कोरोना ने न सिर्फ आम आदमी के रोजगार की चिंता बढ़ाई है, बल्कि इसके प्रभाव से शिक्षा जगत भी नहीं बच पाया है. इसी सप्ताह आई एक ताजा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते ब्रिटेन की 13 यूनिवर्सिटीज बेहद घाटे में आ गई हैं. इन यूनिवर्सिटीज की हालत इतनी खराब है कि इनके बंद होने तक की नौबत आ सकती है. आइए जानते हैं क्या हैं इसके पीछे की वजहें.
इन यूनिवर्सिटीज का सबसे बड़ा नुकसान अंतरराष्ट्रीय छात्र नामांकन न होने से हुआ है. इससे इनकी कमाई 1.4 बिलियन पाउंड और 4.3 बिलियन पाउंड के बीच, (2.8 बिलियन पाउंड के केंद्रीय अनुमान के साथ) होती है. दावा है कि इस साल इसमें गिरावट की संभावना होगी और विश्वविद्यालय-प्रायोजित पेंशन योजनाओं के घाटे में वृद्धि होगी, जिन्हें विश्वविद्यालयों को कवर करना होगा.
इंस्टीट्यूट ऑफ फिस्कल स्टडीज (IFS) का अनुमान है कि ब्रिटेन के उच्च
शिक्षा क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक नुकसान 3 बिलियन पाउंड और 19 बिलियन
पाउंड के बीच कहीं भी आ सकता है. इसमें सबसे बड़ा नुकसान भारत के
अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के नामांकन में गिरावट से है. बता दें कि देश के
तकरीबन 5 फीसदी छात्रों को ये विश्वविद्यालय शिक्षित करते हैं. अब सरकारी मदद (Bailout) के बिना लगभग 13 विश्वविद्यालय कोरोनोवायरस महामारी के कारण लॉकडाउन से बच नहीं पाएंगे.
ब्रिटेन सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, हाल के वर्षों में भारतीय
छात्र संख्या में तेजी आई है. साल 2015 से 2019 तक एनुअल ब्रिटेन स्टडी
वीजा जारी करने का प्रतिशत देखें तो भारत में इसमें 229 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. भारतीय छात्रों
के एक ब्रिटिश काउंसिल के सर्वेक्षण में पाया गया कि जिन लोगों ने पहले ही बीते साल के अंत में विदेश में अध्ययन के लिए एप्लाई किया था. उनमें से
43 प्रतिशत ने कहा है कि वो अपना प्लान चेंज नहीं करेंगे.
साथ ही इस बात के भी कई प्रमाण सामने आ रहे हैं कि कई भारतीय छात्र अपने प्लांस टाल सकते हैं. इसकी वजह ये बताई जा रही है कि विश्वविद्यालयों ने वर्चुअल सेशन पर ज्यादा जोर दिया है. बता दें कि COVID-19 संक्रमण के चलते लॉकडाउन प्रतिबंधों की वजह से विश्वविद्यालयों के सामने तमाम विकल्प नहीं हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार राष्ट्रीय भारतीय छात्रों और पूर्व
छात्र संघ यूके (NISAU-UK) की चेयरपर्सन सनम अरोड़ा ने कहा है कि हमने हाल ही में ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में सितंबर 2020 के सत्र के लिए भारतीय छात्रों का सर्वे किया था. इसमें बहुत स्पष्ट रूप से सामने आया कि भारतीय छात्र यूके में आना जारी रखना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए उनकी कुछ जरूरतों को मानना होगा.
भारतीय छात्र ब्रिटिश क्लासेज के अनुभव और विश्वविद्यालय के बुनियादी ढांचे जैसे
रीसर्च लैब तक अपनी पहुंच चाहते हैं. सर्वे में 80 प्रतिशत ने
कहा कि अगर अगले साल ऑनलाइन ही पढ़ाया जाएगा तो वो उनके प्रस्ताव को
स्वीकार नहीं करेंगे. लेकिन अगर ऑन कैंपस क्लासेज चलीं तो इनमें से लगभग 55 प्रतिशत छात्र राजी हैं. इसके अलावा कुछ छात्र फीस में छूट को लेकर भी अपनी बात रख रहे हैं.
बता दें कि ये रिपोर्ट कोरोना महामारी के संकट का ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज पर पड़ने वाले असर पर सबसे ताजा रिपोर्ट है. इस मामले में यूके के शिक्षा विभाग का कहना है कि उसने वित्तीय सहायता व सहित अन्य के लिए मई में विश्वविद्यालयों के लिए मदद की घोषणा की थी. बता दें कि बीते साल 2019 में सबसे ज्यादा इंडियन छात्रों ने यूके में स्टडी के लिए आवेदन किया था, लेकिन अभी हालात एकदम अलग नजर आ रहे हैं. इसलिए कुछ यूनिवर्सिटीज ने अपने नये सत्र के लिए अप्रैल 2021 तक आवेदन का समय भी दिया है.