US ने जापान में पहली बार तैनात किया HALE ट्राइटन ड्रोन, उत्तर कोरिया-चीन पर निगरानी आसान

चीन और उत्तर कोरिया पर निगरानी करने के लिए अमेरिका ने पहली बार जापान में मौजूद इंडो-पैसिफिक कमांड में अपना नया ड्रोन तैनात किया है. इस ड्रोन की खासियत यही है कि ये जासूसी और निगरानी में माहिर है. इसकी मौजूदगी से चीन और उत्तर कोरिया की हरकतों में थोड़ा विराम लग सकता है.

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ये है ट्राइटन हेल ड्रोन, जिसे अमेरिका ने जापान में पहली बार तैनात किया है. (फोटोः नॉर्थरोप ग्रुम्मन) ये है ट्राइटन हेल ड्रोन, जिसे अमेरिका ने जापान में पहली बार तैनात किया है. (फोटोः नॉर्थरोप ग्रुम्मन)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 मई 2024,
  • अपडेटेड 5:12 PM IST

अमेरिकी नौसेना ने जापान में पहली बार अपना नया ड्रोन तैनात किया है. ये ड्रोन जापान के आसपास निगरानी करेगा. चीन और उत्तर कोरिया की गतिविधियों पर नजर रखेगा. इसका नाम है ट्राइटन हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस (Triton HALE). 

इससे अमेरिका इंडो-पैसिफिक कमांड में जासूसी, निगरानी, सर्विलांस और रीकॉन्सेंस ऑपरेशन आसानी से कर पाएगा. इसे इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रीकॉन्सेंस (ISR) मिशन कहते हैं. ट्राइटन हेल ड्रोन मानवरहित है. इसे ग्राउंड स्टेशन से चार लोग मिलकर उड़ाते हैं. 

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47.7 फीट लंबे इस ड्रोन का विंगस्पैन 130.11 फीट है. 15.5 फीट ऊंचे इस ड्रोन का वजन 14,945 किलोग्राम होता है. यह अधिकतम 575 km/hr की स्पीड से उड़ान भरता है. इसकी रेंज इसे बेहद खतरनाक बनाती है. यह 15,200 किलोमीटर तक लगातार उड़ान भर सकता है. 

30 घंटे लगातार उड़ान की क्षमता

इसके अलावा ट्राइटन हेल लगातार 30 घंटे तक उड़ान भरने में सक्षम है. यह ड्रोन अधिकतम 56 हजार फीट की ऊंचाई पर जा सकता है. अमेरिकी नौसेना ने इसकी तैनाती अमेरिका में वॉशिंगटन, फ्लोरिडा और मैरीलैंड में कर रखी है. पहली बार इसे जापान में पहुंचाया गया है. ताकि चीन की हरकतों पर नजर रखी जा सके. 

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दुश्मन नहीं चाहता कि ये उसके आसमान में आए

इसके अलावा इस ड्रोन को ऑस्ट्रेलियाई एयरफोर्स भी इस्तेमाल कर रही है. इसमें किसी तरह का हथियार लगाने का ऑप्शन नहीं है. लेकिन इसकी निगरानी, जासूसी की क्षमता इतनी ज्यादा है कि दुश्मन देश इसे अपने आसमान में आने से डरते हैं. वो नहीं चाहते कि ऐसा कोई ड्रोन उनके आसमान में उड़ान भरे. 

भारत को भी दिया था ये ड्रोन लेने का ऑफर

अमेरिका में इसकी पहली उड़ान 22 मई 2013 को हुई थी. पांच साल बाद इसे सेना में शामिल किया गया. वैसे इसे आधिकारिक तौर पर MQ-4C बुलाते हैं. अमेरिका ने यह ड्रोन भारत को भी दिखाया था. भारतीय नौसेना फिलहाल इसे नहीं ले रही है लेकिन उसका इस्तेमाल कॉम्प्लीमेंट्री रोल में कर सकती है. 

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