पढ़ाई में औसत से भी कम, घर पर भी संसाधन नहीं, लेकिन फिर भी मन में ठान लिया था कि IPS अफसर बनकर रहना है. लेकिन हालात हमेशा खिलाफ रहे. चार अटेंप्ट में फेल होने के बावजूद न नौकरी छोड़ी और न तैयारी. बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले रौशन कुमार की सक्सेस स्टाेरी सबसे अलग है. 12 घंटे की नौकरी करने वाले इस इंजीनियर ने किस तरह IPS का अपना लक्ष्य प्राप्त किया. आइए जानें क्या वाकई घर पर तैयारी करके इस कठिन सफलता को प्राप्त किया जा सकता है.
रौशन ने अपने एक वीडियो इंटरव्यू में बताया कि मैं ये कभी नहीं कहूंगा कि मैं बहुत स्पेशल हूं जिसने IPS निकाल दिया. मैं अपने को एवरेज से भी नीचे का स्टूडेंट मानता हूं. मैं बचपन से ही पढ़ाई में बहुत अच्छा नहीं था.
मुजफ्फरपुर के रहने वाले रौशन का एकेडमिक बैकग्राउंड खराब था. 12वीं में उनका 58.6 पसेंट आया था. वो कहते हैं कि गणित-अंग्रेजी आदि में तो मैं घिसट कर पास हुआ था. इस सभी विषयों में बस पासिंग मार्क्स भर आए थे.
उन्हें 12वीं के रिजल्ट के बाद ही महसूस हो गया था कि उनका आईआईटी वगैरह में दाखिला हो ही नहीं सकता था. इसके बाद उन्होंने मैनेजमेंट कोटा से एक इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया. उन्होंने लेकिन यहां पढ़ाई को सीरियस लिया और इंजीनियरिंग बहुत अच्छे नंबरों से पास की.
उन्होंने इंजीनियरिंग में बेहतर प्रदर्शन किया तो वहीं से उन्हें कैंपस प्लेसमेंट के जरिये ही नौकरी मिल गई. लेकिन, उनके मन में बचपन से पुलिस सर्विसेज में इंटरेस्ट था. अब नौकरी मिल गई थी लेकिन कहीं न कहीं मन में आईपीएस बनने का सपना था क्योंकि उनका पहली च्वाइस यही थी.
साल 2012 में वो जॉब करने लगे थे. नई नई नौकरी थी, कंपनी में काम ज्यादा था, सीखना बहुत था. ऐसे में 12 से 14 घंटे काम करने के बाद तैयारी के लिए समय बहुत कम बचता था. फिर साल 2013 फरवरी में रौशन की शादी हो गई. अब पत्नी के साथ बातचीत में उन्होंने अपना आईपीएस बनने का सपना बताया.
पत्नी ने उनसे कहा कि आप सिविल सर्विसेज के लिए करते क्या हैं, जॉब के साथ पढ़ाई कैस करते हैं. पत्नी ने रोशन का हौसला बढ़ाया तो वो तैयारी में जुट गए. उनका 2013- 14 ऐसे ही निकल गया. फिर उन्होंने आईएएस टॉपर के इंटरव्यू सुने टॉपर की बताई किताबें मंगा ली. रौशन कहते हैं कि उनका रूम लगभग लाइब्रेरी बन गया लेकिन किताबों को पढ़ने का वक्त नहीं मिलता था.
फिर साल 2014 में उन्होंने पहली बार प्रीलिम्स दिया. इसमें वही हुआ जिसकी उन्हें उम्मीद थी, उनका सेलेक्शन नहीं हुआ था. सोचा जॉब छोड़कर तैयारी करें, लेकिन घर से कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं मिला क्योंकि छोटा भाई भी पढ़ाई कर रहा था. फिर 2015 में भी जैसे-तैसे काम के साथ पढ़कर फिर तैयारी की. लेकिन 2015 के प्रीलिम्स में भी फेल हो गए.
फिर 2016 में प्रीलिम्स क्लीयर हो गया, लेकिन मेन्स की तैयारी सही नहीं थी. उन्होंने सोचा वाइफ ये न सोचे कि मैं एग्जाम से भाग रहा हूं इसलिए मेन्स दिया. हालत ये थी कि पहला ऐशे पेपर दिया फिर सो गए. पूरा मेन्स जैसे-तैसे दिया. फिर ड्यूटी पर वापस आ गए. रोशन कहते हैं कि जब मार्क्स आए तो देखा कि 124 नंबर था, वहीं से मेरा कॉन्फीडेंस बढ़ा.मैंने सोचा कि अगर अच्छे से तैयारी करूं तो निकाल सकता हूं.