क्या स्वामी प्रसाद मौर्य के पालाबदल से बदल गया बदायूं का गणित? चाचा शिवपाल को उतारने केे पीछे अखिलेश की रणनीति समझिए

सपा ने लोकसभा चुनाव के लिए पांच उम्मीदवारों की सूची जारी की है जिसमें बदायूं सीट से शिवपाल सिंह यादव का भी नाम है. अखिलेश यादव ने भाई धर्मेंद्र यादव की जगहा बदायूं से चाचा शिवपाल को मैदान में क्यों उतार दिया?

Advertisement
अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य अखिलेश यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 21 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 4:43 PM IST

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग के मुद्दे पर पेच फंसा हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी (सपा) एक के बाद एक अपने उम्मीदवारों की सूची भी जारी कर रही है. सपा ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की तीसरी सूची जारी कर दी है जिसमें पांच उम्मीदवारों के नाम हैं. इस सूची में एक नाम शिवपाल सिंह यादव का भी है. अखिलेश ने चाचा शिवपाल को बदायूं लोकसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया है. अब चर्चा इसे लेकर भी तेज हो गई है कि अखिलेश ने बदायूं सीट से भाई धर्मेंद्र की जगह चाचा शिवपाल को क्यों उतारा?

Advertisement

दरअसल, बदायूं सीट से 2019 में धर्मेंद्र यादव सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे. माना जा रहा था कि 2024 में भी पार्टी धर्मेंद्र पर ही दांव लगाएगी लेकिन सपा की तीसरी लिस्ट के साथ ही यह साफ हो गया कि शिवपाल यादव यहां से ताल ठोकते नजर आएंगे. सपा के इस दांव के सियासी मायने भी तलाशे जाने लगे हैं, खासकर तेजी से बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में. यूपी में सपा और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत तो चल रही है लेकिन अटकलें गठबंधन टूटने की भी हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी सपा से किनारा कर लिया है. चुनावी साल में तेजी से बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच बदायूं से शिवपाल की उम्मीदवारी के पीछे क्या स्वामी से अदावत वजह है?

शिवपाल यादव (फाइल फोटो)

शिवपाल को बदायूं से उतारे जाने के बाद चर्चाएं दो तरह की हैं. कोई इसे चाचा को किनारे लगाने की रणनीति बता रहा है तो कोई खोया गढ़ हर हाल में पाने के लिए सबसे मजबूत चेहरों में से एक को आगे करने की. यूपी में पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से सियासी समीकरण बदले हैं, उसने सपा को अलर्ट मोड में ला दिया है. पश्चिमी यूपी में पहले जयंत चौधरी ने झटका दिया तो फिर स्वामी प्रसाद मौर्य भी बाय-बाय बोल गए. सपा के प्रमुख मुस्लिम फेस में से एक सलीम शेरवानी भी पार्टी छोड़ चुके हैं. ऐसे में सपा ने अब एक-एक सीट के समीकरण पर फोकस कर दिया है.

Advertisement

बदायूं से मुश्किल हो सकती थी धर्मेंद्र की राह

कांग्रेस के साथ एक दिन पहले जिस तरह सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत टूटने की खबरें आईं, अगर ऐसा हुआ कि दोनों दल अलग-अलग लड़ते हैं तो बदायूं से धर्मेंद्र की राह मुश्किल हो सकती थी. 2019 चुनाव के आंकड़े इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. 2019 में बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा को बदायूं से उम्मीदवार बनाया था. संघमित्रा को 5 लाख 11 हजार से अधिक वोट मिले और 4 लाख 92 हजार के करीब वोट पाने वाले सपा के धर्मेंद्र यादव करीब 19 हजार वोट के अंतर से चुनाव हार गए.

धर्मेंद्र यादव (फाइल फोटो)

धर्मेंद्र और संघमित्रा की चुनावी फाइट को त्रिकोणीय बनाने में कांग्रेस ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें 51 हजार वोट मिले थे. संघमित्रा और धर्मेंद्र को मिले वोट के मुकाबले  महज 10 फीसदी नजर आने वाले यह वोट सपा की हार के अंतर के मुकाबले दोगुने से भी अधिक थे.

यह भी पढ़ें: 'सपा की लोकसभा सीटें फाइनल', डिंपल यादव ने कांग्रेस को गठबंधन पर दिया बड़ा हिंट

अकेले लड़ने की स्थिति में भी न फंसे गणित

सपा नहीं चाहती कि कांग्रेस से अगर गठबंधन नहीं भी हो तो भी उसका चुनाव अभियान इस सीट पर किसी अगर-मगर के फेर में फंसे. एक पहलू यह भी है कि स्वामी का सपा में रहना बदायूं की सीटिंग सांसद संघमित्रा को असहज करता रहा. स्वामी अपनी बेटी के खिलाफ प्रचार करने नहीं जाते तब भी पार्टी इसे आधार बनाकर संघमित्रा को प्रचार के दौरान जनता के बीच घेरती. उनके साथ होने से बसपा का बेस वोटर रहे दलित और मौर्य बिरादरी से कुछ वोट की उम्मीद भी पार्टी को थी. लेकिन अब तस्वीर बदल गई है.

Advertisement

यह भी पढ़ें: बदायूं से धर्मेंद्र नहीं शिवपाल यादव लड़ेंगे चुनाव, सपा ने जारी की 5 उम्मीदवारों की तीसरी सूची

बदले हालात में सपा ने बदायूं में साइकिल दौड़ाने की जिम्मेदारी पार्टी के सबसे बड़े चेहरों में से एक शिवपाल यादव को सौंप दी है. शिवपाल यादव सपा को खड़ा करने वाले नेताओं में से माने जाते हैं. सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच शिवपाल मजबूत पकड़ रखते हैं. हर जाति-वर्ग में उनका अपना आधार है. संगठन के मजबूत शिल्पी माने जाने वाले शिवपाल बदायूं में बीजेपी का चुनावी चक्रव्यूह भेदने में सफल रहते हैं या असफल, यह चुनाव नतीजे ही बताएंगे.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement