Crime Katha: बिहार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या से दहल गया था पूरा देश, सरेआम इस डॉन ने किया था मर्डर

पटना के IGIMS अस्पताल में बिहार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को सरेआम गोलियों से भून दिया गया था. ये हत्या की ऐसी वारदात थी, जिसने बिहार में जंगलराज की परिभाषा को सच कर दिया था. ये कत्ल शुक्ला बंधुओं की मौत का बदला था, जिसे यूपी के कुख्यात डॉन ने अंजाम दिया था. पढ़ें पूरी कहानी,

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मंत्री की हत्या से बिहार के तमाम नेता सकते में आ गए थे (फोटो-ITG) मंत्री की हत्या से बिहार के तमाम नेता सकते में आ गए थे (फोटो-ITG)

परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:01 PM IST

Crime Katha of Bihar: बिहार के सियासी गलियारों में कई ऐसी खौफनाक कहानियां दफ्न हैं, जिन्हें सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. 27 साल पहले भी ऐसी ही एक कहानी खून से लिखी गई थी, जब एक सरकारी अस्पताल के परिसर में बिहार के एक कैबिनेट मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को सरेआम गोलियों से छलनी कर दिया गया था. ताकतवर मंत्री की हत्या महज सत्ता, बदले और बाहुबल के लिए नहीं की गई थी, बल्कि इस हत्याकांड ने पूरे बिहार को खौफजदा कर दिया था. यही वो हत्याकांड था, जिसके बाद बिहार की राजनीति में 'जंगलराज' शब्द का इस्तेमाल खूब हुआ. 'बिहार की क्राइम कथा' में पेश है उसी सबसे चर्चित हत्याकांड की पूरी कहानी.

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कौन थे बृज बिहारी प्रसाद?
बृज बिहारी प्रसाद का जन्म 20 जुलाई 1949 को बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के आदापुर में एक साधारण परिवार में हुआ था. बचपन से ही वे मेहनती और महत्वाकांक्षी थे. लेकिन 1990 के दशक में बिहार की राजनीति में उनकी एंट्री एक तूफान की तरह हुई. जनता दल से जुड़कर वे आदापुर विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने और लालू प्रसाद यादव के करीबी सहयोगी के रूप में उभरे. उनकी छवि एक मजबूत ओबीसी नेता की थी, जो पिछड़े वर्गों के हितों की रक्षा करते थे. वे मसल-पावर और मनी-पावर से वोटिंग और चुनाव को प्रभावित करने में माहिर थे. 

बिहार के मुजफ्फरपुर से चंपारण तक उनका प्रभाव था. उनकी पत्नी रमा देवी भी राजनीति में सक्रिय रहीं, जो बाद में भाजपा से सांसद भी बनीं. बृज बिहारी की राजनीतिक यात्रा जातीय संघर्षों से भरी थी, वे ऊपरी जातियों के बाहुबलियों को चुनौती देते थे. 1990-95 तक वे ग्रामीण विकास मंत्रालय के उप-मंत्री रहे. लेकिन उनकी लोकप्रियता गरीबों और वंचितों में इतनी थी कि वे 'दिन-दुखियों की आवाज' कहलाते थे. इसी महत्वाकांक्षा ने उन्हें दुश्मनों की लिस्ट में लाकर खड़ा कर दिया था.

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राजनीतिक में तरक्की
साल 1995 में राबड़ी देवी सरकार में बृज बिहारी प्रसाद को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बनाया गया, जो उनकी राजनीतिक यात्रा का स्वर्णिम दौर था. इससे पहले वे ऊर्जा मंत्री भी रह चुके थे. लालू यादव के दाहिने हाथ के रूप में वे पार्टी के नंबर दो नेता माने जाते थे. आदापुर से चार बार विधायक रहने के बाद उनका प्रभाव पूर्वांचल से मुजफ्फरपुर तक फैल गया. वे पिछड़े जातियों के उम्मीदवारों को ऊपरी जाति के बाहुबलियों के खिलाफ जितवाते थे, जैसे उन्होंने बाहुबली मुन्ना शुक्ला को हराकर केदार गुप्ता को जितवाया था. 

