साफिन हसन के लिए 23 दिसंबर की तारीख सबसे खास साबित होगी और हो भी क्यों ना, इस दिन वह इतिहास जो रचने वाले हैं. इसी तारीख को गुजरात के जामनर में Assistant Superintendent of Police (ASP) यानी जिला पुलिस उपाधीक्षक का पदभार ग्रहण करेंगे. इसी के साथ वह सबसे कम उम्र का आईपीएस ऑफिसर बन जाएंगे. यहां तक पहुंचने के लिए जहां उन्होंने दिन रात एक कर दिए वहीं उनके माता- पिता ने बेटे की पढ़ाई के लिए काफी मेहनत की. आइए जानते हैं उनके संघर्ष के बारे में.
गुजरात के राजकोट में रहने वाले साफिन हसन की वर्तमान में उम्र 23 साल है. 2017 में उन्होंने यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) परीक्षा दी थी जिसमें 570वीं रैंक हासिल की थी.
जब माता - पिता ने नहीं मानी हार
द टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, हसन के माता-पिता, मुस्तफा हसन और नसीम्बाणु ने सूरत की एक हीरे की यूनिट में अपनी नौकरी खो दी. जिसके बाद बेटे की शिक्षा के लिए पैसे जुटाना मुश्किल हो गया था. बेटे की पढ़ाई जरूरी थी, ऐसे में उन्होंने हार नहीं मानी.
उनके पिता ने एक इलेक्ट्रीशियन के रूप में नौकरी की. उनकी मां परिवार का समर्थन करने के लिए रेस्तरां और मैरिज हॉल में रोटियां बनाने काम करती थी, वहीं इसी के साथ पिता सर्दियों के महीनों में चाय और अंडे बेचते थे.
साफिन की किस्मत अच्छी थी. उन्हें एक बिजनेसमैन और समाज का समर्थन मिला था.
ऐसे आया अफसर बनने का ख्याल
साफिन एक वीडियो इंटरव्यू में बताया कि किस तरह प्राइमरी स्कूल में देखा था कि कलेक्टर सर आए तो लोगों ने इज्जत दी. मैं ये देखकर हैरान रह गया और सोचने लगा ये कौन है.
वो कहते हैं घर आकर मैंने मौसी से पूछा कलेक्टर सर को लोगों ने इज्जत क्यों दी. उन्होंने बच्चे की तरह समझाया कि कलेक्टर किसी जिले का राजा होता है. फिर मैंने पूछा कलेक्टर कैसे बनते हैं, उन्होंने बताया कि कोई भी अच्छी पढ़ाई करके कलेक्टर बन सकता है. तभी से मैंने ठान लिया की अब तो अफसर ही बनना है.
अपने पारिवार के संघर्ष के बारे में उन्होंने बताया कि साल 2000 में जब उनका मकान बन रहा था तो माता-पिता दिन में मजदूरी करते थे और रात में घर बनाने में ईंट ढोते थे. मंदी के चलते दोनों की नौकरी चली गई थी.
पापा मुझे पढ़ाने के लिए आसपास बन रहे घरों में इलेक्ट्रीशियन का काम करते थे. रात में ठेला लगाकर उबले अंडे और ब्लैक टी बेचते थे. मेरी मां बड़े-बड़े आयोजनों पर रोटियां बनाती थीं और कई घंटों तर रोटियां बेलती थी.
मां सुबह 3 बजे उठकर 20 से 200 किलो तक चपाती बनाती थी. इस काम से वो हर महीने पांच से आठ हजार रुपए कमाती थीं. इसके बाद आंगनबाड़ी में एक्स्ट्रा काम करती थीं. मेरे माता- पिता का संघर्ष ही थी जिस वजह से मेरा हौसला नहीं टूटा.
साफिन अपने हॉस्टल खर्च के लिए छुट्टियों में बच्चों को पढ़ाते थे. बता दें, जब वह यूपीएससी परीक्षा का हला अटेंप्ट देने जा रहे थे तभी उनका एक्सीडेंट हो गया था. परीक्षा देने गए और एग्जाम देने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था. उनका कहना है 23 दिसंबर 2019 का दिन मेरा, मेरे माता- पिता के संघर्ष की भरपाई करेगा.
(सभी तस्वीरें इंस्टाग्राम से ली गई है)