हाल ही में गुजरात एटीएस ने ISIS से जुड़े एक बड़े आतंकी प्लॉट को नाकाम किया, जिसमें रिसिन नाम के रासायनिक जहर का इस्तेमाल करने की साजिश थी. ये जहर अरंडी के बीजों (कैस्टर बीन्स) से बनता है, जो घर-घर में आसानी से मिल जाते हैं. लेकिन ये कितना खतरनाक है? एक छोटी सी मात्रा भी इंसान की जान ले सकती है.
रिसिन एक प्रोटीन है, जो अरंडी के पौधे (रिसिनस कम्युनिस) के बीजों में पाया जाता है. ये पौधा दुनिया भर में उगाया जाता है, खासकर तेल निकालने के लिए. अरंडी का तेल दवाइयों, साबुन और मशीनों के लिए इस्तेमाल होता है. लेकिन बीजों में रिसिन नाम का जहर छिपा होता है, जो इतना ताकतवर है कि इसे जैविक हथियार माना जाता है. अमेरिका और रूस जैसे देशों ने कभी इसका इस्तेमाल हथियार के रूप में सोचा था.
रिसिन सफेद पाउडर, गंधरहित और स्वादहीन होता है. ये खाने, सांस लेने या इंजेक्शन से शरीर में डाला जा सकता है. अच्छी बात ये है कि ये संक्रामक नहीं – एक इंसान से दूसरे में नहीं फैलता. लेकिन अगर ये हवा में छोड़ा जाए या पानी में मिला दिया जाए, तो बड़े पैमाने पर नुकसान कर सकता है.
अरंडी के बीजों से तेल निकालने के बाद बचा हुआ कचरा – जिसे 'कैस्टर केक' कहते हैं – रिसिन का मुख्य स्रोत होता है. दुनिया में हर साल 20 लाख टन से ज्यादा अरंडी के बीज प्रोसेस होते हैं. 5% कचरा रिसिन युक्त होता है.
तेल निकालने की प्रक्रिया सरल है: बीजों को कुचलकर गर्म पानी या रसायनों से तेल अलग किया जाता है. बचा हुआ गूदा रिसिन से भरा होता है.
घर पर भी रिसिन बनाना आसान है. बीजों को पीसकर, पानी में उबालकर और केमिकल्स (जैसे एसिड) से साफ करके शुद्ध रिसिन निकाला जा सकता है. लेकिन ये काम खतरनाक है – थोड़ा सा जहर हवा में फैल जाए तो खुद ही बीमार हो जाए.
गुजरात केस में आरोपी डॉक्टर ने 4 लीटर कैस्टर ऑयल खरीदकर इसी कचरे से रिसिन बनाने की कोशिश की थी. विशेषज्ञ कहते हैं कि ये जहर बनाना मुश्किल नहीं, लेकिन पहचानना और रोकना जरूरी है.
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रिसिन दुनिया के सबसे घातक जहरों में से एक है. ये शरीर की कोशिकाओं को अंदर से नष्ट कर देता है. इसका कोई इलाज या एंटीडोट नहीं है – सिर्फ लक्षणों का इलाज किया जा सकता है. खतरा एक्सपोजर के तरीके पर निर्भर करता है...
खाने से (ओरल): वयस्क के लिए 1-20 मिलीग्राम प्रति किलो वजन घातक. यानी 50 किलो वजन वाले इंसान के लिए 50-1000 मिलीग्राम. ये 5-20 अरंडी के बीजों के बराबर है. बच्चे के लिए 1-3 बीज ही जानलेवा हो सकते हैं. बीज न चबाएं तो जहर कम निकलता है, लेकिन चबाने से रिसिन मुक्त हो जाता है.
सांस लेने या इंजेक्शन से: सिर्फ 5-10 माइक्रोग्राम प्रति किलो वजन. यानी 50 किलो इंसान के लिए 0.25-0.50 मिलीग्राम – एक चावल के दाने जितना. ये तेजी से फेफड़ों या खून में घुसकर कोशिकाओं को मारता है.
लक्षण 4-6 घंटे बाद शुरू होते हैं...
उदाहरण: 2022 में बेल्जियम में एक महिला ने बाल झड़ने से बचाने के चक्कर में 6 बीज खाए. उसे तेज दर्द, उल्टी हुई, लेकिन समय पर इलाज से बच गई. लेकिन अगर देरी हो, तो मल्टी-ऑर्गन फेलियर से मौत निश्चित. अमेरिकी सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल (सीडीसी) कहता है कि रिसिन 80 डिग्री सेल्सियस से ऊपर गर्म करने पर निष्क्रिय हो जाता है, लेकिन सामान्य तापमान पर स्थिर रहता है.
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अरंडी का पौधा गर्म इलाकों में जंगली उगता है. भारत जैसे देशों में इसकी खेती भी होती है. कचरा आसानी से मिल जाता है, इसलिए आतंकी इसे पसंद करते हैं. गुजरात केस में डॉ. अहमद ने रिसिन से शहरों में हमला करने की योजना बनाई थी. विशेषज्ञ चेताते हैं कि बड़े हमले में हवा में छोड़ने से हजारों प्रभावित हो सकते हैं. लेकिन अच्छी बात ये है कि रिसिन बॉटुलिज्म या टेटनस जहर से कम ताकतवर है. इसका उत्पादन नियंत्रित करना मुश्किल नहीं है.
अगर रिसिन के संपर्क में आने का शक हो, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं. शुरुआती इलाज है- उल्टी कराना, पानी देना, ऑक्सीजन. जांच से यूरिन में रिसिनीन (रिसिन का हिस्सा) पाया जा सकता है. सरकारें सख्त नियम बना रही हैं, लेकिन हमें भी जागरूक रहना चाहिए. अरंडी के बीजों को दवा के रूप में इस्तेमाल न करें – ये पारंपरिक चिकित्सा में गलत तरीके से इस्तेमाल होता है.
ऋचीक मिश्रा