बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीट पर 6 नवंबर को मतदान है. सीएम नीतीश कुमार के सियासी भविष्य का फैसला पहले चरण के चुनाव से तय हो जाएगा, क्योंकि जेडीयू अपने कोटे की आधे से ज्यादा सीटों पर मैदान में है. जेडीयू का ज्यादातर सीटों पर मुकाबला आरजेडी से है. इस तरह जेडीयू के लिए पहला चरण का चुनाव करो या मरो वाली स्थिति से कम नहीं है.
जेडीयू बिहार में कुल 101 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें पहले चरण में 57 और दूसरे चरण की 44 सीट पर किस्मत आजमा रही है. यही नहीं, जेडीयू के 2020 में जीते 43 विधायकों में से 23 विधायक यानी आधे से ज्यादा पहले चरण वाली सीटों से जीतकर आए थे. इस लिहाज से समझा जा सकता है कि जेडीयू के लिए कितना अहम है पहले फेज का चुनाव.
नीतीश के लिए कितना अहम बिहार चुनाव
बिहार की सियासत दो दशक से नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है, लेकिन बिहार की सियासी धुरी पर खड़े नीतीश कुमार के लिए इस बार का चुनाव काफी अलग और चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि एनडीए में जेडीयू की भूमिका अब बड़े भाई की नहीं रह गई है. बीजेपी और जेडीयू 101-101 सीट पर यानी बराबर-बराबर सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
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नीतीश कुमार के नेतृत्व में भले ही बीजेपी और उसके सहयोगी दल चुनाव लड़ रहे हों, लेकिन सीएम के नाम पर रजामंदी नहीं है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में आजतक के 'बिहार पंचायत' कार्यक्रम में साफ-साफ शब्दों में कहा कि एनडीए नीतीश की अगुवाई में चुनाव लड़ रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद विधायक दल की बैठक में होगा.
बिहार में नीतीश कुमार का सियासी प्रभाव भी पहले जैसा नहीं रहा. पिछले चुनाव में जेडीयू सिर्फ 43 सीटें ही जीत सकी थी, जबकि बीजेपी उनके कम सीटों पर चुनाव लड़कर 74 सीटें जीतने में सफल रही थी. बीजेपी के प्रदर्शन के चलते ही एनडीए की सरकार बन सकी थी.
20 साल से सत्ता में रहने के चलते नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी मानी जा रही है, जिसके चलते बीजेपी खुद फ्रंटफुट पर उतरकर चुनाव लड़ रही है. ऐसे में जेडीयू के लिए अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए बिहार की चुनावी जंग जीतना काफी अहम हो जाता है, क्योंकि इस बार बीजेपी से कम सीटें आती हैं तो सीएम की कुर्सी मिलना नीतीश को आसान नहीं होगा.
पहले चरण में होगी नीतीश की अग्निपरीक्षा
बिहार के सियासी चक्रव्यूह में घिरे नीतीश कुमार के लिए पहला चरण का चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. पहले चरण की कुल 121 सीटों पर आरजेडी और जेडीयू की सर्वाधिक सीटें दांव पर लगी हैं. महागठबंधन की तरफ से आरजेडी 71 सीट पर चुनाव लड़ रही है तो एनडीए की ओर से जेडीयू पहले फेज में 57 सीट पर प्रत्याशी उतारे हैं.
एनडीए में जेडीयू के बाद 48 सीट पर बीजेपी चुनाव लड़ रही है, जबकि चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) ने 14 सीट पर उम्मीदवार उतार रखे हैं. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम के दो प्रत्याशी मैदान में हैं और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) की एक सीट पर चुनाव लड़ रही है. इस तरह से एनडीए में सबसे ज्यादा अहम नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के लिए चुनाव है.
जेडीयू की आरजेडी से असल चुनावी लड़ाई
पहले चरण की जिन 121 सीटों पर मतदान होना है, उनमें 57 सीटों पर जेडीयू चुनाव लड़ रही है. जेडीयू की पहले चरण की 36 सीटों पर आरजेडी से सीधी लड़ाई है और 13 सीट पर कांग्रेस से मुकाबला है. इसके अलावा सात सीट पर जेडीयू की लड़ाई सीपीआई माले से है और दो सीटों पर मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के साथ फाइट है.
वहीं, 23 सीट पर आरजेडी और बीजेपी के बीच मुकाबला है तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच पहले चरण में सिर्फ 13 सीटों पर सीधी लड़ाई है. चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (आर) की 10 सीटों पर आरजेडी से सीधा मुकाबला करना पड़ रहा है तो भाकपा-माले पांच सीट पर बीजेपी से दो-दो हाथ करेगी. मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी चार सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार से मुकाबला कर रही है, तो उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम के दोनों उम्मीदवारों का मुकाबला आरजेडी प्रत्याशी से है.
पहले चरण के चुनाव में असल लड़ाई जेडीयू की है, जिसमें महागठबंधन के आरजेडी से कांग्रेस और लेफ्ट तक से उसे दो-दो हाथ करना पड़ रहा है. 2020 में आरजेडी के साथ सीधी लड़ाई में जेडीयू विफल रही थी. इस बार जेडीयू को महागठबंधन से ही नहीं बल्कि जन सुराज से भी मुकाबला करना पड़ रहा है. जेडीयू के सामने जन सुराज ने उसी समुदाय से प्रत्याशी उतार रखे हैं, जिस पर नीतीश कुमार अपना दबदबा समझ रहे थे.
जेडीयू के लिए करो या फिर मरो वाली स्थिति
बिहार का चुनाव जिस दिशा में जा रहा है, उसमें जेडीयू के लिए पहला चरण का चुनाव करो या मरो वाली स्थिति का बन गया है. जेडीयू पहले चरण की 57 सीटों में से अगर आधी से ज्यादा सीटें नहीं जीत पाती है तो सत्ता के सिंहासन तक पहुंचना नीतीश कुमार के लिए मुश्किल हो जाएगा. ऐसे में नीतीश कुमार के लिए पहले चरण के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती खड़ी हो गई है.
नीतीश कुमार को सत्ता का सूर्यास्त देखने के लिए मजबूर किया जा सकता है या फिर अगर उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया तो क्या वे अपने राजनीतिक जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ेंगे? इन सभी सवालों के जवाब नए सदन में आने वाले संख्याबल पर निर्भर करेंगे. बिहार चुनाव की कहानी सिर्फ एनडीए बनाम महागठबंधन और जन सुराज के संभावित तीसरी त्रिकोणीय लड़ाई के रूप में उभरने की है. ऐसे में जेडीयू के सियासी भविष्य का फैसला पहले चरण में हो जाएगा.
कुबूल अहमद