दुनियाभर में 26 अगस्त को 'इंटरनेशनल डॉग डे' (International Dog Day) मनाया जाता है. इस दिन को सभी नस्लों के कुत्तों का सम्मान करने, उनकी देखभाल करने, गोद लेने को बढ़ावा देने और जानवरों के खिलाफ दुर्व्यवहार रोकने के मकसद से मनाया जाता है. साथ ही आवारा कुत्तों का पुनर्वास और उनके बारे में जागरूकता फैलाने के लिहाज से भी यह दिन बहुत खास है. अमेरिकी पशु व्यवहार विशेषज्ञ कोलीन पैज ने साल 2004 में इसकी शुरुआत की थी.
राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बने आवारा कुत्ते
भारत में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आवारा कुत्तों को लेकर बहस छिड़ गई है. दिल्ली-एनसीआर के लिए सर्वोच्च अदालत ने पहले आदेश में कहा कि आवारा कुत्तों को पकड़कर डॉग शेल्टर्स में डाला जाए और उनकी नसबंदी कराई जाए. साथ ही कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि इस काम में रुकावट डालने वाले किसी भी व्यक्ति की भावनाओं को ख्याल नहीं रखा जाएगा और ऐसा करने पर उसके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने फैसले में थोड़ी तब्दीली करते हुए इसे सिर्फ आक्रामक और रेबीज फैलाने वाले कुत्तों के ऊपर लागू कर दिया है.
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इसे लेकर देशभर में बहुत बवाल हुआ और कई राज्यों में डॉग लवर्स ने सड़कों पर उतरकर कोर्ट के फैसले का विरोध भी जताया. यहां तक कि लोकसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस लीडर राहुल गांधी ने भी कोर्ट के आदेश को अमानवीय कदम बताया. वहीं पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने कोर्ट के फैसला की कड़ी आलोचना की और इसके व्यवहारिक पहलुओं की ओर सभी का ध्यान खींचा. ऐसे में सवाल यह है कि क्या वाकई आवारा कुत्ते इतनी बड़ी समस्या बन चुके हैं और दुनिया के बाकी मुल्कों में इस समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
दुनिया के लिए मिसाल नीदरलैंड
दुनिया के अलग-अलग देशों में आवारा कुत्तों से निपटने के लिए नीतियां और नियम बनाए गए हैं. ये नियम पब्लिक हेल्थ, सामाजिक सुरक्षा और पशु कल्याण पर आधारित हैं. कुछ देशों में आवारा कुत्तों के लिए माइक्रोचिपिंग अनिवार्य है, तो कुछ जगह कुत्तों को आवारा छोड़ने पर सख्त सजा का भी प्रावधान है. सभी देशों के लिए नीदरलैंड एक मिसाल है, जहां आवारा कुत्तों की समस्या एकदम खत्म हो गई है और वह दुनिया का पहला ऐसा देश है जहां एक भी आवारा कुत्ता नहीं है.
नीदरलैंड ने इसके लिए Collect, Neuter, Vaccinate, Return यानी CNVR प्रोग्राम लागू किया. इसके तहत सबसे पहले आवारा कुत्तों को पकड़ा जाता है और फिर उनकी नसबंदी और टीकाकरण किया जाता है. आखिर में वापस उन्हें छोड़ दिया जाता है. इससे अगर ऐसे आवारा कुत्ते किसी को अपना शिकार भी बनाते हैं तो रेबीज का खतरा पैदा नहीं होता. साथ ही वहां जानवरों के प्रति क्रूरता और उन्हें सड़कों पर छोड़ने पर भारी जुर्माना लगाया जाता है. इसके लिए स्पेशल एनिमल फोर्स का भी गठन किया गया है.
अमेरिका में कुत्तों के लिए माइक्रोचिपिंग
डॉग वेलफेयर को ध्यान में रखते हुए नीदरलैंड में पालतू कुत्ता खरीदने पर भारी टैक्स लगाने का प्रावधान है, जबकि किसी शेल्टर से कुत्ता गोद लेने पर टैक्स में छूट दी जाती है. इससे लोग आवारा कुत्तों को गोद लेने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं और वहां आवारा कुत्तों की समस्या पूरी तरह खत्म हो चुकी है.
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दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने भी आवारा पशुओं के लिए कानून और नीतियां बनाई है. अमेरिका में केंद्र, राज्य, और स्थानीय स्तर पर आवारा कुत्तों को संरक्षण दिया गया है ताकि उन्हें लावारिस छोड़ने से बचाया जा सके.कई राज्यों में पालतू कुत्तों के लिए माइक्रोचिपिंग अनिवार्य की गई है, जिससे आवारा कुत्तों की पहचान करना आसान होता है. इसके अलावा अमेरिका में आवारा कुत्तों की संख्या को कंट्रोल करने में स्थानीय एनजीओ और स्थानीय प्रशासन भी अहम भूमिका निभाता है, हालांकि वहां अब तक यह समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है.
