भारतीय संस्कृति में अनेक पर्व और त्यौहार ऐसे हैं जो स्त्री शक्ति, मर्यादा और आदर्श जीवन मूल्यों का प्रतीक होते हैं. उन्हीं में से एक पावन पर्व है 'सीता नवमी' (Sita Navami), जिसे जानकी नवमी भी कहा जाता है. यह पर्व माता सीता के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन विशेष रूप से नारी शक्ति, समर्पण, सहनशीलता और धर्म के प्रति निष्ठा का प्रतीक माना जाता है.
सीता नवमी हर वर्ष वैसाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन जनकपुर में माता सीता का जन्म हुआ था. वे मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री थीं और भगवान श्रीराम की पत्नी बनीं. माता सीता को भूमिपुत्री माना जाता है, क्योंकि उनका जन्म धरती से हुआ था. यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत, खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और नेपाल के जनकपुर क्षेत्र में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है.
सीता नवमी के दिन श्रद्धालु उपवास रखते हैं और माता सीता एवं भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं. सीता चरित्र का पाठ, रामचरितमानस के सुंदरकांड और बालकांड का पाठ विशेष रूप से किया जाता है. मंदिरों में भजन-कीर्तन होते हैं और विशेष झांकियां सजाई जाती हैं.
माता सीता भारतीय नारीत्व की सर्वोच्च प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं. उन्होंने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए धर्म और मर्यादा का पालन किया. उनका वनवास, अग्निपरीक्षा और लव-कुश के जन्म जैसे प्रसंगों में उन्होंने धैर्य, बलिदान और सत्य की मिसाल प्रस्तुत की. वे आज भी नारी गरिमा और आत्मबल की प्रतीक हैं.