कुछ ही महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव को लेकर एक्टिव पार्टियां अपना कुनबा दुरूस्त करने के साथ ही इसे बढ़ाने की कवायद में हैं. वहीं, बिहार के सत्ताधारी महागठबंधन में पिछले कुछ समय से तल्खियां बढ़ती नजर आ रही हैं. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की ओर से 'ऑल इज वेल' का संदेश देने की कोशिशें की जा रही हैं. लेकिन खींचतान है कि बढ़ती ही जा रही.
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चंद्रशेखर, सुधाकर सिंह और सुनील सिंह से विवाद अभी सुर्खियों में था ही कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरजेडी कोटे के मंत्री का फैसला पलट दिया है. नीतीश के नेतृत्व वाली सरकार में आरजेडी कोटे से मंत्री आलोक मेहता ने राजस्व और भूमि सुधार विभाग में 480 अधिकारियों-कर्मचारियों के ट्रांसफर किए थे. सीएम नीतीश ने ये सभी ट्रांसफर रद्द कर दिए हैं. ट्रांसफर के आदेश रद्द करने के पीछे सरकार ने नियमों की अनदेखी को वजह बताया है. नीतीश के इस फैसले को प्रेशर पॉलिटिक्स के रूप में देखा जा रहा है.
लोकसभा चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संजय पाण्डेय ने नीतीश के इस कदम पर कहा कि वे सुलझे हुए नेता हैं और राजनीति, राजनीतिक दल के साथ ही जनता की नब्ज को भी काफी बेहतर समझते हैं. नीतीश कुमार लगातार 18 साल से सूबे में सत्ता की ड्राइविंग सीट पर ऐसे ही नहीं काबिज हैं. नीतीश प्रेशर पॉलिटिक्स में माहिर हैं और चंद्रशेखर का मामला हो या अब आलोक मेहता का आदेश रद्द करना, ये भी प्रेशर पॉलिटिक्स ही है. नीतीश की रणनीति लोकसभा चुनाव को लेकर सीट बंटवारे पर अपनी शर्तों पर बात करने की है.
गठबंधन में उलझा सीट बंटवारे का गणित
बिहार में सीट बंटवारे का गणित काफी उलझा है. विधानसभा में संख्याबल के लिहाज से आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है तो लोकसभा में संख्याबल के लिहाज से जेडीयू. ये दोनों दल अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं तो वहीं कांग्रेस की कोशिश भी सम्मानजनक सीटें पाने की है. लेफ्ट पार्टियां भी करीब आधा दर्जन सीटें चाहती हैं.
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लोकसभा में बिहार से 40 सीटें हैं. कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां करीब 16 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती हैं. जेडीयू ने 2019 के चुनाव में 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. पार्टी 17 से कम सीटों पर मानेगी, इसके आसार कम हैं. सीट बंटवारे के उलझे गणित के बीच अपने मन-मुताबिक सीटें पाने के लिए भी राजनीतिक दांव-पेच आजमाए जा रहे हैं.
'सुशासन बाबू' वाली इमेज बचाने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि जेडीयू से निकल अपनी पार्टी बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा हों या बीजेपी, नीतीश पर लालू यादव और आरजेडी के दबाव में काम करने का आरोप लगाते रहे हैं. विपक्षी दलों के नेताओं की कोशिश है कि जनता को आरजेडी के 15 साल का शासन याद दिलाकर ये बताया जाए कि नीतीश मुख्यमंत्री हैं लेकिन सरकार लालू चला रहे हैं. नीतीश विपक्ष की इस रणनीति को अच्छे से समझ रहे हैं कि अगर ये कवायद सफल हो गई तो उनकी इमेज को नुकसान पहुंच सकता है.
उन्होंने ये भी कहा कि नीतीश कुमार की कोशिश सुशासन बाबू वाली इमेज बचाने की है ही, ये बताने की भी है कि आरजेडी के साथ सरकार चलाना उनकी मजबूरी नहीं है. चंद्रशेखर और केके पाठक विवाद के बाद लालू यादव की सुपर सीएम की इमेज मजबूत हो रही थी. नीतीश कुमार ने लालू के करीबियों से जुड़े मामलों में सख्त रुख अपनाकर नीतीश ने ये संदेश दे दिया है कि वे आरजेडी के साथ अपनी शर्तों पर सरकार चला रहे हैं.
आलोक मेहता आरजेडी के विपक्ष में रहते नीतीश पर हमलावर रहे प्रमुख चेहरों में थे. ऐसे में उनका आदेश रद्द करने के कदम से जेडीयू कार्यकर्ताओं में भी सकारात्मक संदेश जाएगा. राजनीति में कब क्या हो, कहा नहीं जा सकता लेकिन इसके आधार पर महागठबंधन के भविष्य का आकलन करना जल्दबाजी होगी.
महागठबंधन में 'ऑल इज नॉट वेल'?
नीतीश कुमार ने पिछले कुछ दिनों में आरजेडी कोटे के मंत्रियों को लेकर जिस तरह की सख्ती दिखाई है, उसको लेकर गठबंधन में 'ऑल इज नॉट वेल' की बात भी हो रही है. नीतीश कुमार, चंद्रशेखर से विवाद में आईएएस अधिकारी केके पाठक के पक्ष में नजर आए थे. लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी के मुंहबोले भाई सुनील सिंह से भी उनकी तीखी नोकझोक हुई थी. तेजस्वी को सुनील के पास जाकर उन्हें चुप कराना पड़ा था. बाद में सुनील सिंह ने पूरे विवाद पर चुप्पी साध ली थी और कहा था कि लालू यादव ने उनसे मौन रहने को कहा है. अब आलोक मेहता के ट्रांसफर आदेश को पलटकर नीतीश कुमार आखिर क्या संदेश देना चाहते हैं?
बिकेश तिवारी