हांगकांग अग्निकांड से हम क्या सीख सकते हैं? हाई राइज बिल्डिंग्स पर एक्सपर्ट्स के क्या सुझाव हैं

हांगकांग की इमारत में लगी आग ने पुरी दुनिया के लोगों को हिलाकर रख दिया. खासतौर पर वो लोग जो हाइराइज इमारतों में रहते हैं उनके लिए ये बड़ा सबक है कि हम खुद को कैसे ऐसी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रखें

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हांगकांग आग से भारत को क्या सबक (Photo-ITG) हांगकांग आग से भारत को क्या सबक (Photo-ITG)

स्मिता चंद

  • नई दिल्ली,
  • 28 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:53 PM IST

हांगकांग, वह शहर जहां की चमचमाती इमारतें आसमान से बातें करती हैं, जिसकी खूबसूरती देखने दुनिया भर से लोग आते हैं. आज उसी शहर पर मातम का गहरा साया है. ताई पो जिले के वांग फुक कोर्ट हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में बुधवार को लगी आग ने इस शहर को हिलाकर रख दिया है.

सड़कों पर अब लोगों का शोर नहीं, बल्कि एंबुलेंस के सायरन की चीख है. हर तरफ धुएं का गुबार और एक अजीब सी खामोशी पसरी है, जो दिल को चीरकर रख देती है. सालों से तिनका-तिनका जोड़कर जिस इमारत को लोगों ने अपना 'घर' बनाया था, वह उनकी जीती-जागती चिता बन गई.

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हादसे के चंद मिनट पहले इन ऊंची इमारतों के भीतर, लोग हंसते-खिलखिलाते अपने भविष्य की प्लानिंग कर रहे होंगे, लेकिन तभी उनकी आवाजें दर्दनाक चीखों में बदल गईं. वो चीखें जो आग की भयानक गर्मी में दफ्न हो गईं. लोग अपनी एक-एक सांस के लिए तड़पते रहे और दम तोड़ गए. 100  से अधिक जिदगियां उस धुएं में हमेशा के लिए खो गईं, और जो लोग बच पाए वो अब अस्पतालों में हैं, उनकी आंखों में जिदगी भर का ऐसा जख्म है, जिसे समय भी शायद न भर पाए.

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हांगकांग की आग से दुनिया भर में दहशत

इस जलती हुई, कालिख पुती इमारत की तस्वीर दुनिया के जिस कोने में भी पहुंची, उसने लोगों को भीतर तक दहला दिया. हांगकांग की इस त्रासदी ने केवल ईंटों और कंक्रीट को नहीं जलाया है, बल्कि इसने दुनिया भर के लोगों को असुरक्षा और गहरी निराशा की जलन महसूस कराई है. यह खतरा हर वो शख्स महसूस कर रहा है जो ऐसी इमारतों में रहता है.

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कितनी सेफ है गगनचुंबी इमारतें?

भारत के तमाम मेट्रो सिटीज, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु जैसे कई ऐसे शहर हैं, जहां कंक्रीट का जंगल खड़ा हो गया है, ऊंची-ऊंची इमारतों में लोग रह रहे हैं, लेकिन अब उनके दिल में भी इस बात को लेकर दहशत है कि अगर ऐसे हालात उनके यहां हुए तो क्या हम उससे निपट पाएंगे? आग हो या भूकंप, ऐसे हाई-राइज बिल्डिंग में रहने वाले लोगों के दिमाग में ये सवाल अक्सर आता है. खासतौर पर ऐसी इमारतें जो भरी हुई हैं, ऐसी आपात स्थिति में लोगों को बिल्डिंग से निकालना कितनी बड़ी चुनौती होगी और कैसे हम इस तरह के हादसे को टाल सकते हैं इस बारे में एक्सपर्ट्स क्या राय रखतें हैं. 

भारत कितनी तैयार, क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

अंसल हाउसिंग के डायरेक्टर कुशाग्र अंसल aajtak.in से बात करते हुए कहते हैं- 'बिल्डिंग सेफ्टी को लेकर प्रोएक्टिव होना बेहद जरूरी है. छोटे-छोटे इंटीरियर बदलाव या रिपेयर भी कभी-कभी स्ट्रक्चर और फायर सेफ्टी को प्रभावित कर देते हैं, इसलिए कोई भी निर्माण करने से पहले तकनीकी सलाह लेना जरूरी है. हम अक्सर छोटे-छोटे बदलावों को नजरअंदाज कर देते हैं, जैसे कि इंटीरियर डिजाइन में बदलाव या मामूली रिपेयर वर्क. ये छोटे-छोटे कदम भी कभी-कभी इमारत के मूल स्ट्रक्चर और फायर सेफ्टी को अप्रत्याशित रूप से प्रभावित कर सकते हैं.'