1995 के विधानसभा चुनावों में उनकी रणनीति से कई सीटें जनता दल के पक्ष में गईं. लेकिन यह दौर बिहार में जातीय गैंगवार का भी था. बृज बिहारी पर कई आपराधिक आरोप लगे, लेकिन वे हमेशा बच निकले. उनकी पत्नी रमा देवी ने 1995 में मोतिहारी लोकसभा सीट जीती, जो उनके प्रभाव का सबूत था. हालांकि उनकी सफलता उनके दुश्मनों की तादाद भी बढ़ा रही थी. बिहार की राजनीति में उनका नाम मंडल आंदोलन की चुनौती का प्रतीक था.

छोटन शुक्ला के साथ दुश्मनी की शुरुआत
बिहार में 90 का दशक बाहुबलियों का था, जहां जातीय गुटों में बंटे अपराधी वर्चस्व की जंग लड़ रहे थे. बृज बिहारी प्रसाद और छोटन शुक्ला (भूमिहार समुदाय के गैंगस्टर) के बीच दुश्मनी 1994 से शुरू हुई. छोटन शुक्ला आनंद मोहन सिंह की बिहार पीपुल्स पार्टी का चेहरा था और मुजफ्फरपुर अपराध का गढ़ था. बृज बिहारी ने अपने प्रभाव से छोटन को चुनौती दी. 

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4 दिसंबर 1994
यही वो तारीख थी, जब मुजफ्फरपुर के चांदनी चौक में छोटन शुक्ला समेत पांच लोगों की हत्या कर दी गई. उनकी एंबेसडर कार को घेरकर अंधाधुंध फायरिंग की गई. इस हत्याकांड के बाद आरोप था कि बृज बिहारी के समर्थकों ने ही यह खूनी साजिश रची. छोटन की मौत से शुक्ला गैंग बिखर गया. बृज बिहारी पर सीधा आरोप तो नहीं था, लेकिन बदले की आग भड़क उठी थी. यह घटना बिहार-यूपी के अपराध जगत को जोड़ने वाली कड़ी बन गई. छोटन के भाई भुटकुन शुक्ला ने गैंग की कमान संभाली, लेकिन जल्द ही उसकी भी हत्या कर दी गई.

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भुटकुन शुक्ला की हत्या और गैंगवार
छोटन शुक्ला की हत्या के बाद भुटकुन शुक्ला ने बदला लेने की कसम खाई थी. उसने बदला लेने के लिए बृज बिहारी के करीबी ओमकार सिंह का मर्डर करा दिया. इस हत्याकांड ने दुश्मनी की चिंगारी को और हवा दे दी. नतीजा ये हुआ कि 1996 में भुटकुन शुक्ला को भी मार दिया गया. इस कत्ल का इल्जाम भीबृज बिहारी पर लगा. बात बहुत बढ़ चुकी थी. एक बाद एक शुक्ला बंधुओं की हत्याओं ने उनके भाई मुन्ना शुक्ला को पागल कर दिया. मुन्ना ने दोनों भाइयों की चिता की राख से तिलक लगाकर बदला लेने की कसम खाई. इसके बाद बिहार में गैंगवार चरम पर जा पहुंचा. अशोक सम्राट जैसे अपराधी जातीय गुटों में बंटे थे. बृज बिहारी ने 1996 में समाजवादी पार्टी के विधायक देवेंद्र दुबे की हत्या में भी कथित भूमिका निभाई, जो मोतिहारी से फरार चल रहे थे. दुबे की मौत के बाद ही रमा देवी को लोकसभा चुनाव में जीत मिली. यह वो दौर था, जब बिहार में अपराध और राजनीति का गठजोड़ साफ दिखने लगा था.

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कौन था श्रीप्रकाश शुक्ला?
बदले की आग में जलने वाले मुन्ना शुक्ला ने तब इंतकाम लेने के लिए यूपी के कुख्यात गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला से मदद मांगी. श्रीप्रकाश शुक्ला पूर्वांचल का कुख्यात डॉन था, जिसका जन्म गोरखपुर में हुआ था. 1974 में बहन के साथ छेड़खानी होने पर उसने पहली हत्या की थी. 90 के दशक में वह क्राइम की दुनिया का बादशाह बन गया था. उसने यूपी की राजधानी लखनऊ में लॉटरी किंग विवेक श्रीवास्तव को 25 गोलियां मारकर मौत के घाट उतारा था. यही नहीं विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही को उसने 105 गोलियां मारी थीं.

