Advertisement

एजुकेशन

जब गांधी जी ने कहा- जामिया चलाने के लिए कटोरा लेकर भीख मांगने को तैयार हूं

मानसी मिश्रा
  • 16 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 3:24 PM IST
  • 1/14


जामिया मिल्लिया इस्लामिया साल 1920 में अलीगढ़ में मूल रूप से एक संस्था के रूप में स्थापित किया गया था. आगे चलकर यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय बना.

आजादी से पहले एक संस्था से केन्द्रीय विश्वविद्यालय तक बनने की कहानी में तमाम मोड़ हैं. भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने एक बार कहा था कि उन्होने तिनका-तिनका जोड़कर और तमाम कुर्बानियां देकर जामिया का निर्माण किया. जामिया के सामने कभी ऐसे हालात भी आए जब वो खत्म होने की कगार पर आ गया. तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा कि जामिया को बचाना है, वो कटोरा लेकर भीख मांगने को भी तैयार थे. आज जामिया मिलिया इस्लामिया टीवी-समाचार पत्रों की हेडलाइनों में है. यूनिवर्सिटी को लेकर तमाम तरह की बातें हो रही हैं. आइए ऐसे मौके पर जानें- जामिया मिलिया इस्लामिया की अब तक की कहानी और आजादी के आंदोलन में क्या थी यूनिवर्सिटी की भूमिका. देखें पुरानी तस्वीरें.

फोटो: जामिया स्कूल के बच्चों से मुखातिब होते देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू
Image Credit: aajtak.in/ special permission

  • 2/14

जामिया मिलिया को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत के सबसे प्रगतिशील शैक्षिक संस्थानों में से एक कहा था. यह उस दौर की बात है जब गांधी जी के आह्वान पर औपनिवेशिक शासन से समर्थित या चलाए जा रहे सभी शैक्षणिक संस्थाओं का बहिष्कार करने के लिए, राष्ट्रवादी शिक्षकों और छात्रों के एक समूह ने ब्रिटिश समर्थक इच्छा के खिलाफ विरोध करके अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छोड़ दिया. इस आंदोलन के सदस्यों में मौलाना महमूद हसन, मौलाना मोहम्मद अली, हकीम अजमल खान, डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी और अब्दुल मजीद ख़्वाजा प्रमुख थे.

फोटो: जामिया के स्कूल हॉस्टल की 85 साल पुरानी तस्वीर
Image Credit: aajtak.in/ special permission

  • 3/14

ये थे जामिया की नींव डालने वाले लोग
29 अक्टूबर 1920 को फाउंडेशन समिति की बैठक हुई, इसमें डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी (दिल्ली), मुफ्ती कफायतुल्लाह (दिल्ली), मौलाना अब्दुल बारी फरांग महाली (उ.प्र.), मौलाना सुलेमान नद्वी (बिहार), मौलाना शब्बीर अहमद उस्मानी (उ.प्र), मौलाना हुसैन अहमद मदनी (उ.प्र), चौधरी खलीक़-उज-ज़मा (उ.प्र), नवाब मोहम्मद इस्माइल खान, तसददुक हुसैन ख़ान (उ.प्र), डॉ. मौहम्मद इक़बाल (पंजाब), मौलाना सनाउल्लाह खान अमृतसरी (पंजाब), डॉ सैफुद्दीन किचलू (पंजाब), मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (बंगाल और बिहार), डॉ सैयद महमूद (बंगाल और बिहार), सेठ अब्दुल्ला हारून कराची वाले (सिंध, बंबई और हैदराबाद), अब्बास तयबीजी (सिंध, बंबई और हैदराबाद), सेठ मियां मौहम्मद हाजी जाम छोटानी (सिंध, बंबई और हैदराबाद), मौलवी अब्दुल हक़ (सिंध, बंबई और हैदराबाद) शामिल थे.

फोटो: क्लास लेते तत्कालीन कुलपति प्रो मुजीब
Image Credit: aajtak.in/ special permission

Advertisement
  • 4/14

22 नवम्बर 1920 को हकीम अजमल ख़ान जामिया के पहले चांसलर नियुक्त हुए. गांधी जी अल्लामा इक़बाल को पहला वाइस चांसलर बनाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने गांधीजी के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया इसलिए मोहम्मद अली जौहर जामिया के पहले वाइस चांसलर बने. इसके बाद सिंडीकेट चुनकर पाठ्यक्रम उपसमिति बनाई गई. जाने माने स्वतंत्रता सेनानी और मुस्लिम धर्मज्ञ मौलाना महमूद हसन ने शुक्रवार, 29 अक्तूबर 1920 को अलीगढ़ में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की नींव रखी. बता दें कि जिन मुश्किल परिस्थितियों में इसे शुरू किया गया उसे ध्यान में रखते हुए इसके पहले शिक्षकों की सूची बहुत प्रभावशाली है.

