सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जिस फ़ॉर्मूले से 2024 के चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में सियासी मात देने में सफल रहे हैं, अब उसी को तेजस्वी यादव बिहार के रण में आज़माने का दांव चला है. अखिलेश ने जिस तरह अपने कोर वोटबैंक एम-वाई समीकरण को जोड़े रखते हुए ग़ैर-यादव ओबीसी समाज को साधने का दांव चला था, उसी की तेजस्वी यादव भी कॉपी कर रहे हैं.
महागठबंधन ने सीएम का चेहरा तेजस्वी यादव को बनाया है तो मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम घोषित किया है. मुकेश सहनी के जरिए महागठबंधन ने मल्लाह और अत्यंत पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को लुभाने का ताना-बाना बुना है.
वहीं, कुशवाहा समुदाय पर भी सियासी प्रयोग किया गया है. तेजस्वी ने कुशवाहा समाज से एक दर्जन से ज्यादा उम्मीदवार उतारे हैं. कुशवाहा और निषाद समाज को परंपरागत रूप से बीजेपी और जेडीयू का वोटबैंक माना जाता है. महागठबंधन ने सत्ता में वापसी के लिए एक मज़बूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने का दांव चला है ताकि 4 फीसदी वोटों के अंतर को पाट सकें?
तेजस्वी-सहनी की सियासी केमिस्ट्री
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तेजस्वी यादव बिहार में सबसे बड़ी आबादी वाले यादव समाज से आते हैं जबकि मुकेश सहनी ग़ैर-यादव ओबीसी समाज से हैं, जो ख़ुद को 'सन ऑफ़ मल्लाह' के नाम से कहलवाना पसंद करते हैं. यादव वोटर बिहार में 15 फीसदी के करीब हैं तो मल्लाह समाज की आबादी करीब 5.5 फीसदी है. प्रदेश में मल्लाह, सहनी, निषाद, केवल, बिंद और कश्यप जैसी उपजाति के नाम से जाने जाते हैं.
महागठबंधन ने तेजस्वी के नाम पर मुहर लगाकर यादव वोटों को एकमुश्त अपने साथ जोड़े रखने का दांव चला तो मुकेश सहनी के जरिए एनडीए के वोटबैंक में सेंधमारी की रणनीति अपनाई है. बिहार की क़रीब 30 विधानसभा क्षेत्रों में निषाद समुदाय सियासी असर रखते हैं तो 70 से 75 सीट पर यादव वोटर अहम हैं.
मुकेश सहनी लंबे समय से अपनी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल कराने की मांग उठाकर एक मज़बूत पकड़ बनाने का दांव चला, जिसके दम पर महागठबंधन में 15 सीट लेने और अपने आपको डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित कराने में कामयाब रहे. उत्तर और उत्तर-पश्चिम बिहार के इलाक़ों में निषाद समाज का वोट अच्छी-ख़ासी संख्या में हैय
कुशवाहा समाज पर खेला बड़ा दांव
2024 के लोकसभा चुनावों में कुशवाहा उम्मीदवारों को मैदान में उतारने वाले अपने पिछले प्रयोग को फिर से तेजस्वी यादव ने एक बार आज़माया है. कुशवाहा या कोइरी के नाम से जानी जाने वाली यह जाति ओबीसी में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी संख्या है. कुशवाहा समाज के ज़रिए नीतीश कुमार 20 साल से बिहार की सत्ता की धुरी बने हुए हैं, लेकिन अब यह उनकी पकड़ से बाहर निकल रहा है.
कुशवाहा/कोइरी बिहार की कुल आबादी का 4.21 फीसदी है. प्रदेश की लगभग 20 से 25 सीटों पर कुशवाहा समुदाय हार-जीत का रोल अदा करते हैं. इस बार टिकट वितरण में भी सामाजिक गणित बनाए रखने के लिए तेजस्वी ने कुशवाहा समुदाय से एक दर्जन के करीब उम्मीदवार उतारे हैं तो कांग्रेस से लेकर लेफ़्ट तक प्रत्याशी दिए हैं.
महागठबंधन की सोशल इंजीनियरिंग
महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस ही नहीं बल्कि मुकेश सहनी, वामपंथी दल और सीपीआई माले भी शामिल है. इनका मकसद बिहार की 63 फीसदी पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति के वोटों को साधने का है. इसके अलावा 19.65 फ़ीसदी दलित और 17.7 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी को अपने पाले में रखने का है. ऐसे में महागठबंधन के सभी घटक दलों ने अपने-अपने सियासी आधार के लिहाज से कैंडिडेट उतारे हैं.
