आइशी पश्चिम बंगाल के छोटे से शहर दुर्गापुर से पढ़ने
दिल्ली आई थीं. उन्हें साल 2019 में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) छात्रसंघ की नई
अध्यक्ष के तौर पर चुना गया था. जीतने के बाद उन्होंने विश्वविद्यालय के कई मुद्दों पर शांतिपूर्ण संघर्ष की बात कही थी.
दौलतराम कॉलेज से पॉलिटिक्स की पढ़ाई करने के बाद फिलहाल वो जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से एमफिल की छात्रा हैं. यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से छात्र हितों को लेकर लिए गए किसी भी निर्णय में खामी पाए जाने पर वो विरोध के सुर उठाती रही हैं.
साल 2019 में एमबीए की 12 लाख रुपये तक बढ़ी फीस को लेकर आइशी घोष भूख हड़ताल पर भी बैठी थीं. भूख हड़ताल में सेहत बिगड़ने के बाद उन्हें चिकित्सकीय परामर्श से अनशन से उठाया गया था.
आइशी ने कहा था वो नये छात्रसंघ अध्यक्ष के तौर पर छात्रों के लिए हॉस्टल और रीडिंग रूम का मुद्दा उठाएंगी. वो कहती हैं कि जेएनयू की अपनी संस्कृति है, आज जेएनयू में मेरे जैसी छोटे शहर से आई लड़की प्रेसीडेंट बनी है तो जरूर कुछ तो बात है इस कैंपस में.
आइशी ने कहा था कि वो जेएनयू से बाहर देश की राजनीति में भी जाना पसंद करेंगी. उनका कहना है कि मुझे लगता है कि महिलाएं राजनीति के जरिए ही समाज में अपने लिए पल रही सोच को बदल सकती हैं.
छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के बाद जब जेएनयू प्रशासन ने इंटर हॉस्टल मैनुअल में हॉस्टल की फीस बढ़ाकर ड्रेस कोड जैसे नये नियम बनाए तो आइशी ने इसका पुरजोर विरोध किया. इसके तुरंत बाद कैंपस में फीसवृद्धि और नये हॉस्टल मैनुअल को लेकर आंदोलन छिड़ गया.
आंदोलन का नेतृत्व कर रही आइशी ने फीस हाइक के मुद्दे पर 11 नवंबर को यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह के दिन प्रदर्शन का आह्वान किया. इस प्रदर्शन में हजारों की संख्या में स्टूडेंट्स ने हिस्सा लिया था. जिसके बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भी फीस हाइक को लेकर कमेटी बनाई.
आइशी छात्र राजनीति में एक बेहद सक्रिय नेता की छवि के तौर पर सामने आई हैं. इस पूरे आंदोलन में उन्हें अपने परिवार का भी सहयोग मिल रहा है. रविवार की घटना पर उनके माता-पिता ने भी प्रतिक्रिया दी है.
वहीं इस पूरे मामले में आइशी घोष की मां ने यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के
इस्तीफे की मांग की है. साथ ही उन्होंने कहा कि वो अपनी बेटी को विरोध प्रदर्शनों से
बाहर निकलने के लिए नहीं कहेंगी.