फोटो: तैराकी कंपटीशन में हिस्सा लेते हुए जामिया के छात्र, ओखला नहर
Image Credit: aajtak.in/ special permission

  • 5/14

मुश्किलों का दौर

ये वो वक्त था जब देश में एक राजनीतिक संकट की स्थिति थी. माहौल ये था कि कुछ देर के लिए ऐसा लगा कि भारत की स्वतंत्रता के गहन राजनैतिक संघर्ष की गर्मी से जामिया बच नहीं पाएगा. जामिया ने बारडोली संकल्प में भाग लिया और देश के स्वतंत्रता संघर्ष के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए देश भर में स्वयंसेवकों को भेजा था. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने जल्द ही तमाम शिक्षकों और छात्रों को कैद कर लिया. फिर 1922 में गांधीजी ने असहयोग-आंदोलन वापस ले लिया तो तब जाकर शिक्षकों और छात्रों को छोड़ा गया. मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने 1924 में खिलाफ़त आंदोलन को भी खत्म करने की घोषणा कर दी.

फोटो: जामिया कैंपस करीब 70 साल पहले, फाउंडेशन डे सेरेमनी के दौरान
Image Credit: aajtak.in/ special permission

  • 6/14

तब अचानक जामिया में एक गंभीर संकट आ गया. कइयों को यकीन था कि जामिया अपने मिशन को हासिल कर लेगा, वहीं कुछ को लगने लगा कि असहयोग और खिलाफत आंदोलन के अंत के साथ जामिया ने भी अपना अस्तित्व खो दिया. खिलाफत से मिली छोटी वित्तीय सहायता भी अब मिलनी बंद हो गई थी. फिर जब कुछ प्रमुख चेहरों ने इसे छोड़ना शुरू किया तो इसके खत्म होने की स्थिति और स्पष्ट होने लगी.

फोटो: जामिया कैंपस में ऐसे भी लग चुकी हैं कक्षाएं
Image Credit: aajtak.in/ special permission


Advertisement
  • 7/14

ऐसे दिल्ली आया जामिया

जामिया पर बुरा वक्त ज्यादा देर टिक नहीं सका. अलीगढ़ में मुसीबत बढ़ने पर हकीम अजमल ख़ान, डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी और अब्दुल मजीद ख़्वाजा तीनों ने गांधी जी की मदद से जामिया को 1925 में अलीगढ़ से करोल बाग, नई दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया. तब गांधी जी ने कहा कि जामिया को चलना होगा, अगर तुम को वित्तीय सहायता की चिंता है तो मैं इसके लिए कटोरा लेकर भीख मांगने के लिए तैयार हूं. इस बात ने जामिया का मनोबल बढ़ाया. इसी आत्मनिर्भरता के लिए गांधी जी ने चरखा और तकली के रचनात्मक कार्यक्रम को पसंदीदा पेशे के रूप में अपनाया तो जामिया में भी ये शुरू किया गया.

फोटो: जामिया कैंपस में लगे बैलट बॉक्स, चुनाव प्रचार और चाचा नेहरू के साथ बाल दिवस की तस्वीर

Image Credit: aajtak.in/ special permission




  • 8/14

गांधीजी ने सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि जामिया की वित्तीय मदद के लिए बहुत से लोगो से संपर्क किया. लेकिन ब्रिटिश राज के तहत कांग्रेस समर्थित संस्था की मदद करने का जोखिम कई इच्छुक संरक्षक नहीं उठाना चाहते थे. यही नहीं उस दौर में रूढ़िवादी मुसलमानों ने भी जामिया को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लिए खतरे के तौर पर देखा था. उन मुश्किल दिनों में हकीम अजमल खान ने अपनी जेब से जामिया के ज्यादातर खर्च उठाए. डॉ एम.ए. अंसारी और अब्दुल मजीद ख़्वाजा भारत और विदेशों में जामिया के लिए मदद जुटाने के लिए दौरे कर रहे थे. इस तरह जामिया उस वक्त बच पाया था.