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कुशाग्र आगे कहते हैं- 'जीवन बचाने वाले एहतियाती उपायों को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए, जैसे कि फायर एग्जिट को हमेशा साफ और खुला रखना, इलेक्ट्रिकल वायरिंग की समय-समय पर गहन जांच, और इमरजेंसी ड्रिल्स को रूटीन का हिस्सा बनाना. अच्छी बात यह है कि थोड़े से प्रयास और सही मेंटेनेंस के जरिए, हम अपनी इमारतों को न सिर्फ वर्तमान के लिए सुरक्षित बल्कि लंबे समय तक रहने योग्य बना सकते हैं.”

लापरवाही से बचने की सलाह

360 रियल्टर्स के एमडी, अंकित कंसल aajtak.in से बात करते हुए कहते हैं- 'भारत में बिल्डिंग कोड्स मजबूत हैं और अगर उनका सही तरीके से पालन किया जाए, तो हाई-राइज और मिड-राइज दोनों इमारतें सुरक्षित रह सकती हैं. हालांकि, अक्सर समस्या कोड्स की कमी से नहीं, बल्कि लापरवाही से पैदा होती है, क्योंकि कई बार नवीनीकरण के दौरान गलत सामग्री या अस्थायी बदलाव किए जाते हैं जो सुरक्षा जोखिम को कई गुना बढ़ा देते हैं. इसलिए हर चरण पर जागरूकता और निगरानी बेहद जरूरी है.'

अंकित कंसल सलाह देते हैं कि न केवल नई, बल्कि पुरानी इमारतों में भी वार्षिक फायर ऑडिट को अनिवार्य किया जाना चाहिए. सुरक्षा अपग्रेड और सही मेंटेनेंस की संस्कृति अपनाकर, हम अपनी इमारतों को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकते हैं. लोगों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता बनाकर ही हम ऐसी घटनाओं को रोक सकते हैं और एक अधिक सुरक्षित शहरी वातावरण तैयार कर सकते हैं.

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रियलिस्टिक रियलटर्स के रीजनल डायरेक्टर, मोहित बत्रा का कहना है- 'एक सुरक्षित इमारत केवल उन्नत तकनीक या मजबूत डिजाइन से नहीं, बल्कि नियमित देखरेख और सतर्कता से बनती है. भारत में, भले ही आधुनिक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में फायर सेफ्टी सिस्टम अच्छी तरह से लगाए जाते हैं, लेकिन सबसे बड़ी आवश्यकता उनके समय-समय पर टेस्टिंग और निरंतर मेंटेनेंस की है. हमारा मानना है कि हर तीन महीने में फायर ड्रिल और सेफ्टी ऑडिट को एक कॉर्पोरेट या सोसाइटी की अनिवार्य आदत बनाना चाहिए. ऐसा करने से न केवल आग लगने का जोखिम कम होता है, बल्कि निवासियों में अपनी सुरक्षा के प्रति गहरा भरोसा भी बढ़ता है. यह समय पर की गई तैयारी ही है जो किसी भी संभावित खतरे को एक भयावह हादसे में बदलने से रोकती है.'

भारत में हाई-राइज के लिए क्या नियम?

हांगकांग त्रासदी हमें याद दिलाती है कि हाई-राइज इमारतों में एक छोटी सी लापरवाही भी बड़ी तबाही ला सकती है. भारत में हाई-राइज बिल्डिंग्स जो आमतौर पर 15 मीटर से अधिक ऊंचाई के हों उनकी अग्नि सुरक्षा मुख्य रूप से राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC) 2016 के भाग 4 के तहत नियंत्रित होती है, जिसका पालन करना राज्य सरकारों के स्थानीय बिल्डिंग उपनियमों द्वारा अनिवार्य है.

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इन नियमों के तहत, इमारतों में कम से कम दो अलग फायर-रेटेड सीढ़ियां और फायर इंजन के लिए 6 मीटर चौड़ा मार्ग होना अनिवार्य है, साथ ही 24 मीटर से अधिक ऊंची इमारतों में रिफ्यूजी एरिया रखना भी जरूरी है. तकनीकी आवश्यकताओं में सभी क्षेत्रों में ऑटोमैटिक स्प्रिंकलर सिस्टम, वेट-राइजर सिस्टम, और आपातकालीन स्थिति में उपयोग के लिए एक फायर लिफ्ट शामिल हैं। इसके अलावा, कानूनी रूप से प्रत्येक हाई-राइज बिल्डिंग के लिए फायर विभाग से NOC प्राप्त करना और सभी उपकरणों की कार्यक्षमता सुनिश्चित करते हुए इसे सालाना नवीनीकृत कराना भी अनिवार्य है.

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