दिल्ली में प्रदूषण की मार से राहत दिलाने के लिए कृत्रिम वर्षा (क्लाउड सीडिंग) का इंतजार अब खत्म होने की कगार पर है. आईआईटी कानपुर का सेसना एयरक्राफ्ट ने आज दोपहर कानपुर से मेरठ के लिए उड़ान भर ली है.
सूत्रों के अनुसार, अगले एक घंटे में विमान मेरठ पहुंचेगा और मौसम अनुकूल रहा तो आज ही क्लाउड सीडिंग शुरू हो सकती है, जिससे दिल्ली-एनसीआर में पहली बार कृत्रिम वर्षा का परीक्षण होगा.
विमान के कानपुर से उड़ान भरने से पहले दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मंजिंदर सिंह सिरसा ने घोषणा की थी कि कानपुर से विमान पहुंचते ही परीक्षण शुरू किया जाएगा. अब जबकि विमान उड़ान भर चुका है, ऐसे में क्लाउड सीडिंग की संभावना लगभग तय मानी जा रही है.
आईआईटी कानपुर ने बताया कि मौसम साफ होते ही सेसना विमान ने कानपुर से मेरठ के लिए उड़ान भर ली है. विमान के उड़ान भरने से पहले कानपुर में दृश्यता 2000 मीटर है, जबकि उड़ान के लिए न्यूनतम 5000 मीटर की आवश्यकता है. दिल्ली में भी विजिबिलिटी कम है, लेकिन जैसे ही मौसम साफ होगा, विमान आईआईटी कानपुर के एयरस्ट्रिप से दिल्ली के उत्तर-पश्चिमी इलाके में क्लाउड सीडिंग के लिए रवाना हो जाएगा.
28 से 30 अक्टूबर के बीच अनुकूल है मौसम
भारत मौसम विभाग (IMD) ने 28 से 30 अक्टूबर के बीच उपयुक्त बादल निर्माण की संभावना जताई है. यदि सब कुछ ठीक रहा तो दिल्ली 29 अक्टूबर को अपनी पहली कृत्रिम वर्षा का साक्षी बनेगी. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने पिछले हफ्ते एक्स पर पोस्ट कर बताया था कि यदि स्थितियां अनुकूल रहीं तो दिल्ली अपनी पहली कृत्रिम वर्षा का अनुभव करेगी.
कौन-से रसायन इस्तेमाल होते हैं?
क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन तकनीक है, जिसमें सबसे आम रसायन सिल्वर आयोडाइड (AgI) है जो बर्फ क्रिस्टल बनाता है. अन्य हैं: पोटैशियम आयोडाइड, ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) और लिक्विड प्रोपेन छिड़का जाता है. इससे बादल में कृत्रिम वर्षा की प्रक्रिया तेज हो जाती है. लेकिन ज्यादा मात्रा में विषाक्त हो सकते हैं. हवाई जहाज से इन्हें छिड़का जाता है. दिल्ली सरकार ने 7 मई को कैबिनेट की बैठक में इस परियोजना को 3.21 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी. आईआईटी कानपुर के साथ 25 सितंबर को एमओयू साइन किया गया, जिसके तहत पांच परीक्षण उत्तर-पश्चिम दिल्ली में किए जाएंगे.
सुशांत मेहरा