बिहार वोटर वेरिफिकेशन पर आज से लीगल जंग, ये 5 बड़े सवाल जो याचिकाओं में उठाए गए हैं

बिहार में वोटर वेरिफिकेशन के विरोध में विपक्षी दलों ने एक दिन पहले बिहार बंद का आह्वान किया था. सड़क पर संघर्ष के बाद अब लीगल बैटल की बारी है. सुप्रीम कोर्ट में वोटर वेरिफिकेशन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज से सुनवाई होनी है.

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बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिविजन किया जा रहा है (प्रतीकात्मक तस्वीर) बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिविजन किया जा रहा है (प्रतीकात्मक तस्वीर)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 10:41 AM IST

बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ विपक्षी दलों ने मोर्चा खोल रखा है. विपक्षी महागठबंधन के नेता 9 जुलाई को सड़क पर भी उतरे, चक्का जाम किया. इस विरोध-प्रदर्शन में बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, लेफ्ट के दीपांकर भट्टाचार्य जैसे शीर्ष नेता भी शामिल हुए. विपक्ष के सड़क पर शक्ति प्रदर्शन के बाद अब बारी लीगल बैटल की है.

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वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण की लड़ाई सड़क के बाद अब सर्वोच्च अदालत पहुंच चुकी है. सुप्रीम कोर्ट में आज गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होनी है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से चुनाव आयोग के इस फैसले को चुनौती देते हुए 5 जुलाई को ही याचिका दायर कर दी थी.

एडीआर के बाद राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस समेत नौ राजनीतिक दलों ने भी सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था. इन पर आज यानी 10 जुलाई को सुनवाई होनी है.

याचिकाओं में उठाए गए ये 5 बड़े सवाल

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1- संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन

विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा गया है कि चुनाव आयोग का यह फैसला जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल 1960 के नियम 21 ए के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का भी उल्लंघन है.

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2- नागरिकता, जन्म और निवास पर मनमानी

एक्टिविस्ट अरशद अजमल और रूपेश कुमार की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यह प्रक्रिया नागरिकता, जन्म और निवास से संबंधित असंगत दस्तावेजीकरण लागू करने की मनमानी है.

3- लोकतांत्रिक सिद्धांत कमजोर करने वाला फैसला

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में चुनाव आयोग के वोटर वेरिफिकेशन के फैसले को लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करने वाला बताया गया है. 

4- गरीबों पर असमान बोझ

याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि चुनाव आयोग की शुरू की गई यह प्रक्रिया गरीब, प्रवासी के साथ ही महिलाओं और हाशिए पर पड़े अन्य समूहों पर असमान बोझ डालने वाली है.

यह भी पढ़ें: 'बिहार का चुनाव चोरी करने की कोशिश', पटना में वोटर वेरिफिकेशन को लेकर EC पर राहुल गांधी का निशाना

5- गलत समय पर शुरू की प्रक्रिया

आरजेडी की ओर से दायर की गई याचिका में इस प्रक्रिया की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाए गए हैं. याचिकाकर्ता मनोज झा ने कहा है कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में गलत समय पर शुरू की गई है, जिसकी वजह से करोड़ों वोटर मताधिकार से वंचित हो जाएंगे. उन्होंने कहा है कि यह प्रक्रिया मॉनसून के समय शुरू की गई है, जब सूबे के कई जिले बाढ़ की चपेट में होते हैं और बड़ी आबादी विस्थापित होती है. ऐसे में आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए इस प्रक्रिया में शामिल हो पाना असंभव हो जाता है.

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यह भी पढ़ें: बिहार में 2003 की लिस्ट से तय होगा वोटर का भविष्य? जानिए EC ने क्यों दिया अनुच्छेद 326 का हवाला

चुनाव आयोग ने क्या कहा?

विपक्ष के आरोप पर चुनाव आयोग ने कहा है कि जिन लोगों के नाम एक जनवरी 2003 को जारी की गई वोटर लिस्ट में हैं, उन्हें कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी. वह सभी लोग संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत प्राथमिक तौर पर भारत का नागरिक माने जाएंगे. जिन लोगों के माता-पिता के नाम तब की मतदाता सूची में दर्ज है, उनको केवल अपनी जन्म तिथि और जन्म स्थान से संबंधित दस्तावेज देने होंगे.

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