सीमांचल में आज अगर चूक गए ओवैसी तो AIMIM की मुस्लिम सियासत पर लग न जाए फुल स्टॉप?

बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान जारी है. इस फेज में बिहार का मुस्लिम बहुल सीमांचल के इलाके की सीटों पर भी चुनाव हो रहे हैं, जिसे असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी राजनीति की प्रयोगशाला के तौर पर स्थापित करने का दांव चला था. इस बार ओवैसी की राजनीति को काउंटर करने के लिए विपक्ष ने जबरदस्त तरीके से चक्रव्यूह रचा है.

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सीमांचल के सियासी चक्रव्यूह में असदुद्दीन ओवैसी (Photo-ITG) सीमांचल के सियासी चक्रव्यूह में असदुद्दीन ओवैसी (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:59 AM IST

बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की 122 सीटों के लिए वोटिंग हो रही है. इसमें सीमांचल की 24 सीटें भी शामिल हैं, जहां 2020 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने पांच सीटें जीतकर हलचल मचा दी थी. इस बार सीमांचल क्षेत्र की 15 सीटों पर ओवैसी के उम्मीदवार मैदान में हैं. ऐसे में देखना है कि क्या वह 2020 की तरह एक बार फिर जीत का परचम फहरा पाएंगे?

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सीमांचल में मुस्लिम आबादी लगभग 47 प्रतिशत है. इन्हीं मुस्लिम वोटों के सहारे ओवैसी अपनी सियासी जड़ें जमाने की कवायद में हैं, लेकिन कांग्रेस से लेकर आरजेडी, जेडीयू और जनसुराज पार्टी अपनी सियासी धुरी बनाने में जुटे हैं. मुस्लिम वोटों के चलते सीमांचल की सीटों पर मुकाबला चार दलों के बीच हो रहा है.

बिहार में मुस्लिम सियासत की राजनीतिक प्रयोगशाला सीमांचल बन गया है, जहां सिर्फ कांग्रेस और आरजेडी ही नहीं, बल्कि असल इम्तिहान असदुद्दीन ओवैसी की मुस्लिम राजनीति का है. ओवैसी के सियासी प्रयोग को काउंटर करने के लिए महागठबंधन ने अपने कई मुस्लिम चेहरों को उतारा था. ऐसे में यहां की जीत और असर केवल बिहार तक नहीं, बल्कि ओवैसी की मुस्लिम राजनीति पर भी पड़ेगा.

सीमांचल की 24 सीटों का गुणा-गणित

बिहार के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित सीमांचल में किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जिले आते हैं. सीमांचल की जिन 24 सीटों पर मतदान होने वाला है, वह काफी अहम हैं, क्योंकि यह क्षेत्र राज्य की कुल 243 सीटों का करीब 10 प्रतिशत हिस्सा है. ओवैसी की पार्टी AIMIM ने इस बार 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जिसमें दो गैर-मुस्लिम उम्मीदवार भी शामिल हैं. सीमांचल के इलाके की सीटों पर मुस्लिम समुदाय 30 फीसदी से लेकर 65 फीसदी तक हैं.

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सीमांचल की 24 सीटों पर इस बार महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस 12 सीट, आरजेडी 9 सीट, वीआईपी 2 सीट और सीपीआईएमएल एक सीट पर लड़ रही है. वहीं, एनडीए की बात करें तो बीजेपी 11 सीट, जेडीयू 10 सीट और एलजेपी (आर) तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है. सीमांचल इलाके की 15 सीटों पर AIMIM के उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. इस तरह से सबसे ज्यादा दांव ओवैसी और कांग्रेस की लगी हुई है. 

सीमांचल में ओवैसी का सियासी प्रभाव

असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल के इलाके से बिहार की राजनीति में कदम रखा. 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने पांच सीटें जीतकर महागठबंधन का सियासी गेम बिगाड़ दिया था. AIMIM ने अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट और कोचाधामन सीटें जीती थीं. ओवैसी ने जिन पाँच सीटें जीती थीं, उनमें अमौर, बहादुरगंज और बायसी सीट पर महागठबंधन के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे थे.

हालांकि, 2020 में जीते AIMIM के पाँच विधायकों में से अख़्तरुल ईमान को छोड़कर बाकी सभी चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे. AIMIM ने इस बार 32 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया था, लेकिन अंत में 25 पर उम्मीदवार खड़े किएय AIMIM के बिहार अध्यक्ष अख़्तरुल ईमान खुद अमौर से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां 2020 में उन्होंने 52,515 वोटों से जीत दर्ज की थी. इस बार उनके सिवा 14 उम्मीदवार और भी सीमांचल के इलाके में हैं, लेकिन सियासी राह 2020 जैसी नहीं है.

