ट्रंप टैरिफ के साइड इफेक्ट... स्विट्जरलैंड-थाईलैंड पीछे हट सकते हैं अमेरिकी लड़ाकू विमान खरीद की डील से

स्विट्जरलैंड और थाईलैंड का अमेरिकी लड़ाकू विमानों से मुंह मोड़ना ट्रंप की नीतियों और टैरिफ का नतीजा है. थाईलैंड अपनी संप्रभुता और भरोसे के लिए ग्रिपेन चुन रहा है, जबकि स्विट्जरलैंड आर्थिक और राजनीतिक कारणों से F-35 सौदे पर पुनर्विचार कर रहा है. यह बदलाव भविष्य में और देशों को सोचने पर मजबूर कर सकता है कि वे अपनी रक्षा के लिए किस पर भरोसा करें.

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स्विट्जरलैंड अमेरिकी फाइटर जेट F-35 की डील कैंसिल करने का प्लान बना रहा है. (File Photo: USAF) स्विट्जरलैंड अमेरिकी फाइटर जेट F-35 की डील कैंसिल करने का प्लान बना रहा है. (File Photo: USAF)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 08 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 3:36 PM IST

हाल के दिनों में दो देशों स्विट्जरलैंड और थाईलैंड ने अमेरिकी लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर बड़े फैसले लिए हैं. स्विट्जरलैंड अपने 9.1 बिलियन डॉलर के F-35 विमान सौदे को रद्द करने पर विचार कर रहा है, जबकि थाईलैंड ने अमेरिकी F-16 विमानों को ठुकराकर स्वीडिश ग्रिपेन विमानों का 600 मिलियन डॉलर का सौदा किया है.

स्विट्जरलैंड: F-35 सौदा रद्द करने की तैयारी

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स्विट्जरलैंड ने अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन से 36 F-35 लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए 9.1 बिलियन डॉलर का सौदा किया था. लेकिन अब वहां की सरकार और राजनीतिक दल इस सौदे को रद्द करने की बात कर रहे हैं. वजह है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा स्विट्जरलैंड पर लगाए गए 39% भारी टैरिफ (कर).

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ये टैरिफ स्विस निर्यात जैसे घड़ियां और कॉफी कैप्सूल पर लगाए गए हैं, जिससे वहां के लोगों और नेताओं में नाराजगी है. कई लोग कह रहे हैं कि अगर अमेरिका हमें व्यापार में नुकसान पहुंचा रहा है, तो हम उनके महंगे विमानों को क्यों खरीदें? इस सौदे को रद्द करने की मांग तेज हो रही है. लोग इसे लेकर बहस कर रहे हैं.

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थाईलैंड: ग्रिपेन के साथ नया रास्ता

दूसरी ओर, थाईलैंड ने एक बड़ा फैसला लिया है. कंबोडिया के साथ सीमा पर हवाई हमलों के एक हफ्ते बाद, थाई वायु सेना ने 4 स्वीडिश ग्रिपेन लड़ाकू विमानों का 600 मिलियन डॉलर का सौदा फाइनल किया है. यह सौदा 10 महीने की समीक्षा के बाद हुआ, जिसमें थाईलैंड ने अमेरिकी F-16 विमानों को नकार दिया.

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यह कदम दिखाता है कि थाईलैंड अब अमेरिकी हथियारों से हटकर स्कैंडिनेवियाई (स्वीडिश) तकनीक की ओर बढ़ रहा है. थाई वायु सेना का कहना है कि यह फैसला उनकी संप्रभुता (आत्मनिर्भरता) को मजबूत करने के लिए है. लेकिन देखकर लगता है कि यह भरोसे का सवाल भी है— वे किसे युद्ध में साथी के रूप में भरोसा कर सकते हैं.

क्यों हो रहा यह बदलाव?

दोनों देशों के फैसलों के पीछे कई कारण हैं...

  • ट्रंप के टैरिफ: अमेरिका द्वारा लगाए गए भारी करों ने स्विट्जरलैंड और थाईलैंड जैसे देशों को नाराज किया है. इससे उनके व्यापार पर असर पड़ा. अब वे अमेरिकी सौदों पर सवाल उठा रहे हैं.
  • भरोसे की कमी: ट्रंप की नीतियों और अमेरिका के साथ रिश्तों में तनाव ने इन देशों को सोचने पर मजबूर किया है. वे अमेरिकी हथियारों पर निर्भरता कम करना चाहते हैं.
  • स्वतंत्रता की चाह: थाईलैंड का कहना है कि स्वीडिश ग्रिपेन उनकी अपनी जरूरतों के हिसाब से बेहतर हैं. उन्हें अमेरिका के दबाव से आजादी दे सकते हैं. स्विट्जरलैंड भी अपनी तटस्थता (न्यूट्रैलिटी) बनाए रखना चाहता है.
  • किफायती विकल्प: ग्रिपेन विमान F-35 या F-16 की तुलना में सस्ते और रखरखाव में आसान माने जाते हैं, जो इन देशों के लिए फायदेमंद हो सकता है.

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तबाही के बाद का फैसला

थाईलैंड का यह कदम कंबोडिया के साथ सीमा पर हुए हवाई हमलों के बाद आया है, जिसमें F-16 विमानों का इस्तेमाल हुआ था. लेकिन इसके बावजूद थाईलैंड ने नए F-16 खरीदने से मना कर दिया. यह दिखाता है कि वे अमेरिकी हथियारों पर भरोसा खो रहे हैं. अपनी रक्षा के लिए दूसरा रास्ता चुन रहे हैं. स्विट्जरलैंड में भी लोग कह रहे हैं कि F-35 विमानों की कीमत बढ़ गई है. अमेरिका के साथ तनाव के बीच यह सौदा सही नहीं है.

आगे का रास्ता

ये फैसले अंतरराष्ट्रीय रक्षा और व्यापार में बड़े बदलाव का संकेत दे सकते हैं. अगर स्विट्जरलैंड F-35 सौदा रद्द करता है, तो अमेरिकी कंपनियों को नुकसान होगा. वहीं, थाईलैंड का ग्रिपेन चुनना स्वीडन जैसे देशों के लिए नई संभावनाएं खोल सकता है. यह भी साफ है कि छोटे देश अब अपनी आजादी और भरोसे के आधार पर फैसले लेना चाहते हैं, न कि सिर्फ अमेरिका के दबाव में.

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