मोरक्को में पशु कल्याण की नीति
ब्रिटेन में आठ हफ्ते से ज्यादा उम्र के सभी पालतू कुत्तों के लिए माइक्रोचिपिंग अनिवार्य है. माइक्रोचिप में मालिक का मोबाइल नंबर और बाकी जानकारी दर्ज होती है, जिससे कुत्तों के भटक जाने पर उन्हें मालिक के पास पहुंचाया जा सके. स्थानीय प्रशासन भी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर्स में रखता है, जिससे सड़कों पर कुत्तों की संख्या में कमी आई है. हालांकि तय वक्त तक अगर आवारा कुत्ते के मालिक का पता नहीं चल पाता तो वहां आवारा कुत्तों को मारने की कानूनी इजाजत भी दी गई है.
मोरक्को में आवारा कुत्तों को पकड़कर उनकी नसबंदी और वैक्सीनेशन के लिए नीति बनाई गई है. इसके बाद उन्हें खास तरह का टैग लगाकर छोड़ दिया जाता है. सरकार ने आवारा कुत्तों के लिए एक पूरा इकोसिस्टम बना रखा है, उनके लिए कम्युनिटी हॉल बनाए गए हैं, जिसमें डॉक्टर और पशु चिकित्सक कुत्तों की देखभाल करते हैं. हाल ही में मोरक्को में एक प्रस्तावित कानून को लेकर बहस छिड़ गई है, जिसमें बिना इजाजत के आवारा कुत्तों को खाना देने पर सजा का प्रावधान है. मोरक्को में आवारा कुत्ते बड़ी समस्या है और अनुमान के मुताबिक रोजाना एक लाख लोग डॉग बाइट का शिकार होते हैं, इसी वजह से टीकाकरण के जरिए रेबीज के मामलों को कम करने की कोशिश जारी है.
तुर्की में कुत्तों की हत्या पर सख्ती
तुर्की में आवारा कुत्तों को लेकर पशु कल्याण की भावना को सबसे ऊपर रखा गया है. यहां कुत्तों को मारने पर पाबंदी है, सिर्फ गंभीर बीमारी से पीड़ित होने पर ही किसी आवारा कुत्तों को मारा जा सकता है. इसके अलावा स्थानीय निकायों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे कुत्तों के लिए शेल्टर, वैक्सीनेशन, नसबंदी और गोद लेने जैसे उपाय करें. इस नीति की वजह से तुर्की में आवारा कुत्तों की संख्या को कंट्रोल किया जा रहा है.
भूटान दुनिया का पहला देश है जिसने मार्च 2022 से अक्टूबर 2023 तक 60 हजार से भी ज्यादा कुत्तों की नसबंदी कराई है. कुत्तों की आबादी को रोकने के लिए यह कदम प्रभावी साबित हुआ है और देश के सभी कुत्तों को इस प्रोग्राम के दायरे में लाया गया है. इससे देश में रेबीज और आवारा कुत्तों की समस्या पर बहुत हद तक काबू पाया जा चुका है.
पाकिस्तान का विवादित फैसला
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान पशु कल्याण की बजाय सख्त कानून बनाया गया है. यहां के पंजाब प्रांत में साल की शुरुआत में बड़ी संख्या में आवारा कुत्तों को मारा गया है. पशु अधिकार कार्यकर्ता सरकार के इस कदम की खुलकर आलोचना कर रहे हैं और यह पूरे देश में विवाद का विषय बन चुका है. इसी तरह कंबोडिया में बड़े पैमाने पर टीकाकरण करके आवारा कुत्तों की समस्या से निपटा जा रहा है. सिंगापुर, हांगकांग, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के शहर आवारा कुत्तों से मुक्त हैं और यहां आवारा कुत्तों की समस्या नहीं है.
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भारत में आवारा कुत्ते आज भी एक बड़ी समस्या हैं और हर साल रेबीज की वजह से 20 हजार तक मौतें होती हैं. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पब्लिक सेफ्टी का ध्यान रखते हुए आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण करने के आदेश दिए थे. कोर्ट का कहना है कि सड़कें बच्चों और बुजुर्गों के लिए सुरक्षित होनी चाहिए. लेकिन इसे लेकर नीति निर्माताओं और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का नजरिया अलग है.
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