19 सितंबर 2008 की सुबह राजधानी दिल्ली में जामिया
नगर इलाके के बाटला हाउस में एनकाउंटर हुआ. आज
इसे पूरे 11 साल हो चुके है. इस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस का जाबांज इंस्पेक्टर शहीद हो गया जिसकी भरपाई आज तक नहीं
हो पाई. ये पुलिस इंस्पेक्टर थे मोहन चंद शर्मा. आइए
जानते हैं उनके बारे में और साथ ही जानते हैं कैसे
उन्होंने 11 साल पहले आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन बाटला हाउस को अंजाम दिया था.
पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा ने दिल्ली पुलिस,
स्पेशल सेल में सेवा दी थी. वह आतंकवादियों के साथ
दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए
थे. शर्मा को 26
जनवरी 2009 को सर्वोच्च वीरता पदक "अशोक चक्र" से
सम्मानित किया गया.
इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का जन्म चौखुटिया, उत्तराखंड में 23 सितंबर 1965 में हुआ था. वह 19 साल की उम्र में दिल्ली पुलिस में शामिल हो गए थे. साल 1989 में उनकी नियुक्ति सब- इंस्पेक्टर के पद पर हुई.
शर्मा ने फरवरी 2007 में दिल्ली के डीडीयू मार्ग में मुठभेड़ के बाद चार जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों की गिरफ्तारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. साल 2006 में उन्होंने आतंकी अबू हमजा को मुठभेड़ में मार गिराया गया था.
(प्रतीकात्मक फोटो)
जब बाटला हाउस एनकाउंटर में शहीद हुए मोहन चंद शर्मा
आपको बता दें, 19 सितंबर 2008 की सुबह आठ बजे
इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की फोन कॉल स्पेशल सेल के
लोधी कॉलोनी स्थित ऑफिस में मौजूद एसआई राहुल
कुमार सिंह को मिली. उन्होंने राहुल को बताया कि
आतिफ एल-18 में रह रहा है. उसे पकड़ने के लिए टीम
लेकर वह बटला हाउस पहुंच जाए. जिसके बाद इंस्पेक्टर
मोहन चंद शर्मा डेंगू से पीड़ित अपने बेटे को नर्सिंग होम
में छोड़ कर बटला हाउस के लिए रवाना हो गए.
(प्रतीकात्मक फोटो)
इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा बाटला हाउस के फ्लैट में
आतंकियों को दबोचने पहुंचे थे. वह फ्लैट की ओर बढ़ें और सीढ़ियां चढ़ने लगे. दो पुलिसकर्मी नीचे खड़े रहे. फ्लैट के अंदर चार लड़के नजर आए. वह थे आतिफ अमीन, साजिद, आरिज और शहजाद पप्पू. सैफ नामक एक लड़का बाथरूम में था. दोनों ओर से धड़ाधड़ फायरिंग होने लगी.
फायरिंग में मोहन चंद शर्मा को दो
गोलियां लगीं. जिसके बाद शर्मा को होली फैमिली
हॉस्पिटल ले जाया गया जिसके बाद डॉक्टर्स ने उन्हें मृत
घोषित कर दिया.
इंस्पेक्टर शर्मा ने 21 साल तक पुलिस की नौकरी की. आपको बता दें, इंस्पेक्टर शर्मा दिल्ली पुलिस के एनकाउंटर विशेषज्ञ थे.
(आतंकियों की गोली लगने के बाद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा)
शर्मा के पीछे उनकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी रह
गई. जिस साल ये एनकाउंटर हुआ था उस समय उनका
बेटा कीर्ति नगर के एक अस्पताल में डेंगू का इलाज करा
रहा था. बाद में उसे पिता की अंतिम विदाई के लिए घर
लाया गया. इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का जन्म चौखुटिया उत्तराखंड में 23 सितंबर 1965 में हुआ था. अपने 43वें जन्मदिन से कुछ दिन पहले ही वह 19 सितंबर 2008 में शहीद हो गए.
(आतंकी शहनाज पप्पू पुलिस के कब्जे में)
वह वीरता पुरस्कार, राष्ट्रपति वीरता मेडल और 150 पुलिस पुरस्कारों से सम्मानित थे. अपने करियर में उन्होंने 35 आतंकियों को मार गिराया है और 80 से ज्यादा आतंकियों की गिरफ्तारी का श्रेय उन्हें ही जाता है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पूर्व निदेशक करनाल सिंह ने कहा '' हमने अपना सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को खो दिया है.
(बाटला हाउस इलाके की बिल्डिंग एल-18 की चौथी मंजिल का फ्लैट नंबर 108 से आतकियों के हथियार की तस्वीर)
इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा एसीपी राजबीर सिंह की मौत के बाद दूसरे नंबर पर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट थे. बता दें, 24 मार्च 2008 की शाम को दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. राजबीर के निधन के बाद शर्मा ने आतंकवाद के खिलाफ दिल्ली पुलिस की लड़ाई में मुख्य भूमिका निभाई. मोहन चंद शर्मा 1989 में दिल्ली पुलिस में शामिल हुए और 6 साल बाद उन्हें इंस्पेक्टर बनने के लिए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन मिला. हालांकि, 1998 में उनके ट्रांसफर 1998 में स्पेशल सेल में कर दिया गया.