बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का प्रचार शोर रविवार शाम थम गया है और अब बारी मतदाताओं की है. इस चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर 1302 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला मंगलवार को 37013556 मतदाता करेंगे. दूसरे चरण का चुनाव ही फाइनल है, जिसके बाद 14 नवंबर को नतीजे आएंगे.
सीएम नीतीश कुमार के अगुवाई वाले एनडीए अपनी सत्ता को बचाए रखने की कवायद में है. एनडीए क बिहार में पूरा दारोमदार नीतीश के काम और पीएम मोदी के नाम पर टिका हुआ है.
वहीं, आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन अपनी वापसी के लिए बेताब है. महागठबंधन की कोशिश अपने कोर वोटबैंक मुस्लिम-यादव समीकरण को जोड़े रखते हुए दलित-अतिपिछड़े वर्ग को जोड़ने की है. इस तरह दूसरे फेज के चुनाव में महागठबंधन और एनडीए की ताकत और कमजोरी क्या हैं?
बिहार चुनाव के दूसरे चरण में NDA का SWOT विश्लेषण:
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एनडीए की STRENGTH (ताकत)
नीतीश कुमार का नेतृत्व: जेडीयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए के लिए एक मजबूत आधार हैं, जो 'सुशासन' पर अपने ज़ोर के लिए जाने जाते हैं.
संगठित कार्यकर्ता आधार: बीजेपी और जेडीयू का एक मजबूत और संगठित कार्यकर्ताओं का सियासी आधार है. बीजेपी के साथ होने से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और आरएसएस से जुड़े संगठनों का भी एनडीए को समर्थन शामिल है.
लोकप्रिय कल्याणकारी योजनाएं: एनडीए सरकार बिहार चुनाव ऐलान से पहले ही कई लोकप्रिय कल्याणकारी योजनाएँ लागू की हैं, जिनमें बढ़ी हुई सामाजिक सुरक्षा पेंशन, महिलाओं को वित्तीय सहायता और बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाएं शामिल हैं.
एनडीए की WEAKNESS (कमजोरी)
सत्ता-विरोधी लहर का खतरा: बिहार की सत्ता दो दशक से नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द सिमटी हुआ है. सीएम नीतीश कुमार दो दशकों से सत्ता में है, जिससे मतदाताओं में सत्ता-विरोधी भावनाएं पैदा हो सकती हैं.
बीजेपी की सवर्ण छवि: बिहार में बीजेपी को अभी भी उच्च जातियों की पार्टी माना जाता है, जिससे अन्य समुदायों में इसकी लोकप्रियता सीमित हो जाती है. बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स हावी है, जहां पर 85 फीसदी से ज्यादा दलित-ओबीसी हैं तो 15 फीसदी से भी कम सवर्ण जातियां हैं.
एनडीए के लिए OPPORTUNITIES
विकास परियोजनाए: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राज्य में हाल ही में शुरू की गई विकास और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से एनडीए के लिए संभावनाओं को बल मिल सकता है. पीएम मोदी ने विधानसभा चुनाव ऐलान से पहले विकास की सौगात देकर सियासी समीकरण साधने का दांव चल चुके हैं.
मतों का एकीकरण: एनडीए अपने पारंपरिक समर्थकों, जिनमें उच्च जातियां और अति पिछड़े वर्ग शामिल हैं, के बीच वोटों का एकीकरण कर सकता है.
एनडीए के लिए THREAT...
इंडिया ब्लॉक का अभियान: आरजेडी और कांग्रेस के नेतृत्व वाला इंडिया ब्लॉक बेरोज़गारी, कानून-व्यवस्था और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर प्रचार कर रहा है, जिससे एनडीए का समर्थन कम हो सकता है.
प्रशांत किशोर फैक्टर: प्रशांत किशोर के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने से एनडीए के लिए उच्च जाति वोट बैंक में सेंधमारी का खतरा बना हुआ है.
बिहार चुनाव के दूसरे चरम में महागठबंधन का SWOT विश्लेषण:
महागठबंधन की STRENGTH (ताकत)
मज़बूत एम-वाई समीकरण: बिहार में महागठबंधन की सबसे बड़ी ताकत उसका सियासी आधार है. आरजेडी और कांग्रेस पूरा फोकस मुस्लिम और यादवों के बीच है, जो सबसे मज़बूत समर्थन आधार माना जा रहा. बिहार में एम-वाई समीकरण का 32 फीसदी वोट शेयर है.
युवाओं तक पहुंच: आरजेडी ने जमीनी स्तर पर गतिविधियों में तेज़ी देखी है और गठबंधन के भीतर खुद को एक नैतिक आवाज के रूप में तेजस्वी ने स्थापित किया है. युवाओं में तेजस्वी की अपनी लोकप्रियता है और महागठबंधन के सीएम चेहरा होने का लाभ है.
महागठबंधन की WEAKNESS (कमजोरी)
महागठबंधन में रार: आरजेडी की प्रभावशाली उपस्थिति और तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता बिहार में कांग्रेस के उभरने वाल प्रयासों पर भारी पड़ सकती है. सीट शेयरिंग के दौरान कांग्रेस और आरजेडी के बीच सियासी मनमुटाव भी दिखा.
लीडरशिप की कमी: कांग्रेस के पास बिहार में लीडरशिप का अभाव है, जो स्थानीय स्तर पर लोगों का समर्थन हासिल कर सके या फिर एक अलग राजनीतिक रुख़ स्थापित कर सके. बिहार में कांग्रेस की छवि आरजेडी की पिछलग्गू की बन गई है.
महागठबंधन में मन मुटाव: उम्मीदवार चयन और अभियान समन्वय को लेकर टकराव संदेशों की सुसंगतता और संगठनात्मक अनुशासन को कमज़ोर कर सकता है.
इंडिया ब्लॉक के लिए OPPORTUNITIES...
युवा जुड़ाव और मुद्दा-आधारित राजनीति: रोजगार सृजन, परीक्षा सुधार और लोकतांत्रिक जवाबदेही पर कांग्रेस का ज़ोर बिहार की जेनरेशन ज़ेड आबादी के साथ मेल खाता है.
जाति सर्वेक्षण का लाभ: आरजेडी पिछड़े और वंचित समुदायों को संगठित करने के लिए सामाजिक न्याय के मुद्दे को धार दे रही है. राहुल गांधी भी बिहार में दलित-ओबीसी पर ही फोकस कर रहे है. इस तरह महागठबंधन को 'मंडल' की विरासत का लाभ मिल सकता है.
महागठबंधन के लिए THREAT...
एनडीए का मज़बूत चुनावी तंत्र: एनडीए के लक्षित कल्याणकारी कार्यक्रम और मज़बूत संगठनात्मक ढांचा महागठबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती है.
AIMIM का प्रभाव: असदुद्दीन ओवैसी की उपस्थिति मुस्लिम वोटों को विभाजित कर सकती है, जिससे महागठबंधन की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है, खासकर सीमांचल क्षेत्र में, जहां पर दूसरे चरण में वोटिंग है.
प्रशांत किशोर फैक्टर: तेजस्वी यादव की तरह प्रशांत किशोर भी युवाओं के लिए रोजगार और पलायन का मुद्दा उठा रहे हैं और दूसरे चरण में भी युवा वर्ग के वोट बैंक में प्रशांत कशोर सेंध मारी तेजस्वी के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.
रोहित कुमार सिंह