बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार का सियासी तापमान चढ़ने लगा है. चुनाव अभियान का आगाज भले ही सियासी दलों ने विकास और रोजगार के मुद्दे से शुरू किया हो, लेकिन प्रचार रफ्तार पकड़ने के साथ ही धार्मिक ध्रुवीकरण वाले एजेंडे सेट किए जाने लगे हैं. बीजेपी के नेता से लेकर आरजेडी के नेताओं ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं.
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि 'सरकार बनी तो वक्फ बोर्ड बिल को कूड़ेदान में फेंक देंगे.' इससे सीमांचल क्षेत्र के चुनावी समीकरणों को नया मोड़ दे दिया है. इससे पहले बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि मुस्लिम केंद्र की योजनाओं का लाभ लेते हैं, लेकिन बीजेपी को वोट नहीं देते, ऐसे नमक हराम का वोट नहीं चाहिए.
बिहार के चुनावी पिच पर गिरिराज के 'नमक हराम' वाले बयान से शुरू हुआ विवाद मुस्लिम महिलाओं के बुर्का हटाने, मुस्लिम डिप्टी सीएम और अब वक्फ कानून खत्म करने के मुद्दे तक पहुंच गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बिहार का चुनाव धार्मिक ध्रुवीकरण की तरफ शिफ्ट होने लगा है?
नमक हराम और घुसपैठ का मुद्दा
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एक मौलवी के साथ अपनी कथित बातचीत का जिक्र करते हुए गिरिराज सिंह ने एक रैली में कहा कि एक मुस्लिम मौलवी से हमने पूछा आपको आयुष्मान कार्ड मिला, उसने कहा, हां मिला, क्या हिंदू-मुसलमान विवाद हुआ, उसने कहा नहीं. इसके बाद मैंने पूछा कि क्या आपने मुझे वोट दिया? उन्होंने हां कहा, लेकिन जब मैंने खुदा की कसम खाने को कहा तो वो चुप हो गए.
गिरिराज सिंह ने कहा कि जो लोग उपकार को नहीं मानते, उन्हें 'नमक हराम' कहते हैं. मैंने मौलवी साहब से साफ़ कहा कि हमें ऐसे नमक हरामों के वोट नहीं चाहिए. मुसलमान केंद्र की योजनाओं का लाभ लेते हैं, लेकिन बीजेपी को वोट नहीं देते. ऐसे 'नमक हराम' का वोट नहीं चाहिए.
गिरिराज यहीं नहीं रुके, उन्होंने घुसपैठ का मुद्दा उठाते हुए मुसलमानों पर निशाना साधा, जिसे कांग्रेस-आरजेडी ने कहा कि बीजेपी को सिर्फ नफरत की भाषा आती है. गिरिराज जैसे लोग बयान देकर वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहते हैं, लेकिन बिहार की जनता सब जानती और समझती है.
बुर्का विवाद को सियासी धार
बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने चुनाव आयोग से मांग की थी कि बुर्का पहनकर आने वाली महिलाओं की पहचान उनके वोटर कार्ड से की जाए. उन्होंने सवाल उठाया था कि कहीं इस प्रक्रिया का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा. विदेश यात्रा के समय चेहरा दिखाते हैं, लेकिन बिहार में वोट डालते वक्त गरीबों के अधिकार छीनने के लिए चेहरा छिपा लेते हैं, यह ग़लत है.
इस पर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो बुर्कानशीं महिलाओं की चेकिंग होगी, यह महिला अधिकारियों की निगरानी में ही होगी.
आरजेडी नेता अभय कुशवाहा ने कहा कि हाल ही में एसआईआर प्रक्रिया के दौरान सभी मतदाताओं की नई फोटोयुक्त वोटर लिस्ट तैयार की गई है, जिससे पहचान का कोई बड़ा संकट नहीं है. इसके बाद भी बीजेपी इस मुद्दे को धर्म और पहनावे से जोड़कर अपना एजेंडा थोपना चाहती है. इसके बाद बीजेपी और आरजेडी में ज़ुबानी जंग जारी है, जिसके जरिए सियासी बिसात बिछाई जा रही है.
