जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ी थीं. दोनों दलों का गठबंधन भी है, लेकिन उमर अब्दुल्ला की सरकार में कांग्रेस की कोई भागीदारी नहीं है. उमर सरकार के मंत्रिमंडल में कांग्रेस शामिल नहीं हुई और न ही अब राज्यसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने उसे कोई हिस्सेदारी दी है. इसके चलते सवाल उठता है कि जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की ये कैसी यारी है?
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तारिक हामिद कर्रा ने रविवार को ऐलान किया है कि उनकी पार्टी राज्य की चार सीटों के लिए हो रहे राज्यसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी, क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने उन्हें सीट देने से इनकार कर दिया है. कर्रा ने कहा कि सर्वसम्मति से यह सहमति बनी है कि कांग्रेस राज्यसभा चुनाव नहीं लड़ेगी.
हामिद कर्रा ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व ने चार राज्यसभा सीटों में से एक सीट की मांग की थी, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस उन्हें सुरक्षित सीट देने के लिए तैयार नहीं हुई. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस को उन दो सीटों में से एक की पेशकश की, जिनके लिए एक साथ चुनाव हो रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए चुनाव लड़ना फायदेमंद नहीं था, जिसके चलते हमने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं.
राज्यसभा चुनाव से कांग्रेस क्यों हटी?
जम्मू-कश्मीर की चार राज्यसभा सीटों पर 24 अक्टूबर को चुनाव होंगे. चार राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव आयोग ने तीन अधिसूचनाएं जारी की हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक, पहली दो सीटों के लिए अलग-अलग वोटिंग होगी, जबकि शेष दो राज्यसभा सीटों पर संयुक्त मतदान होगा. इस तरह राज्यसभा के लिए तीन चुनाव (एक, एक और दो सीटों के लिए अलग वोटिंग) होंगे.
कांग्रेस चाहती थी कि नेशनल कॉन्फ्रेंस उसे एक सीट दे, जहां पर सिंगल सीट के लिए चुनाव है, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस उसे दो सीटों में से एक सीट देना चाहती थी, जहां पर संयुक्त चुनाव है. इसके चलते कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच बात नहीं बन सकी और कांग्रेस ने चुनाव लड़ने से पीछे हट गई.
हामिद कर्रा ने कहा कि सिंगल सीट पर होने वाले चुनाव की तुलना में संयुक्त सीट पर हो रहा चुनाव कांग्रेस के लिए सेफ नहीं था. ऐसे में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी. इसे अपने गठबंधन के सहयोगियों पर छोड़ दिया.
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने उतारे तीन प्रत्याशी
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पहले ही राज्यसभा चुनाव के लिए अपने तीन उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं, जो यह दर्शाता है कि वह तीनों की जीत सुनिश्चित करने के लिए विधानसभा में अपनी ताकत का इस्तेमाल करेगी. नेशनल कॉन्फ्रेंस के अपने तीनों उम्मीदवारों की जीत गठबंधन सहयोगियों के समर्थन के बिना भी सुनिश्चित है, लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन के चौथे उम्मीदवार को क्लीन स्वीप सुनिश्चित करने के लिए हर भाजपा विरोधी वोट की ज़रूरत होगी.
चौथी सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए पीडीपी के तीन विधायकों, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अवामी इत्तेहाद पार्टी और आम आदमी पार्टी के एक-एक विधायक को सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में वोट करना होगा. कर्रा ने कहा कि हम नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ अपने चैनल खोलेंगे और उनसे बात करेंगे. इस तरह कांग्रेस भले ही दांव खेल रही हो, लेकिन उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने जिस तरह से तीन सीटों के लिए अपने उम्मीदवार उतारे हैं, उससे कांग्रेस के लिए बहुत ज़्यादा संभावना नहीं है.
जम्मू-कश्मीर का कैसे बदल गया सीन
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसी दोनों मिलकर चुनाव लड़ी थीं, लेकिन नतीजे के बाद सीन बदल गया. कांग्रेस उमर कैबिनेट में दो मंत्री पद मांग रही थी, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस सिर्फ़ एक कैबिनेट मंत्री का पद दे रही थी. इसके चलते कांग्रेस उमर सरकार में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हुई. कांग्रेस ने तर्क दिया था कि जब तक केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्ज़ा नहीं देगी, उसके नेता कैबिनेट में शामिल नहीं होंगे.
वहीं, अब राज्यसभा की चार सीटों पर हो रहे चुनाव में कांग्रेस एक सेफ सीट मांग रही थी, लेकिन उमर अब्दुल्ला देने के लिए तैयार नहीं हुए। इस तरह कांग्रेस गठबंधन में रहते हुए भी अलग-थलग पड़ गई है. उमर अब्दुल्ला राज्य के सियासी हालात को देखते हुए कांग्रेस को बहुत ज़्यादा भाव नहीं दे रहे हैं, क्योंकि वह जानते हैं कि कांग्रेस के पास सियासी विकल्प नहीं है। इसीलिए अपनी शर्तों पर कांग्रेस को रख रहे हैं और कांग्रेस भी सियासी मजबूरी में फंसी हुई है.
कांग्रेस कैसे सियासी मझधार में फंसी
कांग्रेस की सियासी मजबूरी को देखते हुए उमर अब्दुल्ला फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं. फिलहाल जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 88 विधायक हैं, जिसमें सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 41 विधायक हैं, जो बहुमत से सिर्फ़ चार सीटें कम है. कांग्रेस के 6, निर्दलीय 5 और सीपीआई (एम) के एक विधायक हैं. कांग्रेस अगर गठबंधन तोड़ भी लेती है तो उमर अब्दुल्ला निर्दलीय और लेफ्ट विधायकों के दम पर अपनी सरकार चला सकते हैं.
वहीं, बीजेपी के पास 28 विधायक हैं। इसके अलावा 6 विधायक (कश्मीर की छोटी पार्टियों और निर्दलियों से) न तो भाजपा के साथ हैं और न ही नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन के साथ. इसमें 3 पीडीपी, 1 पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और 2 निर्दलीय विधायक (शब्बीर कुले और शेख़ ख़ुर्शीद) शामिल हैं. इसके अलावा आम आदमी पार्टी के मेहराज मलिक भी विधायक हैं. ऐसे में कांग्रेस चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही है.
कुबूल अहमद