एक्टर इरफान खान हमारे बीच नहीं रहे. वो ऐसे कलाकार थे जो आंखों से एक्टिंग कर सभी को अपना दीवाना बना दिया करते थे. मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में बुधवार को उन्होंने अंतिम सांस ली. दुनिया उन्हें बोलती आंखों वाले सुपरस्टार से याद करेगी. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से की थी. कम ही लोग जानते हैं कि यहां एडमिशन के लिए उन्हें झूठ का सहारा लेना पड़ा था.
(फोटो- इरफान अपनी मां सईदा बेगम और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ) इरफान खान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के काफी करीब थे. साल 2016 में उन्होंने NSD की एक पुरानी तस्वीर शेयर की थी, जिसमें कैप्शन दिया था "वो भी क्या दिन थे NSD के". तस्वीर में इरफान एनएसडी के अपने दोस्तों के साथ बातचीत करते नजर आ रहे हैं.
जयपुर में एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद इरफान ने एक्टिंग सीखने के लिए दिल्ली का रुख किया और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन ले लिया था. वह अक्सर अपने NSD के दिनों को याद करते हुए किस्से सुनाया करते थे.
एक चैनल को दिए इंटरव्यू में इरफान ने बताया था, "मेरी मां की इच्छा थी कि उनका बेटा पढ़ लिख कर एक लेक्चरर बन जाए. कोई इज्जतदार नौकरी कर ले, लेकिन मुझे जयपुर से निकलना था. मैं हमेशा से सोचता था कि कोई लेक्चरर बनकर कैसे सारी उम्र रह सकता है. मुझे ये बहुत बोरिंग लगा था. इसके बाद मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लेने के बारे में सोचा."
मां से कहा था झूठ
इरफान ने बताया था, "जब मैंने NSD में एडमिशन लेने के बारे में सोचा तो उस समय मां को झूठ बोला था, मैंने उनसे कहा था, मैं एक जगह पढ़ने जा रहा हूं. यहां कॉलेज के बाद की पढ़ाई होती है और जब वापस लौटूंगा तो जयपुर यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बन जाऊंगा. हालांकि वहां से निकलने के बाद मैं लेक्चरर बन सकता था, लेकिन किसे पता था एक्टिंग की दुनिया मेरा इंतजार कर रही है. उन्होंने कहा था, ये सच है झूठ पर ही मैंने एक्टर बनने का अपना सपना शुरू किया था.
मां से झूठ के बाद NSD में बोला झूठ इरफान खान ने NSD में एडमिशन लेने के लिए मां से झूठ बोला और आ गए अपने सपने को पूरा करने दिल्ली. जब वह NSD पहुंचे तो यहां भी उन्होंने एडमिशन के लिए झूठ बोला था. इरफान ने बताया था, "वह किसी भी हाल में NSD में एडमिशन लेना चाहते थे. उन्होंने कहा, उस समय ऐसा लग रहा था कि अगर एडमिशन नहीं हुआ ''मैं दुनिया को आग लगा दूंगा"
आगे उन्होंने कहा था, NSD में दाखिले के लिए झूठ बोलना मेरी मजबूरी थी. मेरे पास ज्यादा अनुभव नहीं था. वहीं यहां एडमिशन लेने के लिए कम से कम पहले से 10 नाटक करना जरूरी है. तभी आप यहां एडमिशन के लिए योग्य माने जाते हैं. लेकिन मैंने इतने नाटक नहीं किए थे.
जब हुआ था पिताजी का निधन
इरफान के NSD में दाखिले के दिनों में उनके पिता की मृत्यु हो गई थी, उस दौरान उन्होंने घर से पैसे लेना बिल्कुल बंद कर दिया था. ऐसे में NSD से मिलने वाली स्कॉलरशिप के माध्यम से अपना कोर्स पूरा किया करते थे. उन्होंने बताया उस समय घर का खर्च कुछ छोटी मोटी दुकानों के किराए से चलता था.
(फोटो- NSD के दिनों में नाटक करते हुए इरफान खान)
पिता के निधन के बाद न चाहते हुए भी जिम्मेदारी इरफान खान पर आ गई थी. ऐसे में उनके छोटे भाई ने परिवार की जिम्मेदारी अपने हाथ में लेकर इरफान के सपनों को नई उड़ान दी. जब वह NSD पहुंचे तो उनकी मुलाकात सुतपा सिकदर और दोस्त तिग्मांशु धुलिया से हुई थी. जो आज डायरेक्टर हैं.
फोटो- (इरफान खान (बीच में) अपने दो दोस्तों के साथ)
जब मिली पहली फिल्म
इरफान खान उस वक्त बहुत खुश थे जब उन्हें 1988 में सलाम बॉम्बे फिल्म मीरा नायर ने ऑफर की थी. मीरा उन दिनों NSD कांस्टिंग के लिए आई थीं. उस समय वह फाइनल ईयर में थे. वह अच्छे एक्टर में गिने जाने लगे थे.
जब रोये थे इरफान खान
इरफान ने बताया था, 'जिस लीड रोल के लिए मुझे कास्ट किया गया था वह रोल किसी वजह से कट गया और मीरा ने मेरा दिल रखने के लिए दूसरा रोल दिया. वह रोल लेटर राइटर का था, लेकिन लीड रोल न मिलने के बाद मैं खूब रोया था. क्योंकि उस रोल के लिए दो महीने की वर्कशॉप की थी. मैं बच्चों के साथ घुल मिल गया था. शूटिंग के सपने देख लिए थे, लेकिन अचानक पता चलता है कि रोल आपके लिए नहीं है. इरफान ने बताया उस समय मन कच्चा होता था.
फोटो: (सलाम बॉम्बे में इरफान खान लेटर राइट की भूमिका निभाते हुए)