इस फ्राइडे दो बड़ी फिल्में रिलीज हुईं. पहली योद्धा जो सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. दूसरी है 'मर्डर मुबारक'. सारा अली खान, विजय वर्मा, पंकज त्रिपाठी, करिश्मा कपूर और डिंपल कपाड़िया जैसे सितारों से सजी 'मर्डर मुबारक' OTT प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है. योद्धा देखने के लिए सिनेमाघर तो नहीं पहुंच पाए, लेकिन घर पर बैठकर 'मर्डर मुबारक' जरूर देख ली है. आप भी जान लीजिये कि वीकेंड पर आपको ये फिल्म देखनी या नहीं है.
क्या है 'मर्डर मुबारक' की कहानी
‘मर्डर मुबारक’ की कहानी ‘द रॉयल दिल्ली क्लब’ से शुरू होती है. ये क्लब सिर्फ हाई क्लास लोगों के लिए है, जिसमें रहने के लिए तमाम अमीर लोग बेताब दिखाई देते हैं. क्लब में दीवाली पार्टी चल रही होती है, तभी वहां से एक बच्ची की रोने की आवाज आती है, जिससे सभी डर जाते हैं. सब कुछ ठीक चला रहा होता तभी, फिल्म में लियो मैथ्यू (आशिम गुलाटी) की जिम में एक्सरसाइज के दौरान अचानक मौत हो जाती है.
क्लब के प्रेसिडेंट इसे एक हादसा बताकर मामला रफादफा करना चाहते हैं. पर ACP भवानी सिंह (पंकज त्रिपाठी) का दिमाग कुछ और कहता है. वो ये साबित करते हैं कि ये मौत सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि सोची समझी चाल है. जैसे-जैसे पुलिस की जांच आगे बढ़ती है, करोड़पतियों की जिंदगी से जुड़ी असलियत सामने आने लगती है. बाकी आगे कहानी जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
पंकज त्रिपाठी ने जीता दिल
कहानी के हिसाब से सारा अली खान, विजय वर्मा, करिश्मा कपूर और और संजय कपूर अपने किरदार के साथ न्याय करते दिखे. पर अफसोस तब हुआ जब डिम्पल कपाड़िया और टिस्का चोपड़ा जैसी बेहतरीन अदाकाराएं ओवर एक्टिंग करती नजर आईं. डिम्पल कपाड़िया पिछले साल रणबीर कपूर स्टारर फिल्म तू झूठी मैं मक्कार में दिखी थीं. फिल्म में उन्होंने रणबीर की मां के रोल में क्या एक्टिंग की है. पर ‘मर्डर मुबारक’ में डिम्पल कपाड़िया जैसी उम्मदा एक्ट्रेस का टैलेंट भी वेस्ट होता दिखा.
2 घंटे 20 मिनट की फिल्म में अगर किसी एक्टर को देखने का मन किया है, तो वो पंकज त्रिपाठी हैं. मतलब सच कह रहे हैं कि पंकज त्रिपाठी ने फिल्म की लाज बचा ली है. वही एक वजह हैं जिनकी वजह से 2 घंटे 20 मिनट की फिल्म देख पाए हैं. वरना 15 मिनट बाद ही टीवी बंद हो जाता.
डायरेक्शन कैसा है?
फिल्म का टाइटल और इसकी कहानी किसी भी तरह से मैच नहीं करती है. अगर फिल्म को सस्पेंस, थ्रिलर और मर्डर-मिस्ट्री समझ कर देखेंगे, तो निराशा मिलेगी. कहानी जितनी कमजोर है. इसका डायरेक्शन उससे भी ज्यादा कमजोर है. होमी अदजानिया फिल्म के पहले ही शॉट्स से नाराज करते दिखे. उन्होंने हिंदी सिनेमा में इतनी बढ़ियां फिल्में दी हैं कि उनसे ऐसे डायरेक्शन की उम्मीद नहीं थी. फिल्म सिर्फ एक कत्ल पर आधारित है, लेकिन उन्होंने कहानी को ऐसा बुना कि हर कोई कातिल नजर आता है. ऐसे भी कह सकते हैं अंधेरे में तीर चलाने वाला काम किया गया है. मर्डर मिस्ट्री मूवीज के लिए जिस तरह की कहानी और माहौल चाहिये होता है. वो ‘मर्डर मुबारक’ में कहीं नजर नहीं आता.
इतना सब बता दिया बस बहुत है. बाकी फिल्म देखना और ना देखना आपके ऊपर छोड़ देते हैं. जाते-जाते ये भी बता दें कि फिल्म से उम्मीद मत रखना. देखते समय साथ में सिरदर्द की गोली भी रख लेना. फिल्म खत्म होने के बाद इसकी बहुत जरुरत पड़ेगी.
आकांक्षा तिवारी