मुस्लिम डिप्टी सीएम का मुद्दा
बिहार चुनाव के लिए महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम फेस तो मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित किया, जिसके बाद मुस्लिम डिप्टी सीएम की मांग को लेकर सियासत गरमा गई. जेडीयू और चिराग पासवान ने आरजेडी-कांग्रेस पर मुस्लिमों के साथ धोखा करने का आरोप लगाया तो असदुद्दीन ओवैसी ने भी सवाल खड़े किए.
जेडीयू ने कहा कि महागठबंधन के लोग 'जिसकी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी' की बात करते हैं... लेकिन जब पद की बारी आती है सबसे पहले परिवार आता है। यह आपका मुसलमान के लिए दोहरा रवैया है. मुसलमान समुदाय भी समझ गया है। वोट मुसलमान का, राज किसी परिवार का चलेगा.
ओवैसी ने कहा कि यादव, पासवान, ठाकुर हर जाति-समुदाय के अपने नेता हैं, लेकिन बिहार में 19 प्रतिशत मुसलमानों के पास अपना कोई नेता नहीं है. चिराग पासवान ने कहा कि 2005 में मेरे पिता राम विलास पासवान ने मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने के लिए अपनी पार्टी कुर्बान कर दी थी, तब भी आपने (आरजेडी) उनका साथ नहीं दिया। 2025 में भी आपके लिए मुसलमान सिर्फ वोटबैंक हैं.
पूर्णिया से सांसद और कांग्रेस नेता पप्पू यादव ने कहा कि महागठबंधन की सरकार बनी तो डिप्टी सीएम मुसलमान ज़रूर बनेगा. अशोक गहलोत ने कहा कि महागठबंधन में और भी डिप्टी सीएम पद के उम्मीदवार होंगे. डिप्टी सीएम के मुस्लिम चेहरे की संभावना से इनकार नहीं कर रहे. देखते हैं, इंतजार कीजिए, यह किसी समुदाय से हो सकता है.
वक़्फ़ क़ानून ख़त्म करने का वादा
तेजस्वी यादव ने रविवार को कटिहार में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी सरकार बनी तो वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंक देंगे. तेजस्वी के इस बयान पर कांग्रेस और लेफ्ट भी पूरी तरह साफ हैं. इससे यह बात साफ़ हो गई है कि 'वक्फ' अब बिहार की राजनीति में ध्रुवीकरण का एक नया केंद्र बनता जा रहा है.
तेजस्वी ने जिस तरह से कहा कि लालू-राबड़ी की सरकार के दौरान आरएसएस और सांप्रदायिक ताकतों की बिहार में क़दम रखने की हिम्मत नहीं थी., बीजेपी को बिहार में जगह देने का काम नीतीश कुमार ने किया है.
वक़्फ कानून को लेकर बिहार के सीमांचल में सबसे ज़्यादा विरोध देखने को मिला था. मुस्लिम डिप्टी सीएम की मांग उठती देख तेजस्वी यादव ने सीमांचल के इलाके में ही वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंकने का ऐलान कर मुस्लिम समुदाय का भरोसा जीतने का दांव चला है.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह दांव सीमांचल के कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और अररिया जैसे ज़िलों में ओवैसी के सियासी प्रभाव को ख़त्म करने के लिए चला गया.तेजस्वी यादव का वक़्फ़ बिल पर आक्रामक रुख ओवैसी फ़ैक्टर को कमज़ोर करने और मुस्लिम वोट बैंक को फिर से एकजुट करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है.
कांग्रेस और वामदलों के समर्थन के बाद अब वक़्फ मुद्दा महागठबंधन के साझा एजेंडा के रूप में उभरता दिख रहा है, जिसके ज़रिए मुस्लिम वोटों को जोड़े रखने की रणनीति है. हालांकि, बीजेपी अब इस मुद्दे पर सियासी धार देने में जुट गई है और ध्रुवीकरण का आरोप लगा रही है.
कुबूल अहमद