भारत की पवित्र भूमि पर देवी उपासना की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. उत्तर भारत में स्थित एक अत्यंत शक्तिशाली और श्रद्धा से पूजनीय देवी हैं - मां विंध्येश्वरी (Vindhyeshwari Devi). इन्हें विंध्याचल पर्वत पर स्थित शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है. यह स्थल उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में गंगा नदी के किनारे स्थित है और देवी विंध्यवासिनी का यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है.
देवी विंध्येश्वरी को 'विंध्यवासिनी' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है - विंध्य पर्वत पर निवास करने वाली देवी. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तब उनकी बहन योगमाया ने कंस के हाथों बचने के लिए अपने रूप को बदल लिया और विंध्याचल पर्वत पर आकर निवास किया. यही देवी बाद में विंध्यवासिनी कहलाईं.
देवी का स्वरूप शांत, सौम्य और मातृमयी है, लेकिन साथ ही वे राक्षसों के विनाश के लिए उग्र रूप भी धारण करती हैं. वे दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं और तीन शक्तियों- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का संगम हैं.
विंध्याचल मंदिर, मिर्जापुर शहर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह स्थान हिंदू धर्म में इतना पावन माना जाता है कि हर साल लाखों श्रद्धालु यहां नवरात्रि के समय देवी के दर्शन और पूजा के लिए आते हैं. खासकर चैत्र और शारदीय नवरात्र में यहां मेले का आयोजन होता है, जिसमें उत्तर भारत ही नहीं, नेपाल और अन्य देशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं.
यहां तीन प्रमुख शक्तिपीठों की त्रिकोण यात्रा (त्रिकोण परिक्रमा) की जाती है-
विंध्यवासिनी देवी
कालीखोह देवी (महाकाली स्वरूप)
अष्टभुजा देवी (सरस्वती स्वरूप)
मान्यता है कि इस त्रिकोण की परिक्रमा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
कहा जाता है कि देवी विंध्येश्वरी अपने भक्तों की सच्चे मन से की गई हर प्रार्थना को सुनती हैं और शीघ्र ही फल देती हैं. वे मां दुर्गा का पूर्ण अवतार मानी जाती हैं, जो धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए अवतरित हुईं. इस धाम को तंत्र साधना के प्रमुख केंद्रों में भी गिना जाता है.