चीन के लिए ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत दिलचस्प और हैरानी भरी रही है. ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान और 2024 में राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान चीन के प्रति बेहद सख्त रुख बनाए रखा. हालांकि, चुनाव जीतने के बाद और 20 जनवरी को अपने शपथ ग्रहण से पहले, उन्होंने चीन का ज्यादा जिक्र नहीं किया. इसके बजाय, उन्होंने कनाडा, ग्रीनलैंड और पनामा जैसे अन्य देशों पर अपने जुबानी हमले तेज कर दिए.
ट्रंप ने चीन के प्रति सख्ती दिखाने के बजाए दोस्ती बढ़ाने के संकेत दिए हैं जिसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित करना और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का चीन के विशेष प्रतिनिधि और उपराष्ट्रपति हान झेंग का स्वागत करना शामिल है. झेंग ने शपथ ग्रहण समारोह में टेस्ला के सीईओ और ट्रंप के दोस्त समझे जाने वाले एलन मस्क सहित अमेरिका के बड़े बिजनेसमैन से मुलाकात की.
ऐसी भी खबरें हैं कि ट्रंप अपने कार्यकाल के पहले 100 दिनों में चीन का दौरा करेंगे. यह चीन को लेकर बाइडन के नजरिए से बिल्कुल अलग है.
चीन पर नरम हुए ट्रंप
ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान चीनी वस्तुओं पर 60 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी थी लेकिन पद ग्रहण करने के बाद उन्होंने इसे लागू करने में जल्दबाजी नहीं की है. इसके बजाय, उन्होंने कनाडा और मैक्सिको से आने वाले सामानों पर टैरिफ लगाने पर ध्यान दिया है. उन्होंने 1 फरवरी से दोनों देशों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के प्लान की घोषणा की है. ट्रंप प्रशासन चीन पर टैरिफ लगाने के जिस प्लान पर विचार कर रहा है, उसमें चीन पर केवल 10 प्रतिशत टैरिफ लगाना शामिल है.
इतना ही नहीं, ट्रंप ने टिकटॉक के मुद्दे पर भी उदार रुख अपनाया है और टिकटॉक पर प्रतिबंध को फिलहाल स्थगित कर दिया है. ट्रंप ने इस बात पर भी जोर दिया है कि "टिकटॉक को बचाया जाना चाहिए."
चीन के विशेषज्ञ ट्रंप के उदार रवैये से आशावादी हैं और उनका मानना है कि इससे पता चलता है कि ट्रंप चीन के साथ किसी तरह के समझौते पर पहुंचने की इच्छा रखते हैं. चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर चीन अमेरिका और ट्रंप के लिए फायदेमंद साबित होने वाली रियायतें देता है तो ट्रंप अपनी चीन नीति पर फिर से विचार कर सकते हैं.
लेकिन क्या ट्रंप और शी जिनपिंग समझौता कर सकते हैं? ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान भी शी जिनपिंग उनके शीशमहल मार-ए-लागो में उनसे मिले थे लेकिन इसके एक साल के भीतर ही द्विपक्षीय संबंध चरमरा गए थे.
चीन का शक
चीन के कई रणनीतिकार ट्रंप के इरादों को शक की नजर से देख रहे हैं. चीन के रेनमिन विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन्स के प्रोफेसर और अमेरिकी मुद्दों के विशेषज्ञ जिन कैनरोंग का कहना है कि ट्रंप अपने दिल में चीन को एक प्रमुख प्रतिस्पर्धी मानते हैं. उनके मंत्रिमंडल में चीनी के प्रति कट्टर रुख रखने वाले मंत्री भरे हुए हैं जैसे विदेश मंत्री मार्को रुबियो और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज. भले ही चीन को लेकर उनकी रणनीति बदल सकती है या पहले से अधिक जटिल हो सकती है लेकिन चीन को लेकर उनका रवैया इतनी आसानी से नहीं बदलेगा.
कैनरोंग ने कहा कि ट्रंप का चीन की चापलूसी करना उनके नजरिए में बदलाव को दिखाता है, और ये भी दिखाता है कि वो चीन-अमेरिका संबंधों को सुधारने की जिम्मेदारी पूरी तरह से चीन पर डालना चाहते हैं.
चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्गकॉन्ग, शेनेजने में एडवांस स्टडी ऑन ग्लोबल एंड कंटेपररी चाइना इंस्टिट्यूट के डीन झेंग योंगनियान का भी यही मानना है. उन्होंने तर्क दिया कि ट्रंप चीनी उत्पादों पर टैरिफ लगाना नहीं छोड़ेंगे और न ही वो चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करने या उस पर एकाधिकार करने की अपनी कोशिश छोड़ेंगे.
चीनी मीडिया में छपे लेखों में भी कहा जा रहा है कि ग्रीनलैंड, कनाडा और पनामा के प्रति ट्रंप के हालिया प्रस्ताव महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा से जुड़े हैं. ट्रंप इन देशों को अमेरिका के प्रभाव में लाकर, इनके संसाधनों, उद्योग और बाजार को मिलाकर "एकीकृत उत्तरी अमेरिका" का निर्माण करना चाहते हैं. इसके जरिए वो चीनी मैन्यूफैक्चरिंग पर अमेरिका की निर्भरता से छुटकारा पाना चाहते हैं और एक स्वतंत्र इंडस्ट्रियल इकोलॉजी बनाना चाहते हैं.
चीन के लोकप्रिय समाचार वेबसाइट 'गुआंचा डॉट कॉम' पर एक लेख में कहा गया है कि इससे चीन की बढ़ती सैन्य ताकत का मुकाबला करने के लिए अमेरिका की सैन्य शक्ति भी रणनीतिक रूप से बढ़ेगी. इसी कारण ट्रंप ग्रीनलैंड को खरीदना चाहते हैं क्योंकि वहां दुनिया के दुर्लभ खनिजों का लगभग एक चौथाई से लेकर पांचवां हिस्सा है और यह उनकी सैन्य क्षमता बढ़ाने में लाभदायक सिद्ध होगा.
अमेरिका-चीन पावरप्ले
चीन और अमेरिका के बीच पावर के खेल में, चीन के पास अमेरिका को नियंत्रित करने के लिए कई दुर्लभ खनिज हैं जो रणनीतिक बढ़त प्रदान करते हैं. लेकिन चीनी पर्यवेक्षकों का तर्क है कि ट्रंप अब इस बाधा से छुटकारा पाना चाहते हैं और चीन के बिना ही एक सप्लाई चेन बनाना चाहते हैं जिससे अमेरिका को दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति हो. ट्रंप अपनी इस कोशिश में कितने सफल होंगे, कहा नहीं जा सकता.
इन सब बातों को देखते हुए, चीन के रणनीतिक समुदाय ने ट्रंप 2.0 को लेकर जो संदेश दिया है वो काफी दिलचस्प है कि- चीन का विकास अजेय है. चीन अमेरिका पर निर्णायक बढ़त लेने की राह पर है. अमेरिका अब अपनी हताशा को केवल अपने पिछलग्गू देशों पर ही निकाल सकता है. उनका कहना है कि अमेरिका को चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के बजाए, चीन को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए और रनर अप के लिए भारत जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए.