हैदराबाद में प्लांट, जॉइंट प्रोडक्शन, दुनिया भर में सप्लाई...राफेल फ्यूजलेज डील भारत के लिए कितना अहम?

हैदराबाद में टाटा-दसॉल्ट की साझेदारी से 2028 तक राफेल का फ्यूजलेज बनेगा. यह विमान का मुख्य ढांचा है, जो भारत को रक्षा में आत्मनिर्भर बनाएगा. फैक्ट्री से हजारों नौकरियां मिलेंगी. वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की हिस्सेदारी बढ़ेगी. यह मेक इन इंडिया का बड़ा कदम है, जो रणनीतिक और आर्थिक ताकत देगा.

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दसॉल्ट कंपनी में राफेल की मुख्य बॉडी यानी फ्यूजलेज बनाते हुए कर्मचारी. (फाइल फोटोः Dassault Aviation) दसॉल्ट कंपनी में राफेल की मुख्य बॉडी यानी फ्यूजलेज बनाते हुए कर्मचारी. (फाइल फोटोः Dassault Aviation)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2025,
  • अपडेटेड 11:16 AM IST

5 जून 2025 को दसॉल्ट एविएशन और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) ने एक ऐतिहासिक समझौता किया, जिसके तहत राफेल फाइटर जेट का फ्यूजलेज (विमान का मुख्य ढांचा) अब भारत में बनेगा. यह पहली बार है जब राफेल का फ्यूजलेज फ्रांस के बाहर निर्मित होगा.

हैदराबाद में बनने वाली इस अत्याधुनिक फैक्ट्री से न केवल भारत की रक्षा क्षमता बढ़ेगी, बल्कि यह देश को वैश्विक एयरोस्पेस सप्लाई चेन में एक बड़ा खिलाड़ी बनाएगा. यह मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहल का एक शानदार उदाहरण है. आइए, जानें कि यह डील भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है, इसके तथ्य, आंकड़े और वैश्विक प्रभाव.

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राफेल फ्यूजलेज प्लांट: क्या है यह डील?

दसॉल्ट एविएशन (फ्रांस की कंपनी, जो राफेल बनाती है) और TASL ने चार प्रोडक्शन ट्रांसफर एग्रीमेंट्स पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके तहत हैदराबाद में एक नई फैक्ट्री बनेगी, जहां राफेल का फ्यूजलेज बनाया जाएगा. फ्यूजलेज विमान का मुख्य शरीर होता है, जो पंख, पूंछ, इंजन, और कॉकपिट को जोड़ता है.

  • स्थान: हैदराबाद, तेलंगाना.
  • उत्पादन शुरू: वित्तीय वर्ष 2028.
  • क्षमता: हर महीने दो पूर्ण फ्यूजलेज.
  • लक्ष्य: भारत और वैश्विक बाजार (जैसे इंडोनेशिया, सर्बिया) के लिए फ्यूजलेज की आपूर्ति.
  • निवेश: यह भारत के एयरोस्पेस ढांचे में एक बड़ा निवेश है.
  • काम: रियर फ्यूजलेज के लेटरल शेल्स, पूरा रियर सेक्शन, सेंट्रल फ्यूजलेज और फ्रंट सेक्शन का निर्माण.

एरिक ट्रैपियर (दसॉल्ट के CEO) ने कहा कि यह भारत में हमारी सप्लाई चेन को मजबूत करने का निर्णायक कदम है. TASL जैसे मजबूत साझेदार के साथ हम गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करेंगे. सुकरन सिंह (TASL के CEO) ने इसे भारत की एयरोस्पेस यात्रा में मील का पत्थर बताया.

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फ्यूजलेज क्या है और इसका महत्व

फ्यूजलेज राफेल का रीढ़ की हड्डी है. यह विमान का वह हिस्सा है जो सभी प्रमुख हिस्सों को जोड़ता है और इसे मजबूती, गति और स्टील्थ (रडार से बचने की क्षमता) देता है.

  • सामग्री: कार्बन फाइबर, टाइटेनियम, और रडार-एब्जॉर्बिंग मटेरियल.
  • वजन: लगभग 2,000-3,000 किलोग्राम (विमान के कुल वजन का 20-30%).
  • लंबाई: राफेल की कुल लंबाई 15.27 मीटर, जिसमें फ्यूजलेज मुख्य हिस्सा.

काम

  • कॉकपिट: पायलट के लिए सुरक्षित जगह, जिसमें हेड-अप डिस्प्ले और हेलमेट-माउंटेड साइट.
  • हथियार: मिसाइल्स (मिका, स्कैल्प), बम, और लेजर-गाइडेड हथियार रखने की जगह.
  • सेंसर: RBE2 AESA रडार और SPECTRA इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम.
  • ईंधन: 4,700 किलोग्राम ईंधन टैंक, जो 3,700 किमी रेंज देता है.
  • खासियत: एरोडायनामिक डिज़ाइन और स्टील्थ तकनीक, जो मैक 1.8 (2,200 किमी/घंटा) गति और 50,000 फीट ऊँचाई पर उड़ान देता है.

