सुप्रीम कोर्ट में SIR पर चल रही थी सुनवाई, तभी योगेंद्र यादव ने पेश किए दो 'मृत मतदाता', EC बोला- ड्रामा नहीं उनकी मदद करें

बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के खिलाफ याचिका दायर करने वालों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया से बड़े पैमाने पर मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे.

Advertisement
सुप्रीम कोर्ट ने SIR के मुद्दे पर सुनवाई की. (Photo: Screengrab) सुप्रीम कोर्ट ने SIR के मुद्दे पर सुनवाई की. (Photo: Screengrab)

अनीषा माथुर / सृष्टि ओझा

  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 10:05 PM IST

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान मंगलवार को नया मोड़ आया. सोशल एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव ने एक महिला और एक पुरुष को कोर्ट में पेश करते हुए दावा किया उन्हें बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के बाद जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में 'मृत' घोषित कर दिया गया है.

उन्होंने कहा, 'इस प्रक्रिया के चलते बिहार में 65 लाख से अधिक मतदाता प्रभावित हुए हैं. चुनाव आयोग का विशेष गहन पुनरीक्षण ​अभियान असफल रहा है. भारत में वयस्क आबादी के हिसाब से मतदाता पंजीकरण की दर लगभग 99% है, जो दुनिया में सबसे अच्छी है. अमेरिका में यह दर 74% है. बिहार में पहले यह दर 97% थी, लेकिन SIR प्रक्रिया के बाद यह घटकर 88% रह गई है और आगे और नाम हटने का खतरा है.'

Advertisement

फॉर्म भरकर वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाएं: EC

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए चुनाव आयोग (ECI) के वकील ने कहा, 'यह ड्रामा टीवी स्टूडियो में चल सकता है.' आयोग ने कहा कि अगर ऐसी गलती हुई है, तो योगेंद्र यादव ऑनलाइन फॉर्म भरकर इसे सुधार सकते थे. वह लोगों को अदालत में लाने के बजाय उनके आवेदन डिजिटल रूप से अपलोड कर दें, ताकि आयोग मामले की जांच कर सके. इस पर जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'हमें कम से कम इस बात पर गर्व है कि हमारे नागरिक इस कोर्ट में अपनी बात रखने आ रहे हैं.' बता दें कि चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने या हटाने के लिए 30 अगस्त तक का समय दिया है. 

बिहार चुनाव की विस्तृत कवरेज के लिए यहां क्लिक करें

बिहार विधानसभा की हर सीट का हर पहलू, हर विवरण यहां पढ़ें

यह भी पढ़ें: 'एक क्षेत्र में 12 जीवित लोगों को मृत दिखाया गया...', बिहार SIR पर सिब्बल की दलील, SC ने कहा- वे कोर्ट में क्यों नहीं हैं

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर गंभीरता दिखाते हुए दोनों पक्षों को सुना. चुनाव आयोग के वकील ने योगेंद्र यादव के कदम को अदालत की सुनवाई में अवरोध करार देते हुए कहा, 'इस तरह की हरकतों के बजाय लोगों की मदद करें. हमने राजनीतिक दलों से अपने एजेंट नियुक्त करने को कहा था. यह कहकर कि लोकतंत्र खतरे में है, रोने के बजाय वोटर लिस्ट को पारदर्शी बनाने में हमारी मदद करें. इसे ज्यादा तूल न दें.' चुनाव आयोग ने यह भी बताया कि उप चुनाव आयुक्त ने योगेंद्र यादव से संपर्क कर कहा है कि यदि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में किसी को गलत तरीके से मृत घोषित किया गया है, तो वे आयोग से संपर्क करें और फॉर्म भरकर इस गलती को सुधार लें. आयोग के वकील ने कहा कि अगर ऐसे ही चला तो सभी याचिकाकर्ता और उनके समर्थक इस तरह कोर्ट में आएंगे.

आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है: SC

यह विवाद बिहार में SIR प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची में हुई कथित गड़बड़ियों से जुड़ा है. हाल ही में सीवान जिले में मिंता देवी का मामला सामने आया, जहां उनकी उम्र 34 वर्ष होने के बावजूद वोटर आईडी कार्ड में 124 वर्ष बता दी गई. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के स्टैंड का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को नागरिकता का अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता और इसकी स्वतंत्र जांच जरूरी है.

Advertisement

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि सबसे पहले यह तय करना होगा कि क्या चुनाव आयोग के पास किसी की नागरिकता का सत्यापन करने का अधिकार है. जस्टिस सूर्य कांत ने टिप्पणी की, 'अगर उनके (चुनाव आयोग) पास इसका (नागरिकता सत्यापन का) अधिकार नहीं है, तो बात ही खत्म हो जाती है. लेकिन अगर उनके पास अधिकार है, तो किसी को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए.' 

यह भी पढ़ें: 'पिक्चर अभी बाकी है, एक व्यक्ति-एक वोट...', बिहार SIR पर राहुल गांधी ने फिर चुनाव आयोग को घेरा

फॉर्म नहीं भर पाने वाले वोटर्स के नाम भी कटे

बिहार में एसआईआर प्रक्रिया के खिलाफ याचिका दायर करने वालों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया से बड़े पैमाने पर मतदाता वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे, खासकर वे मतदाता जो जरूरी फॉर्म जमा नहीं कर पाएंगे. उन्होंने दावा किया कि 2003 की मतदाता सूची में शामिल मतदाताओं को भी नए फॉर्म भरने होंगे, और ऐसा न करने पर, उनके स्थायी पते में कोई बदलाव न होने के बावजूद, उनके नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए जाएंगे.

कपिल सिब्बल ने कहा, 'चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार 7.24 करोड़ लोगों ने फॉर्म जमा किए थे, फिर भी लगभग 65 लाख लोगों के नाम बिना किसी उचित जांच या मृत्यु या पलायन के आधार पर सूची से बाहर कर दिए गए. चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में स्वीकार किया है कि उन्होंने मृत मतदाताओं या राज्य छोड़कर दूसरी जगह बसने वालों के संबंध में कोई सर्वेक्षण नहीं कराया.' अदालत ने सवाल उठाया कि 65 लाख का आंकड़ा कैसे निकाला गया? पीठ ने सिब्बल से कहा, 'हम यह समझना चाहते हैं कि आपकी आशंका काल्पनिक है या वास्तविक चिंता है.' अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि जिन लोगों ने फॉर्म जमा किए थे, वे पहले से ही ड्राफ्ट रोल में थे.

Advertisement

यह भी पढ़ें: जाट, बिहार या साउथ... एक पद, कई जरूरतें... उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी कैसे बनाएगी संतुलन?

आयोग ने जिनका नाम हटा उनकी सूची नहीं दी

कपिल सिब्बल ने तब दावा किया था कि 2025 की मतदाता सूची में 7.9 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से 4.9 करोड़ 2003 की सूची में थे, तथा 22 लाख मतदाता मृत दर्ज हैं. इस बीच, याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने मृत्यु या निवास परिवर्तन के कारण बाहर किए गए मतदाताओं की सूची का खुलासा न तो अदालती दस्तावेजों में और न ही अपनी वेबसाइट पर किया है. भूषण ने कहा, 'चुनाव आयोग का कहना है कि उन्होंने बूथ-स्तरीय एजेंटों को कुछ जानकारी दी है. आयोग का दावा है कि वह इसे किसी और को देने के लिए बाध्य नहीं हैं.'

पीठ ने कहा कि अगर कोई मतदाता आधार और राशन कार्ड के साथ फॉर्म जमा करता है, तो चुनाव आयोग को उसकी जानकारी सत्यापित करनी होगी. पीठ ने यह भी स्पष्ट करने की मांग की कि क्या जिन लोगों ने फॉर्म के साथ जरूरी दस्तावेज जमा नहीं किए थे, उनको वास्तव में इस बारे में जानकारी दी गई?

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement