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अफजल-कसाब को जल्लाद ने नहीं दी थी फांसी, इन्होंने खींचा था लीवर

aajtak.in
  • 14 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 10:18 AM IST
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निर्भया कांड के चार गुनहगारों मुकेश, पवन, अक्षय और विनय की फांसी का इंतजार पूरा देश कर रहा है. वहीं जल्लाद ही निर्भया के आरोपियों को फांसी के फंदे पर लटकाया. आपको बता दें, भारत में पिछली तीन फांसी बिना जल्लाद के दी गई थी. आइए जानते हैं.

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भारत में जिन दोषियों को तीन फांसी बिना जल्लाद के दी गई है. वह अजमल कसाब, अफजल गुरु और याकूब मेमन थे. इन तीनों को फांसी बगैर जल्लाद के दी गई थी. तीनों  फांसी देने के दौरान लीवर पुलिस वाले ने ही खींचा था.

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अजमल आमिर कसाब

26/11 हमले के दोषी अजमल आमिर कसाब को पुणे के यरवडा जेल में 21 नवंबर 2012 को सुबह 7.36 बजे फांसी दी गई थी. कसाब की फांसी की पूरी प्रक्रिया को बेहद गुप्‍त रखा गया. उसे 'ऑपरेशन बुद्धा स्‍माइल' के तहत दी गई फांसी गई थी. जिसके बाद  8:40 में यरवडा जेल में ही दफना दिया गया था.



फोटो: अजमल आमिर कसाब

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अफजल गुरु

13 दिसंबर 2001 में भारतीय संसद में हमले के मास्‍टरमाइंड अफजल गुरु  9 फरवरी 2013 को फांसी पर लटका दिया गया था.  उसे दिल्‍ली स्थित तिहाड़ में फांसी दी गई थी.


फोटो: अफजल गुरु

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याकूब मेनन

1993 के मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन को 30 जुलाई 2015 फांसी की सजा दी गई थी. नागपुर जेल में याकूब को सुबह 6 बजकर 35 मिनट पर फांसी लगाई गई थी. फांसी के आधे घंटे बाद डॉक्टरों की एक टीम ने उसे मृत घोषित किया था और उसके बाद उसके शव को फांसी के फंदे से उतारा गया था.

फोटो: याकूब मेनन

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फांसी ही नहीं...भारत में गोली मारकर भी दी जाती है सजा-ए-मौत

भारत में फांसी के अलावा सजा-ए-मौत गोली मारकर भी दी जाती है. जहां एक ओर द कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (1898) में फांसी से लटका कर मृत्युदंड देने का प्रावधान है. वहीं भारत में मौत की सजा देने का दूसरा तरीका गोली मारने का है. लेकिन ये तरीका आम लोगों के लिए अपनाया नहीं जाता है. इसका उपयोग सिर्फ और सिर्फ भारतीय सेनाओं में होने वाले कोर्ट मार्शल के बाद होता है.


एयरफोर्स एक्ट 1950 के सेक्शन 34 में प्रावधान के अनुसार भारत में कोर्ट मार्शल के जरिए अगर किसी को मौत की सजा दी जाती है तो उसे फांसी पर लटका सकते हैं या गोली मार सकते हैं. द आर्मी एक्ट, द नेवी एक्ट और द एयरफोर्स एक्ट में मौत की सजा देने के लिए गोली मारने का भी प्रावधान है.

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फांसी से पहले नियम

किसी को फांसी देते समय कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता है. जिसके बिना फांसी की प्रक्रिया अधूरी मानी जाती है. बिना नियमों का पालन किए फांसी की प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती है. फांसी देने के नियम में फांसी का फंदा, फांसी देने का समय, आदि प्रकिया शामिल होती है.

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फांसी के दौरान ये लोग होते हैं शामिल

जब किसी को फांसी दी जाती है उस समय जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट, जल्लाद और डॉक्टर मौजूद रहते हैं. इनके बिना फांसी नहीं दी जाती है.

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सुबह ही दी जाती है फांसी


फांसी सुबह के समय दी जाती है. ये समय सुबह के 6, 7, 8 बजे भी हो सकता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सुबह जेल के कैदियों का काम किसी तरह से बाधित न हो.

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सुबह का समय इसलिए भी चुना जाता है ताकि रात में जेल के कैदी को फांसी देने के बाद परिवार वालों को सुबह अंतिम संस्कार करने के लिए समय भी मिल जाता है.

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जैसी ही किसी व्यक्ति को फांसी की सजा सुनाई जाती है उस जेल से निकालर डेथ सेल में भेज दिया जाता है. ये एक ऐसा कमरा होता है जिसमें बस अंधेरा होता है. वहीं फांसी देने से 1 दिन पहले व्यक्ति का फांसी कोठी में शिफ्ट कर दिया जाता है. जब कैदी फांसी कोठी में होता है तो उस दौरान सिक्योरिटी के अलावा कोई भी वहां पर मौजूद नहीं होता.

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जल्लाद क्या कहता है कान में

कैदी को फांसी देने के दौरान जल्लाद ही आखिरी वक्त में उसके साथ होता है. फांसी देने से पहले जल्लाद अपराधी के कानों में कुछ बोलता है जिसके बाद वह चबूतरे से जुड़ा लीवर खींच देता हैं.


दरअसल जल्लाद बोलता है "हिंदूओं को राम राम और मुस्लिमों को सलाम. मै अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं. मैं आपके सत्य के राह पे चलने की कामना करता हूं."






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