बिहार में बिना 'ट्रिपल M' फैक्टर के तेजस्वी के लिए सत्ता में आना संभव नहीं! जानिए कैसे

बिहार विधानसभा का चुनाव काफी रोचक होता जा रहा है. 2020 में सत्ता के दहलीज तक पहुंचकर तेजस्वी यादव रह गए थे, लेकिन इस बार सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने की कवायद में है. तेजस्वी का यह सपना तभी साकार होगा जब बिहार के ट्रिपल एम फैक्टर को साधने में सफल रहते हैं?

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बिहार में सियासी समीकरण दुरुस्त करने में जुटे तेजस्वी यादव (Photo-PTI) बिहार में सियासी समीकरण दुरुस्त करने में जुटे तेजस्वी यादव (Photo-PTI)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 28 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 2:46 PM IST

बिहार की सत्ता से आरजेडी 20 सालों से बाहर है और अपनी वापसी की हरसंभव कोशिश में जुटी है. आरजेडी के सियासी वनवास को ख़त्म करने का जिम्मा लालू यादव के सियासी वारिस माने जाने वाले तेजस्वी यादव के कंधे पर है. तेजस्वी पिछली बार सत्ता की दहलीज तक पहुंचते-पहुंचते रह गए थे, इस बार उनकी नजर ट्रिपल 'एम-फैक्टर' पर है, जिसे साधकर वह बिहार के सिंहासन पर विराजमान हो सकते हैं. 

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2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की लड़ाई नीतीश कुमार के अगुवाई वाले एनडीए और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन के इर्द-गिर्द सिमटती जा रही है, लेकिन जन सुराज और एआईएमआईएम (AIMIM) जैसे दल उसे त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं. बिहार की सियासत में ट्रिपल-M फैक्टर काफी अहम है, जिसे मुस्लिम, महिला और मोस्ट बैकवर्ड (अति पिछड़ा) वोटर के तौर पर देखा जाता है.

नीतीश कुमार के अगुवाई वाले एनडीए से मुक़ाबला करने उतरे महागठबंधन के सीएम चेहरा तेजस्वी यादव की नजर ट्रिपल एम-फैक्टर पर है. इन तीन वोटबैंक को साधे बिना तेजस्वी के लिए चुनावी जंग जीतना संभव नहीं है, क्योंकि नीतीश महिला और मोस्ट बैकवर्ड के जरिए बीस साल से सत्ता में बने हुए हैं. देखना है कि तेजस्वी सीएम की कुर्सी तक पहुंच पाते हैं कि नहीं?

बिहार में मुस्लिम वोटर फैक्टर

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बिहार में मुस्लिम वोटर काफी अहम फैक्टर माने जाते हैं. सूबे में तकरीबन 18 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो किसी भी दल का खेल बनाने व बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. राज्य की कुल 243 विधानसभा सीटों में से करीब 48 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर्स हार-जीत तय करते हैं. इन सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 से 40 फीसदी या उससे भी अधिक है.

प्रदेश की सत्ता पर विराजमान होने के लिए मुस्लिम वोट काफी अहम है, जिसकी ताकत को समझते हुए सभी दल उन्हें अपने पाले में करने का दांव चल रहे हैं. परंपरागत रूप में बिहार में मुस्लिम वोट आरजेडी का कोर वोटबैंक माने जाते हैं, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी से लेकर प्रशांत किशोर की पार्टी तक मुस्लिम वोटों पर नजर गड़ाए हैं. 

तेजस्वी यादव के लिए मुस्लिम वोटों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. यही वजह थी कि तेजस्वी ने मुस्लिम बहुल सीमांचल के इलाके में वक्फ क़ानून को खत्म करने की बात की थी. इसके अलावा महागठबंधन के घटक दल मुस्लिमों को भरोसा दिला रहे हैं कि सरकार आने पर मुस्लिम समुदाय से भी एक डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है. इसके अलावा ओवैसी-प्रशांत किशोर को बीजेपी की बी-टीम बताने में जुटे हैं ताकि मुस्लिम वोटों को उनके साथ जाने से रोका जा सके.