फोटो: जामिया कैंपस में एक कार्यक्रम के दौरान की तस्वीर

Image Credit: aajtak.in/special permission



  • 9/14

यूं मिली जामिया को नई दिशा

1925 में तीन दोस्तों डॉ. जाकिर हुसैन, डॉ. आबिद हुसैन और डॉ. मोहम्मद मुजीब ने जर्मनी में पढ़ाई पूरी करके जामिया की सेवा करने का फैसला किया. डॉ. जाकिर हुसैन बर्लिन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री लेकर आए थे. उनकी छवि करिश्माई नेता की थी तो वहीं डॉ. आबिद हुसैन ने एजुकेशन विषय से पीएचडी की थी. इसके अलावा मो मुजीब इतिहास के एक ऑक्सफोर्ड विद्वान और जर्मनी में मुद्रण के छात्र थे. वो जोशीले सुधारवादी नेता थे. 1926 में ये तीनों दोस्त जामिया आ चुके थे.


फोटो: जामिया की पुरानी पेंटिंग

Image Credit: aajtak.in/ special permission


Advertisement
  • 10/14

पहली बार जामिया में डॉ. जाकिर हुसैन को 100 रुपये वेतन की पेशकश की गई, वहीं यूरोपीय योग्यता प्राप्त उनके दो अन्य दोस्तों को 300 रुपये वेतन की पेशकश की गई. लेकिन जामिया के हालात देखते हुए इन दोनों ने भी अपना वेतन घटाकर 100 रुपये कर लिया. अपने दोस्तों की प्रतिबद्धता को देखते हुए डॉ. जाकिर हुसैन ने भी अपना वेतन 80 रु. कर लिया था.

फोटो: ऐसे हुई थी जामिया अस्पताल यूनिट की शुरुआत

Image Credit: aajtak.in/ special permission

  • 11/14

शुरू हुई प्रौढ़ शिक्षा

डॉ. जाकिर हुसैन ने सबसे पहला प्रभावी और लोकप्रिय कदम उठाया. उन्होंने शाम की कक्षाओं में प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत की. ये आंदोलन बाद में अक्टूबर 1938 में इदारा-ए-तालीम-ओ-तरक्की नामक एक संस्था के रूप में जाना जाने लगा. ये इतना लोकप्रिय हुआ कि छात्रों को समायोजित करने के लिए अलग-अलग कमरे बनाए गए.

फोटो: जामिया में ऐसे लगती थी कक्षाएं

Image Credit: aajtak.in/special permission

  • 12/14

1928 में हकीम अजमल खान के निधन के बाद दूसरे वित्तीय संकट की शुरुआत हुई. जामिया का नेतृत्व फिर डॉ. जाकिर हुसैन के हाथों में आ गया जो 1928 में जामिया के वाइस चांसलर बने. तब एक बार फिर जामिया ने मिसाल पेश की, जब वहां के तमाम शिक्षकों ने आने वाले बीस सालों के लिए सिर्फ 150 रुपये वेतन पर काम करने का संकल्प लिया. ये समूह जामिया का आजीवन सदस्य कहलाया. हालांकि 1942 में फिर कुछ शिक्षकों ने ये इतिहास दोहराया था.

फोटो: जामिया कैंटीन के बाहर की करीब 60 साल पुरानी तस्वीर

Image Credit: aajtak.in/ special permission

  • 13/14

बना नया परिसर

फिर 1 मार्च 1935 को दक्षिणी दिल्ली के बाहरी इलाके के एक गांव ओखला में एक विद्यालय भवन की आधारशिला रखी गई. साल 1936 में जामिया प्रेस, मकतबा और पुस्तकालय को छोड़कर सभी संस्थान नये परिसर में स्थानांतरित कर दिए गए. जामिया का बुनियादी महत्व शिक्षा के नवीन विधियों को विकसित करना था.  इसने 1938 में टीचर्स कालेज (उस्तादों का मदरसा) की स्थापना की. साल 1936 में डॉ. एम.ए. अंसारी का निधन हो गया. 4 जून 1939 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया एक संस्था के रूप में पंजीकृत हुआ.

फोटो: जामिया मिलिया की इमारत तैयार होते हुए

Image Credit: aajtak.in/ special permission

  • 14/14

जामिया से चले नये शिक्षा आंदोलन की प्रसिद्धि ऐसी फैली कि विदेशों से गणमान्य व्यक्ति जामिया को देखने आने लगे. हुसैन रउफ बे (1933) काहिरा के डॉ. बेहदजेत वाहबी (1934) तुर्की की हलीदे अदीब (1936) उनमें से कुछ एक हैं. विदेशी आगन्तुक जामिया से प्रभावित हुए और जामिया में काम करना शुरू कर दिया. जर्मन महिला गर्दा फिलिप्सबोर्न (आपाजान के नाम से लोकप्रिय) ने कई वर्षों तक जामिया की सेवा की. इन्हें मरणोपरांत जामिया में दफनाया गया.

फोटो: जामिया में अतिथि

Image Credit: aajtak.in/ special permission

Advertisement

लेटेस्ट फोटो

Advertisement