पुतिन के बाद जेलेंस्की की दिल्ली यात्रा संभव, क्या अमेरिका की जगह भारत संभालेगा पीस टॉक की कमान?

दिसंबर के पहले हफ्ते में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आए. अब यूक्रेन के लीडर वोलोडिमिर जेलेंस्की भी दिल्ली आ सकते हैं. भारत उन चुनिंदा देशों में है, जिसने कट्टर विरोधियों के साथ भी संतुलन बनाए रखा. पुतिन की यात्रा के दौरान भी उसने शांति की बात की. क्या भारत रूस-यूक्रेन जंग में मध्यस्थता के लिए जमीन तैयार कर रहा है?

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रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए तुर्की के बाद अमेरिका भी मध्यस्थता कर चुका. (Photo- AFP, Reuters) रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए तुर्की के बाद अमेरिका भी मध्यस्थता कर चुका. (Photo- AFP, Reuters)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:28 PM IST

4 और 5 दिसंबर को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत यात्रा की. इस दौरान बहुत से अहम मुद्दों पर बात हुई और सहमति भी बनी. यही वो वक्त था, जब भारत ने खुद को शांति का समर्थक कहा. उस वक्त, जबकि रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है, दिल्ली का यह बयान संतुलन के साथ-साथ कूटनीति भी दिखाता है. इसके मायने यह भी हो सकते हैं कि भारत इन देशों के बीच शांति वार्ता कराने के लिए तैयार है. यह कयास इसलिए भी तेज है क्योंकि रूस के बाद यूक्रेन के लीडर वोलोडिमिर जेलेंस्की की भी भारत यात्रा की संभावना है. 

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खबरें हैं कि जेलेंस्की अगले साल जनवरी में भारत आ सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो काफी बड़ी बात होगी. युद्ध शुरू होने के चार सालों में दोनों ही देश अमेरिका के अलावा और कहीं नहीं गए. जेलेंस्की जरूर यूरोप यात्रा करते रहे, लेकिन पुतिन ने इससे दूरी बनाए रखी. अब पुतिन के बाद अगर जेलेंस्की भी भारत विजिट करें तो संकेत गहरे हैं. यह सिर्फ भारत का कूटनीतिक संतुलन नहीं, बल्कि मध्यस्थता की कोशिश भी हो सकती है. 

पिछले साल जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रूस के बाद यूक्रेन की यात्रा की थी. इस बीच यूरोप के कई देशों ने आरोप लगाया कि भारत तटस्थ है. हालांकि पुतिन के दौरे के दौरान पीएम मोदी ने साफ कहा कि भारत न्यूट्रल नहीं, बल्कि शांति के साथ है. 

युद्ध के दौरान यूक्रेन का बड़ा रिहायशी हिस्सा बर्बाद हो चुका. (Photo- Reuters)

भारत रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता कर सकता है या नहीं, यह सीधे तौर पर दोनों पक्षों की राजनीतिक इच्छा और ग्लोबल माहौल पर तय है. फिर भी बीते समय में कई संकेत मिले हैं कि भारत को एक संभावित मध्यस्थ के तौर पर देखा जाने लगा है.

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पहला संकेत भारत की लगातार स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी की नीति से मिलता है. भारत ने युद्ध के दौरान रूस के साथ अपने संबंध बनाए रखे, जबकि यूक्रेन से भी रिश्ता नहीं तोड़ा. इसने भारत को एक ऐसा देश बनाया जो किसी एक पक्ष की बात नहीं दोहराता, बल्कि युद्ध खत्म करने की अपील करता है. पीएम मोदी ने भी- यह युद्ध का युग नहीं है, जैसा संदेश देकर बातचीत के रास्ते खोलने की कोशिश की.

दूसरा संकेत कई कूटनीतिक बैठकों से मिलता है. रूस और भारत के रक्षा और विदेश मंत्रियों की वार्ताओं में दिल्ली ने बार-बार शांतिपूर्ण हल पर जोर दिया. यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी कहा कि भारत अगर मीडिएटर बने तो यूक्रेन उसका स्वागत करेगा. 

भारत का ग्लोबल कद लगातार बढ़ा है. G20 की अध्यक्षता, ग्लोबल साउथ में लीडरशिप और अमेरिका-रूस दोनों के नेताओं से वो बात कर पाता है. यही वजह है कि हाल में पुतिन दौरे के बाद यूक्रेनी नेता की यात्रा भी संभावित है. 

डोनाल्ड ट्रंप पिछली जनवरी से ही रूस और यूक्रेन में युद्ध रोकने की कोशिश कर रहे हैं. (Photo- Reuters)

मध्यस्थता के लिए औपचारिक एलान कितना जरूरी 

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अक्सर मध्यस्थता धीरे-धीरे, बैकचैनल बातचीत के जरिए शुरू होती है. कई बार देश सिर्फ मदद की इच्छा जताते हैं. या फिर शांति जैसे शब्द कहते हैं. यही शुरुआत है. 

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किसी बड़े विवाद या युद्ध में औपचारिक घोषणा तब होती है जब दोनों पक्ष उस देश या संस्था को आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लें. मसलन, नॉर्वे, तुर्किये या कतर जैसे देश कई बार बिना शोर-शराबे के बैकडोर वार्ता कराते रहे और बाद में इसकी पुष्टि की जाती है.

भारत ने औपचारिक रूप से कभी भी खुद को मध्यस्थ घोषित नहीं किया, लेकिन कई लड़ाइयों में उसने शांतिपूर्ण समाधान पर काम किया. 

- पचास के दशक में कोरिया युद्ध के दौरान भारत ने युद्धबंदियों की अदला-बदली के मुद्दे पर अहम भूमिका निभाई थी. 

- नब्बे के दशक में भारत कंबोडिया के विभिन्न गुटों से संवाद में शामिल रहा और बाद में यूएन के साथ वहां शांति बहाली में हिस्सा लिया. 

- इज़रायल–फिलिस्तीन मुद्दे पर मध्यस्थता तो नहीं है, लेकिन उसे भरोसेमंद तटस्थ देश के तौर पर देखा जाता रहा. वो गाजा पट्टी तक मानवीय मदद भी भेज चुका. 

- रूस–यूक्रेन युद्ध में भी जिस तरह से दोनों देशों के नेताओं से मेल-जोल हो रहा है, उसमें भारत की सॉफ्ट मध्यस्थता दिख रही है.

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