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ओवैसी के सामने सियासी चुनौती

2020 में सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों में 12 एनडीए (8 बीजेपी, 4 जेडीयू), 7 महागठबंधन (कांग्रेस 5, आरजेडी और सीपीआईएमएल 1-1) और एआईएमआईएम ने 5 सीट पर कब्ज़ा जमाया था. कांग्रेस और आरजेडी ने 11-11 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार कांग्रेस ने ज्यादा सीटें ली हैं, क्योंकि पार्टी के तीन लोकसभा सांसद इसी इलाके से हैं. कटिहार, पूर्णिया और किशनगंज लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने अपना कब्ज़ा बरकरार रखा है.

सीमांचल के इलाके में मुस्लिम वोटर निर्णायक होने के चलते कांग्रेस अपनी उम्मीदें ज्यादा लगा रखी है. किशनगंज में 67 प्रतिशत मुस्लिम, कटिहार में 42 प्रतिशत, अररिया में 41 प्रतिशत और पूर्णिया में 37 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. इसीलिए कांग्रेस ने ओवैसी के सियासी प्रभाव को तोड़ने के लिए अपने सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को उतारा था, तो महागठबंधन के लिए सपा के सांसद इकरा हसन और अफजाल अंसारी जैसे नेताओं ने प्रचार करके ओवैसी की राजनीति को काउंटर करने का दांव चला.

ओवैसी कैसे भरेंगे सियासी उड़ान

असदुद्दीन ओवैसी अपनी पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने की कवायद में जुटे हैं, लेकिन उनकी इस रणनीति से खुद को सेकुलर दल कह लाने वाली पार्टियों की टेंशन बढ़ गई है. 2020 के बिहार चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल इलाके की पांच सीटें जीतकर महागठबंधन को सत्ता से दूर कर दिया था. 

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ओवैसी का सियासी प्रभाव देश में उन्हीं सीटों पर दिखा है, जहां पर मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है. हैदराबाद के इलाके की उन्हीं सीट पर AIMIM को जीत मिलती रही है, जहां पर मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं, इसी तरह महाराष्ट्र में भी मुस्लिम बहुल सीटें ही जीत सकी थी. यूपी और बंगाल के उन्हीं क्षेत्रों में ओवैसी अपनी सियासी जड़े जमाने की कवायद में है, जहां पर मुस्लिम वोटर है. 

ओवैसी की सियासी चाल को देखते हुए सीमांचल क्षेत्र में उनकी सियासी प्रभाव को तोड़ने के लिए सपा ने अपनी मुस्लिम महिला सांसद इकरा हसन को उतारा, तो साथ ही अफ़ज़ाल अंसारी ने भी आक्रामक तेवर अपनाए रखा था. इसके अलावा तेजस्वी यादव से लेकर राहुल गांधी तक ने भी मोर्चा खोल रखा था. 

ओवैसी की सियासत पर ब्रेक लगेगा?

इकरा की लोकप्रियता मुस्लिमों के बीच बढ़ी है और मुस्लिम महिलाओं को साधने के लिए उन्हें सीमांचल के इलाके की सीटों का जिम्मा दे रखा थाय इकरा हसन ने मुस्लिमों से अपील करते हुए कहा कि इस डबल इंजन की नापाक सरकार को बिहार से अगर हटाना है, तो पूरी एकजुटता के साथ महागठबंधन को वोट करना पड़ेगा. इकरा हसन ने कहा कि वोटों का बिखराव हुआ तो बिहार में बीजेपी की सरकार बन जाएगी और इस बार बीजेपी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि खुद मुख्यमंत्री की सीट पर कब्ज़ा करेगी.

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मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफ़ज़ाल अंसारी, जो गाजीपुर से सपा के सांसद हैं, उन्होंने ओवैसी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. अफजाल अंसारी कहते हैं कि ओवैसी वही काम कर रहे हैं, जो आरएसएस कर रही है, यानी मुसलमानों को बांटने का. वहीं, इमरान प्रतापगढ़ी अपनी हर रैली में ओवैसी को बीजेपी की बी-टीम बताते रहे. इस तरह महागठबंधन ने ओवैसी की मुस्लिम राजनीति को बेअसर करने के लिए हरसंभव कोशिश की है, ताकि उन्हें सीमांचल में मात देकर उनकी आगे की राजनीति पर ब्रेक लगाई जा सके.

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