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तीन अलग-अलग धाराओं में बह रही थीं गंगा, 16000 मजदूरों ने 80 दिन में तैयार किया संगम नोज

बारिश के बाद पूरा संगम क्षेत्र सहित 97 प्रतिशत मेला क्षेत्र डूब जाता है. वहीं, जब बाढ़ का पानी कम होता है तो संगम नोज पर रेत का टापू बन जाता है. ऐसे में इस बार महाकुंभ को देखते हुए 16,000 श्रमिकों ने 80 दिनों तक काम कर संगम क्षेत्र के पास 26 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि तैयार की, ताकि श्रद्धालु संगम में आसानी से डुबकी लगा सकें. क्योंकि बाढ़ के बाद रेत के टापू के चलते गंगा तीन अलग-अलग धाराओं में बह रही थी.

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16000 मजदूरों ने 80 दिन में तैयार किया संगम नोज
16000 मजदूरों ने 80 दिन में तैयार किया संगम नोज

यूं तो महाकुंभ (Mahakumbh 2025) में संगम नदी में स्नान करने करोड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं, लेकिन संगम (Sangam Nose) को स्थापित करने के लिए कई महीनों पहले से बड़े स्तर पर काम किया गया.  जिसके तहत क्लीन टेक इंफ्रा कंपनी के 16000 श्रमिकों ने 3 महीने तक नगर निगम और सिंचाई विभाग की अगुवाई में मशीनों की मदद से रास्ते को चौड़ा किया ताकि ज्यादा श्रद्धालु यहां पर जाकर स्नान करने पाए. 

इस दौरान उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उनकी नावें भंवर में फंस गईं, वे डेंगू जैसी बीमारियों से प्रभावित हुए, त्यौहार और पारिवारिक समारोहों में शामिल नहीं हो सके. इस दौरान गंगा की तेज धाराओं में 80 किलो वजनी 350 मिमी पाइप को स्थापित करने के लिए स्कूबा डाइविंग करनी पड़ी. उन्होंने 20 से 40 टन वजनी चार ड्रेजरों की मदद से 80 दिनों तक निरंतर कार्य कर एक अभूतपूर्व इंजीनियरिंग उपलब्धि को साकार किया.

16000 से अधिक श्रमिकों ने सिंचाई विभाग की मदद से किया काम

यह विशाल परियोजना 26 हेक्टेयर भूमि को पुनः प्राप्त करने से संबंधित थी. जिसमें 'संगम नोज' (Sangam Nose) नामक दो हेक्टेयर क्षेत्र भी शामिल था. यह वह स्थान है जहां गंगा और यमुना नदियां मिलती हैं. इस कार्य का उद्देश्य श्रद्धालुओं को पवित्र स्नान के लिए अधिक स्थान उपलब्ध कराना था.

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करीब 250 कुशल ड्रेजरों और 16,000 से अधिक श्रमिकों की कड़ी मेहनत से मेला प्रशासन और सिंचाई विभाग ने अतिरिक्त 2 हेक्टेयर भूमि तैयार की. यह स्थान 2019 की तुलना में लगभग 2 लाख अधिक श्रद्धालुओं को एक साथ समाहित करने में सक्षम है. आईआईटी-गुवाहाटी की एक रिपोर्ट के बाद अधिकारियों ने शास्त्री पुल से गंगा की धाराओं को व्यवस्थित करने की आवश्यकता महसूस की.

प्रारंभ में कुंभ मेला प्रशासन ने अपने संसाधनों से इसे पूरा करने का प्रयास किया, लेकिन जटिलता को देखते हुए कार्य सिंचाई विभाग को सौंप दिया गया. इस कार्य की जटिलता को दर्शाने के लिए इतना कहना पर्याप्त होगा कि 83 दिनों में ड्रेजरों ने गंगा से करीब सात लाख घन मीटर रेत निकाली, जो 187 ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूलों को भरने के लिए पर्याप्त है. इसके साथ ही विभाग ने महाकुंभ के लिए नौ नए घाटों का भी निर्माण किया.

परियोजना का कार्यभार मिलने के बाद सिंचाई विभाग ने त्वरित कार्रवाई की. बहराइच से तीन ड्रेजरों को सड़क मार्ग से प्रयागराज लाया गया. प्रत्येक ड्रेजर को अलग-अलग हिस्सों में विभाजित कर फ्लैटबेड ट्रेलर ट्रकों पर लादा गया. वहीं, एक ड्रेजर को लाने में चार ट्रक और लगभग पांच दिन लगे. गंगा किनारे पहुंचने के बाद इन उपकरणों को पुनः जोड़ा गया.

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ड्रेजरों को गंगा में उतारने के लिए 75 मजदूर, 120 टन क्षमता की एक क्रेन, 14 टन की तीन हाइड्रा क्रेन और एक बैक-हो एक्सकेवेटर की बैटरी लगाई गई. इस समर्पण और कठिन परिश्रम के परिणामस्वरूप महाकुंभ की तैयारी के तहत संगम क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज हुई.

रेत का टापू हटाने से बढ़ गया संगम का क्षेत्रफल

क्लीन टेक इंफ्रा कंपनी के प्रबंध निदेशक गौरव चोपड़ा ने आज तक से बातचीत में बताया कि संगम नदी में श्रद्धालु स्नान कर रहे हैं. वहां कुछ समय पहले तक नदी में अलग-अलग टापू होने के कारण संगम ठीक से नहीं हो पा रहा था. मशीनों की मदद से उनकी टीम ने रेत के टापू को नदी से हटाया और इस रेट से घाट के किनारे संगम तट का क्षेत्रफल बढ़ा दिया, जिससे घाट की चौड़ाई बढ़ गई और नदी भी एक धारा में बेहकर संगम में जा मिली.

गौरव चोपड़ा ने यह भी बताया कि कैसे उनकी कंपनी लगातार मशीनों की मदद से युद्ध स्तर पर नदी को साफ करने का काम कर रही है और निकले हुए कूड़े को रिसाइकल भी कर रही है. 

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