श्रीप्रकाश शुक्लाका साम्राज्य यूपी ही नहीं बिहार, दिल्ली, नेपाल तक फैला था. पुलिस के पास उसकी फोटो तक नहीं थी. अफवाह थी कि फोटो लीक करने वाले को 24 घंटे में मार दिया जाएगा. ये वही श्रीप्रकाश शुक्ला था, जिसने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के नाम की सुपारी भी ले ली थी. लेकिन वो बिहार में मुन्ना शुक्ला की मदद के लिए तैयार हो गया था. क्योंकि सूरजभान सिंह (मुन्ना के सहयोगी) को श्रीप्रकाश अपना गुरु मानता था. बृज बिहारी ने सूरजभान को जेल भिजवाया था और उसे जहर देने की कोशिश की थी. इसी वजह से सूरजभान ने मुन्ना शुक्ला से कहा था- बृज को मारो.

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बृज बिहारी प्रसाद की गिरफ्तारी
1998 की शुरुआत में बृज बिहारी प्रसाद इंजीनियरिंग एडमिशन (BECEE) घोटाले में फंस गए थे. मामला इतना बढ़ा कि राबड़ी देवी सरकार में मंत्री होने के बावजूद उन्हें गिरफ्तार किया गया फिर न्यायिक हिरासत में बेउर जेल भेज दिया गया. लेकिन सीने में दर्द और बुखार की शिकायत के चलते उन्हें पटना के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (IGIMS) में भर्ती कराया गया. अस्पताल में उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे. दो दर्जन से ज्यादा कमांडो उनकी सुरक्षा में तैनात थे. क्योंकि खुद बृज बिहारी प्रसाद को भी खतरे का अहसास था. इसी दौरान मुन्ना शुक्ला ने उनके खिलाफ साजिश तेज कर दी थी. श्रीप्रकाश शुक्ला से बात हो चुकी थी. लिहाजा सूरजभान सिंह ने श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ मिलकर एक खूनी प्लान बनाया. ये सब कुछ जेल से ही हो रहा था. बृज बिहारी का रुतबा लालू के करीबी होने से था, लेकिन दुश्मनी ने उन्हें असुरक्षित बना दिया था. वह IGIMS परिसर में अक्सर शाम को टहलते थे, जो उनकी दिनचर्या बन गई थी.  

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13 जून 1998 - बृज बिहारी प्रसाद की हत्या
उस वक्त शाम के सवा आठ बजे थे. रोज की तरह बृज बिहारी प्रसाद अपने अंगरक्षक लक्ष्मेश्वर साहू और सहयोगी रविंद्र भगत के साथ परिसर में टहल रहे थे. वहां एक शख्स ने उनसे रिश्तेदार के इलाज के लिए मदद मांगी. बृज बिहारी ने अपने एक आदमी को डॉक्टर से बात करने को कहा और पार्किंग की ओर बढ़ गए. उन्हें ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि उनकी मौत उनसे कुछ पल की दूरी पर थी. तभी लाल बत्ती वाली एक एंबेसडर कार और एक टाटा सूमो वहां आकर रुकी. कार से चार हथियारबंद हमलावर बाहर निकले और जय बजरंग बली का नारा लगाते हुए एके-47 और स्टेनगन से बृज बिहारी प्रसाद, लक्ष्मेश्वर साहू और दो अन्य लोगों को गोलियों से भून डाला. 

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हमलावरों ने तीन तरफ से उनकी घेराबंदी की थी. गोलीबारी इतनी तेज और सटीक थी कि पूरा इलाका गोलियों की आवाज़ से गूंज रहा था. जब गोलीबारी थमी तो बृज बिहारी प्रसाद, लक्ष्मेश्वर साहू समेत चार लोग वहां लहूलुहान हालत में जमीन पर पड़े थे. इस गोलीबारी को अंजाम देने वाला कोई और नहीं बल्कि यूपी कुख्यात गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके साथी थे. इस वारदात को अंजाम देकर वे लोग फरार हो गए थे. इस हत्याकांड ने बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश को नेताओं को सकते में डाल दिया था.

बृज बिहारी प्रसाद की हत्या की खबर फैलते ही पूरा बिहार हिल गया. 14 जून 1998 को पटना के शास्त्रीनगर थाने में FIR दर्ज हुई. इस हत्याकांड के बाद सूबे की लालू-राबड़ी सरकार पर संकट आ गया था. विपक्ष ने जंगलराज का शोर मचाया. पूरे देश में बहस छिड़ गई थी कि अस्पताल में मंत्री की हत्या कैसे हो गई? पुलिस और एजेंसियों को सूरजभान सिंह और मुन्ना शुक्ला पर शक हुआ. बिहार में दंगे भड़कने की कगार पर थे. इस मामले में CBI जांच की मांग उठी. 

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4 जुलाई 1998
उस दिन इस मामले को लेकर संसद में बहस हुई, जहां लालू ने राजनीतिक साजिश का आरोप लगाया. बृज बिहारी प्रसाद के समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किए. उनकी मौत से ओबीसी समुदाय में आक्रोश फैल गया था. यह घटना 1947 के बाद बिहार की सबसे चर्चित व्यक्तिगत हत्या मानी गई. बाद में बृज बिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी ने भाजपा जॉइन की.

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हत्या के बाद बिहार पुलिस ने इस केस की जांच शुरू की, लेकिन पुलिस की भूमिका विवादित रही. कई सबूत गायब हो गए थे, जिससे शक बढ़ रहा था. अपराधियों ने हथियार और गाड़ियां छिपा लीं थीं. दबाव में यह मामला CBI को सौंप दिया गया. CBI ने साजिश का खुलासा किया. मुन्ना शुक्ला ने जेल से ही हत्या का प्लान बनाया था. इस मामले में श्रीप्रकाश शुक्ला शूटर था और सूरजभान मास्टरमाइंड.

साल 1999 में चार्जशीट दाखिल हुई. जांच में पाया गया कि हत्या छोटन-भुटकुन की मौत का बदला थी. बिहार पुलिस पर राजनीतिक दबाव का आरोप लगा. CBI ने 8 आरोपियों को नामजद किया. जिनमें मुन्ना शुक्ला, मंटू तिवारी, सूरजभान सिंह आदि शामिल थे. गवाहों के बयान लिए गए. लेकिन कई गवाह डर की वजह से मुकर गए थे. 

साल 2009 में पटना की विशेष CBI अदालत ने फैसला सुनाया. 9 आरोपियों को दोषी ठहराया गया. जिनमें से 8 को उम्रकैद की सजा हुई और 20 हजार जुर्माना भी. तत्कालीन JD-U विधायक मुन्ना शुक्ला, सूरजभान सिंह (पूर्व सांसद), राजन तिवारी आदि इस मामले में सजायाफ्ता हुए. शशि कुमार राय को 2 साल की सजा मिली. यह फैसला जंगलराज के खिलाफ पहला बड़ा कदम था. लेकिन हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई. 

साल 2014 में पटना हाईकोर्ट ने सभी 8 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला, राजन तिवारी समेत पांच को शक का लाभ मिला. कोर्ट ने कहा कि गाड़ियां और हथियार बरामद न होने से केस कमजोर था. CBI और रमा देवी ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. मुन्ना शुक्ला जेल से रिहा हुए. सूरजभान सिंह को राहत मिली. हाईकोर्ट ने पुलिस की लापरवाही पर भी टिप्पणी की. 

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 2022 से शुरू हुई. जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने 22 अगस्त 2024 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा. 3 अक्टूबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को आंशिक तौर पर रद्द कर दिया था. मुन्ना शुक्ला (विजय कुमार शुक्ला) और मंटू तिवारी को IPC 302 के तहत उम्रकैद की सजा बरकरार रखी. सूरजभान सिंह समेत 6 को बरी रखा गया.

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