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महिला फैक्टर कितना अहम

बिहार में सत्ता की दशा और दिशा महिला वोटर ही तय कर रही हैं. नीतीश कुमार इन्हीं महिला वोटों के सहारे 20 साल से सत्ता में कायम हैं. बिहार की कुल आबादी में आधी भागीदारी रखने वाली ये महिला वोटर वोटिंग पैटर्न में पुरुषों से आगे नजर आती हैं. यही वज़ह है कि बिना महिला वोटों को साधे बिना तेजस्वी यादव के लिए सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होना संभव नहीं है, क्योंकि 2005 से ही महिला वोटर एनडीए की जीत के लिए साइलेंट रोल अदा कर रही हैं.

पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार बिहार में महिला वोटरों को सबसे बड़ा 'गेम चेंजर' मानते हैं, जिसके लिए दोनों ही मिलकर कई ऐसी योजनाएं चलाई हैं, जो सीधे महिलाओं के जीवन को प्रभावित करती हैं. बिहार में लगभग 3.5 करोड़ महिला वोटर हैं. अगर इनमें से एक बड़ा हिस्सा लाभार्थी है, जो एनडीए को वोट देता है तो यह सीधे महागठबंधन के समीकरण को कमजोर कर देता है, जिसे देखते हुए तेजस्वी यादव ने महिलाओं के लिए कई बड़े ऐलान किए हैं.

तेजस्वी ने वादा किया है कि सत्ता में आएंगे तो करीब एक करोड़ 32 लाख 'जीविका दीदियों' को 30 हजार मासिक सैलरी के साथ-साथ उनकी सेवा को नियमित किया जाएगा. यह नीतीश सरकार के 'हर महिला के खाते में दस हजार वाली स्कीम' की तोड़ के रूप में देखा जा रहा है. जीविका दीदियों के लिए पांच लाख बीमा के साथ-साथ उन्हें दो हजार रुपया भत्ता देने का ऐलान किया जा सकता है. यही नहीं, महिलाओं को पेंशन के तौर पर 2500 रुपये महीना देने का वादा किया है. 

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मोस्ट बैकवर्ड वोटर्स किंगमेकर

बिहार की सियासत में मोस्ट बैकवर्ड को सबसे अहम फैक्टर माना जाता है, जिसे अति पिछड़ी जाति भी कहा जाता है. बिना उन्हें साधे सत्ता की दहलीज़ तक कोई भी दल नहीं पहुंच सकता है. बिहार में मोस्ट बैकवर्ड आबादी 36 फीसदी है, जिसमें करीब 114 जातियाँ शामिल हैं. आबादी के लिहाज से यह कहा जा रहा है कि सत्ता की चाबी अब अति पिछड़ी जाति के हाथों में है. 

मोस्ट बैकवर्ड जातियों में केवट, लुहार, कुम्हार, कानू, धीमर, रैकवार, तुरहा, बाथम, मांझी, सहनी, प्रजापति, बढ़ई, सुनार, कहार, धानुक, नोनिया, राजभर, नाई, चंद्रवंशी, मल्लाह जैसी 114 जातियां आती हैं. इनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति कमज़ोर है.

ये छोटी-छोटी जातियां, जिनकी आबादी कम है, लेकिन चुनाव में फ़िलर के तौर पर वे काफी अहम हो जाती हैं. जब किसी दूसरे वोटबैंक के साथ जुड़ जाती हैं तो एक बड़ी ताक़त बन जाती हैं. इसीलिए सभी दलों की कोशिश अति पिछड़ी जाति के वोट को पाने की है.

बिहार में अति पिछड़ी जाति को साधकर ही नीतीश कुमार 20 सालों से सत्ता पर काबिज हैं, लेकिन अब उनकी पकड़ कमजोर पड़ी है.  ऐसे में तेजस्वी अब उन्हें साधने की कवायद में हैं. इसीलिए तेजस्वी यादव ने निषाद समाज से आने वाले मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का चेहरा बनाया है.

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तेजस्वी ने वादा किया है कि बिहार के नाई, कुम्हार, बढ़ई, लोहार, माली और मोची जैसी मेहनतकश जातियों के स्वरोज़गार, आर्थिक उत्थान और उन्नति के लिए 5 साल के लिए 5 लाख की एकमुश्त ब्याज रहित राशि प्रदान की जाएगी. तेजस्वी ने कहा कि इस पैसे से इस वर्ग के लोग अपने लिए औज़ार, इत्यादि ख़रीदेंगे. यही नहीं राहुल गांधी भी अतिपिछड़ी जातियों के लिए अलग से एक घोषणापत्र भी जारी किया है. 

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