार करके एक सेफ सीट ढूंढ़ी, जंगपुरा. जंगपुरा सीट लाजपत नगर से लेकर दरियागंज तक फैली है. सिसोदिया के लिए मुश्किल बनकर आए फरहाद सूरी जो तकरीबन 15 साल पहले दिल्ली के मेयर रह चुके हैं और जिनकी मां ताजदार बाबर दिल्ली की सबसे प्रतिष्ठित महिला नेताओं में एक रहीं.

फरहाद यूं तो पिछला एमसीडी चुनाव बड़े कड़े मुकाबले में हार गए लेकिन उनकी और परिवार की पारंपरिक सीट जंगपुरा में उनकी पकड़ काफी अच्छी है. खासतौर पर निजामुद्दीन इलाके में जहां मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है. इसके अलावा पढ़े लिखे होने की वजह से उनको अपने इलाके के पॉश रिहाएशी इलाकों में भी काफी मजबूत माना जाता है. सिसोदिया के लिए ये सीट बिलकुल नई है, उन्हें अपने वोटरं से जुड़ना बाकी है वहीं फरहाद कई दशकों से यहीं राजनीति करते आ रहे हैं. वैसे तो बीजेपी की टिकट आना बाकी है लेकिन किसी सिख चेहरे पर बीजेपी दांव लगा सकती हैं जैसा उसने पिछली बार किया था. इसलिए जंगपुरा की सीट के समीकरण भी सिसोदिया के लिए आसान नहीं बन रहे हैं.

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बाबरपुर सीट (AAP के मंत्री गोपाल राय बनाम कांग्रेस से हाजी इशराक)

नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली की बाबरपुर विधानसभा इलाके से आम आदमी पार्टी के सीनियर नेता गोपाल राय लगातार जीतते रहे हैं. अगर आबादी के लिहाज से देखें तो बाबरपुर विधानसभा में मुस्लिम आबादी लगभग 40 फीसदी है इसलिए कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार खड़े करने के फैसले से सबसे ज़्यादा असर आम आदमी पार्टी पर हो सकता है. खासतौर पर तब जबकि हाजी इशराक आम आदमी पार्टी छोड़कर पिछले दिनों कांग्रेस में शामिल हुए हैं. इशराक साल 2015 से 2020 के बीच पास की ही सीलमपुर सीट से विधायक रहे हैं. साल 2013 में इस सीट से जब गोपाल राय हारे थे तब कांग्रेस के उम्मीदवार ज़ाकिर खान ने लगभग 25 फीसदी वोट हासिल किया था और सीट बीजेपी ने जीती थी तब गोपाल राय 22 फीसदी वोट लेकर तीसरे नंबर पर आए थे. हालांकि 2015 और 2020 की आम आदमी पार्टी की लहर में जब कांग्रेस काफी कमजोर थी तब गोपाल राय ने इस सीट से आसान जीत दर्ज की. इस बार मुस्लिम वोटों में कांग्रेस उम्मीदवार अगर बड़ा सेंध लगा लें तो गोपाल राय के लिए चुनौती कहीं ज़्यादा बढ़ सकती है.

बल्लीमारान सीट (AAP के मंत्री इमरान हुसैन बनाम कांग्रेस के हारून यूसुफ)

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पुरानी दिल्ली की बल्लीमारान सीट पर एक बार फिर पारंपरिक प्रतिद्वंदियों का मुकाबला देखने को मिलेगा. कांग्रेस ने शीला सरकार में मंत्री रहे हारून यूसुफ पर एक बार फिर से इस मुस्लिम बहुल सीट पर भरोसा जताया है. इस सीट पर मुस्लिम आबादी लगभग 50 फीसदी है. 2013 में कांग्रेस ने जो 8 सीट जीती थी उनमें एक बल्लीमारान में हारून यूसुफ के नाम का भी था. लेकिन 2015 और फिर 2020 में हारून को इमरान हुसैन ने बुरी तरह हराया और उनकी जमानत भी दोनों ही बार जब्त हुई. इस बार फिर से इन्हीं दोनों के बीच मुकाबला होगा. अगर मुस्लिम वोटरों के वोटिंग पैटर्न में बदलाव होता है तो इस हाई प्रोफाइल सीट पर फेरबदल हो सकता है. ये भी देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी का कौन सा उम्मीदवार यहां उतारा जाता है क्योंकि गैर रिजर्व सीट होने के बावजूद बीजेपी इस सीट पर दलित उम्मीदवार को तरजीह देती आई है क्योंकि लगभग 25 प्रतिशत आबादी दलितों की है.

सुल्तानपुर माजरा (AAP के मंत्री मुकेश अहलावत बनाम कांग्रेस के जय किशन)

आम आदमी पार्टी के नए मंत्रियों में से एक मुकेश अहलावत दिल्ली की सबसे ज़्यादा दलित बहुल सीट सुल्तानपुर माजरा से विधायक हैं. इस सीट पर लगभग 41 फीसदी दलित वोटर हैं और इसलिए सीट एससी आरक्षित है. 2013 में जय किशन इस सीट पर कड़े मुकाबले में जीते तो ज़रूर लेकिन 2015 और 2020 में उनकी जमानत तक नहीं बच पाई. आम आदमी पार्टी ने पहले संदीप कुमार को विधायक बनाया जो विवादों में फंसने के बाद मंत्री पद से हटाया गए. 2020 में मुकेश अहलावत विधायक चुने गए और राजकुमार आनंद के इस्तीफे के बाद वो मंत्री बने. इस सीट पर बीजेपी का दबदबा कभी नहीं रहा लेकिन जे जे कॉलनी और गांवों को मिलाकर बनी इस विधानसभा में दलित और मुस्लिम वोटरों से ही विधायकी तय होती रही है. लगातार 1993 से 2013 तक विधायक रहे जय किशन स्थानीय हैं और इसलिए मुकेश अहलावत की एंटी इंकंबेंसी में कड़ी टक्कर देने का माद्दा रखते हैं.

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इन सीटों के अलावा कांग्रेस मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ किसी ताकतवर चेहरे को उतारने पर विचार कर रही है जिनमें अल्का लांबा का नाम भी चर्चा में है. साथ ही, मालवीय नगर से सोमनाथ भारती के खिलाफ कभी एमसीडी में सदन के नेता रहे जितेंद्र कोचर को कांग्रेस ने उतारा है जिनकी इस इलाके में अच्छी पकड़ है. ओखला सीट पर भी कांग्रेस आम आदमी पार्टी के मुस्लिम चेहरे अमानतुल्ला खां के खिलाफ कांग्रेस बड़ा चेहरा उतारने की तैयारी में है. यानी रणनीति आम आदमी पार्टी के नेताओं को उनके गढ़ में ही घेरने की है.

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