आरजेडी ने मुस्लिम-यादव के साथ कुशवाहा समुदाय पर दांव खेला है तो कांग्रेस ने अति पिछड़ी जातियों और मुस्लिम को ख़ास फ़ोकस किया है. इसी तरह से मुकेश सहनी ने अपने निषाद समुदाय के साथ अन्य पिछड़ी जाति को तवज्जो दी है. माले और वामपंथी दलों ने सामाजिक न्याय के आधार पर 'जिसकी जितनी भागीदारी' के फ़ॉर्मूले पर टिकट दिया है.
महागठबंधन में टिकट वितरण का फ़ॉर्मूला
आरजेडी ने अपने कोटे की 143 सीटों में से सबसे ज़्यादा दाँव यादव-मुस्लिम पर खेला है. आरजेडी ने 51 यादव और 19 मुस्लिम प्रत्याशी देकर अपने एम-वाई समीकरण को मज़बूत रखने का दांव चला. इसके अलावा आरजेडी ने 16 कुशवाहा समाज के उम्मीदवार उतारे हैं. इसके अतिरिक्त धानुक, निषाद और दलित समाज से प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें 4 निषाद और 3 धानुक समाज को टिकट दिया गया है. इसके अलावा 15 सवर्ण उम्मीदवार आरजेडी ने उतारा है तो 11 अति पिछड़ी जाति से हैं.
कांग्रेस ने अपने कोटे की 61 सीटों से सबसे ज़्यादा अति पिछड़ी जाति के प्रत्याशी उतारे हैं, जिसमें धानुक, तेली और दलितों में रविदास समाज शामिल है. कांग्रेस ने शहरी इलाक़े में सवर्ण समाज पर दाँव खेला है. कांग्रेस ने 21 सवर्ण जातियों को उम्मीदवार बनाया है, जिसमें 9 भूमिहार, 5 राजपूत, 6 ब्राह्मण और एक कायस्थ हैं। 3 कुशवाहा, 7 अति पिछड़ी जाति और 11 दलित समाज से प्रत्याशी दिए हैं.
मुकेश सहनी ने अपने कोटे की 15 सीटों में से 5 उम्मीदवार निषाद समाज से उतारे हैं, जो मुजफ़्फरपुर और कोसी-सोन बेल्ट में क़िस्मत आज़मा रहे हैं. इसी तरह माले ने 18 सीटों पर कुशवाहा समुदाय के साथ अति पिछड़ी जाति में आने वाली धानुक, तेली जाति को टिकट दिए. इस तरह से महागठबंधन ने एक मज़बूत सियासी समीकरण साधने का दांव चला है.
चार फीसदी वोट पाटने का दांव
2020 के विधानसभा चुनाव में बहुत मामूली वोटों से तेजस्वी यादव सत्ता पर काबिज़ होते-होते रह गए थे. एनडीए 122 सीटें जीती थी जबकि महागठबंधन 114 सीटें जीतने में सफल रहा था. एनडीए को 41 फ़ीसदी वोट मिले थे तो महागठबंधन को 37 फ़ीसदी वोट शेयर था. इस तरह से महज़ 4 फ़ीसदी वोटों का अंतर था.
तेजस्वी यादव इस बार के चुनाव में काफ़ी सतर्क हैं. चार फ़ीसदी वोटों के अंतर को पाटने के लिए मुकेश सहनी को गठबंधन में जोड़े रखा और उन्हें डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित कराकर मल्लाह वोटों को साधने का दांव चला. तेजस्वी यहीं नहीं रुके हैं, उन्होंने बीजेपी-जेडीयू के कोर वोटबैंक माने जाने वाले कुशवाहा समुदाय को पिछली बार से दोगुना प्रत्याशी उतारे हैं.
तेजस्वी ने अपने सहयोगी दल के ज़रिए अति पिछड़ा वोट साधने का दांव चला है. महागठबंधन ने मुकेश सहनी को भले ही डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित करा दिया हो, लेकिन अन्य जाति को भी भरोसा दिला रहे हैं कि सत्ता में आएंगे तो अन्य समाज से भी डिप्टी सीएम बनाया जाएगा.
महागठबंधन की रणनीति है कि मुकेश सहनी के चेहरे और कुशवाहा टिकट से एनडीए का 5-10 फ़ीसदी ओबीसी और अति पिछड़ा वोट टूटता है तो बिहार का सीन ही बदल जाएगा. यूपी में अखिलेश यादव इसी रणनीति से 2024 में बीजेपी को पीछे छोड़ने में कामयाब रहे थे और अब तेजस्वी उसी दांव से सत्ता में आने का ताना-बाना बुना है. ऐसे में देखना है कि महागठबंधन की रणनीति कितनी कामयाब रहती है.
कुबूल अहमद