फ्यूजलेज के बिना विमान अधूरा है. इसका निर्माण एक जटिल और हाई-टेक प्रक्रिया है, जिसमें 500 से ज्यादा सब-कंपोनेंट्स और 7,000 कर्मचारी शामिल होते हैं. 

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हैदराबाद प्लांट: भारत के लिए क्यों अहम?

यह डील भारत के लिए कई कारणों से महत्वपूर्ण है... 

मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत: यह पहल भारत को एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग हब बनाएगी. भारत अब राफेल का सिर्फ खरीदार नहीं, बल्कि निर्माता भी होगा. विदेशी निर्भरता कम होगी, खासकर रखरखाव और स्पेयर पार्ट्स में. अन्य स्वदेशी विमान जैसे LCA तेजस और AMCA के लिए तकनीक विकसित होगी. 

आर्थिक लाभ

हजारों नौकरियां : हैदराबाद फैक्ट्री से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा.

स्थानीय अर्थव्यवस्था: तेलंगाना में आर्थिक विकास को बढ़ावा.

निवेश: दसॉल्ट का यह भारत के एयरोस्पेस ढांचे में बड़ा निवेश है.

निर्यात: भारत वैश्विक बाजार (इंडोनेशिया, सर्बिया) के लिए फ्यूजलेज बनाएगा, जिससे विदेशी मुद्रा आएगी.

तकनीकी उन्नति

टेक्नोलॉजी ट्रांसफर: भारतीय इंजीनियरों को हाई-प्रिसिशन मैन्युफैक्चरिंग सीखने का मौका.

हाई-टेक फैक्ट्री: हैदराबाद में बनने वाली अत्याधुनिक सुविधा भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग मानकों पर लाएगी.

क्षमता: हर महीने दो फ्यूजलेज बनाने की क्षमता भारत की तकनीकी ताकत दिखाएगी.

रणनीतिक महत्व

भारत-चीन सीमा तनाव और पाकिस्तान की चुनौतियों के बीच राफेल भारत की हवाई ताकत है. ऑपरेशन सिंदूर (7 मई 2025) में राफेल ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला किया, जिससे इसकी ताकत साबित हुई. भारत के पास 36 राफेल (वायुसेना) और 26 राफेल-M (नौसेना, 63,000 करोड़ की डील, 2030 तक डिलीवरी) हैं. स्थानीय उत्पादन से भारत जल्दी स्पेयर पार्ट्स और मेंटेनेंस कर सकेगा. 

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वैश्विक सप्लाई चेन में भारत

  • भारत अब राफेल के फ्यूजलेज को वैश्विक बाजार में सप्लाई करेगा.
  • यह भारत को वैश्विक एयरोस्पेस सप्लाई चेन में एक मजबूत खिलाड़ी बनाएगा.
  • दसॉल्ट का कहना है कि यह साझेदारी भारत को आर्थिक आत्मनिर्भरता देगी.

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टाटा-दसॉल्ट की साझेदारी: क्यों खास?

दसॉल्ट एविएशन: 90 देशों में 10,000+ विमान (2,700 फाल्कन जेट्स सहित) बेच चुकी है. यह विमान डिज़ाइन और मैन्युफैक्चरिंग में विश्व नेता है. 

TASL: भारत की प्रमुख एयरोस्पेस कंपनी, जो एयरोस्ट्रक्चर, इंजन और एयरबोर्न सिस्टम बनाती है. इसके वैश्विक कंपनियों (जैसे बोइंग, लॉकहीड मार्टिन) के साथ समझौते हैं. 

साझेदारी का इतिहास: टाटा और दसॉल्ट पहले से राफेल और मिराज 2000 के पुर्जे बनाते हैं. 

विश्वास: दसॉल्ट का फ्रांस के बाहर फ्यूजलेज बनाने का फैसला TASL की तकनीकी क्षमता पर भरोसा दिखाता है. 

राफेल की ताकत

  • गति: मैक 1.8 (2,200 किमी/घंटा)
  • रेंज: 3,700 किमी
  • पेलोड: 9,500 किलोग्राम हथियार
  • ऊंचाई: 50,000 फीट

भारत की राफेल डील

2016: 7.87 बिलियन यूरो में 36 राफेल (वायुसेना).

2025: 63,000 करोड़ में 26 राफेल-M (नौसेना).

MRO सुविधा: उत्तर प्रदेश में राफेल के लिए मेंटेनेंस सेंटर.

वैश्विक प्रभाव

  • भारत का कद: यह डील भारत को वैश्विक एयरोस्पेस हब बनाएगी.
  • निर्यात: भारत राफेल के फ्यूजलेज को अन्य देशों (जैसे इंडोनेशिया, सर्बिया) में सप्लाई करेगा.
  • प्रतिस्पर्धा: भारत अब अमेरिका, रूस और यूरोप जैसे देशों के साथ एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग में प्रतिस्पर्धा करेगा.
  • दसॉल्ट के शेयर: इस डील से पेरिस स्टॉक एक्सचेंज में दसॉल्ट के शेयर 2% बढ़कर 323.20 यूरो पर पहुंचे.
  • भारत-फ्रांस संबंध: यह साझेदारी भारत-फ्रांस रक्षा सहयोग को मजबूत करती है.
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